शब्द उन समस्याओं का वर्णन नहीं कर सकते हैं जिनका सामना विकास के मार्ग पर चल रहे विकसित देश कर रहे हैं. सबसे आम और सर्वोच्च प्राथमिकता वाले कार्य जैसे, मच्छरों के काटने से बच्चों की रक्षा करना, बच्चों को प्रतिरक्षा टीकाकरण प्रदान करना, उन्हें नियमित रूप से स्कूल में भाग लेने के लिए प्रेरित करना, ताकि उनमें बेहतर अध्ययन के लिए रुचि बढ़े, विकासशील देश के लिए यह प्रमुख चुनौतियां हैं.
जब तक हम इन सभी सवालों के उचित उत्तर नहीं तलाश लेते, तब तक लाखों बच्चे बीमारियों से गंभीर रूप से प्रभावित होते रहेंगे और मौतों का सिलसिला जारी रहेगा और वे स्कूल नहीं जा पाने के कारण अशिक्षित रहेंगे और ऐसी गंभीर समस्यायों के भंवर में फंसे रह जायेगें.
तीन प्रख्यात अर्थशास्त्रियों ने इन प्रचंड सवालों, जो मानव प्रगति में बाधा हैं, के गहन समाधान खोज निकाले हैं. उनके इस महान कार्य को पावती देते हुए उन्हें प्रतिष्ठित नोबेल पुरुस्कार से सम्मानित किया गया है.
इन तीनों में से श्री अभिजीत बेनर्जी भारतीय हैं. उन्होंने प्रेसीडेंसी कॉलेज, कोलकाता और जेएनयू विश्वविद्यालय, दिल्ली में अध्ययन किया और फिर वह स्थान हासिल किया जहां उन्होंने अनुकूल समाधानों द्वारा वैश्विक गरीबी को मिटाने के लिए प्रस्ताव रखा. यह हमारे देश के लिए गर्व का पल है.
दुनिया भर के सभी देश आज बाजार आधारित पूंजीवादी आर्थिक नीतियों में पूरी तरह से बहे जा रहे हैं. इस मुश्किल समय में, कई देशों की सरकारें धीरे-धीरे प्रत्यक्ष लाभ योजनाओं और सब्सिडी से दूर हो रही है ऐसे में यह बहुत ही उत्साहित करने वाली बात है कि गरीबों के जीवन को बदलने के नए तरीकों का सुझाव देने वाली महान शोध को नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया है. यह बेहद सराहनीय क़दम है.
समस्या सुलझाने की रणनीति
पारंपरिक आर्थिक सिद्धांत गरीबों जीवन और गरीबी के विभिन्न पहलुओं का वास्तव में व्यापक तरीके से विश्लेषण करने में विफल रहते हैं. अभिजीत और उनके साथी स्वास्थ्य, शिक्षा, उपभोग और किफायती विकास जैसी गरीबी की बुनियादी समस्याओं के लिए मजबूत तथ्यों के साथ विशिष्ट और गहन समाधान खोजने में सफल रहे, जिसे मामूली खर्च से सुनिश्चित किया जा सकता है.
ये समाधान यथार्थवादी दृष्टिकोण के साथ प्राप्त किये जा सकते हैं. यह समाधान सैद्धांतिक तर्कों से परे हैं और वास्तविक जीवन के अध्ययन से प्राप्त किये गए हैं. यह प्रयास वास्तव में सराहनीय है और नए सामाजिक रुझानों को आकार देने और लागू करने में बहुत अच्छे परिणाम प्राप्त करा सकते है.
अभिजीत-डफ़्लो का गरीबों का अर्थशास्त्र में गरीबी और गरीब लोगों के वास्तविक जीवन के मानकों के बारे में समझने की कोशिश है. उनकी किताब में यथोचित रूप से समझाया गया है कि गरीब लोगों की आय को निश्चित स्तर तक उठाया जाता है तो उनकी खर्च करने की प्रवृत्ति और इच्छाओं के मूल कारणों क्या होते हैं.
यह किताब उस रणनीति के पीछे के कारणों का विवरण देती है जिसके कारण पैसे होने पर गरीब पौष्टिक भोजन और स्वास्थ्य बीमा पर खर्च करने के बजाय टेलीविजन जैसे गैजेट खरीदने का विकल्प चुनते हैं.
उस पुस्तक में उन्होंने स्पष्ट रूप से बताया है कि वास्तविक रणनीति के तहत कैसे कुछ हद तक दालों की उचित मात्रा प्रदान करने से प्रतिरक्षा टीकाकरण को बढ़ाकर उनके जीवन को बचाया जा सकता है.
उन्होंने इस पर विस्तार से चर्चा की है कि सरकारों की गलत अनुमानों के कारण कई छोटी बाधाएं उत्पन्न हो जाती हैं जिनके कारण गरीबों को दयनीय स्तिथि में जीवन व्यापन करने पर मजबूर होना पड़ता है.
इन नोबेल पुरस्कार विजेताओं का दृढ़ विश्वास है कि सरकारें आवश्यक जानकारियाँ, थोड़ी मात्रा में प्रौद्योगिकी में साक्षरता और थोड़ी वित्तीय मदद प्रदान करें तो निश्चित रूप से गरीब लोगों के जीवन मानकों में भारी बदलाव लाया जा सकता है.
गरीबी एक सामाजिक रोग है
सही समय पर सही इलाज मिलने पर दुनिया की हर बीमारी का उपचार किया जा सकता है. प्रयोगशाला में प्रत्याशित प्रयोगों की मदद से सही दवा की पहचान की जा सकती है. इसी तरह गरीबी और अशिक्षा जैसे विभिन्न सामाजिक और आर्थिक मुद्दों के लिए उचित प्रत्याशित अध्ययन और प्रयोगों द्वारा उचित समाधान प्राप्त किया जा सकता है.
इस विश्वास के आधार पर ही नोबेल पुरस्कार विजेताओं ने एक अभिनव और अलग रणनीति के साथ जांच और प्रयोग किए हैं. उन प्रयोगों के लिए उन्होंने यादृच्छिक नियंत्रित मार्ग को चुना है जो अक्सर चिकित्सा और दवा के निदान में उपयोग में लाया जाता है.
इस सिद्धांत के अनुसार गरीबी से संबंधित समस्याओं को छोटे-छोटे प्रश्नों से विभाजित किया जाता जिन्हें आसानी से हल किया जा सकता है. इसके बाद वे कुछ व्यक्तियों और परिवारों को एक ही राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक संदर्भ के आधार पर यादृच्छिक रूप से चुनते हैं.
वे कुछ विशिष्ट वस्तुओं और सेवाओं साथ ही उन्हें कुछ सुविधाएं प्रदान करते हैं और गरीबी के विभिन्न पहलुओं पर पड़ने वाले प्रभाव का आकलन करते हैं. इस आकलन की तुलना शेष व्यक्तियों और परिवारों के साथ की जाती है.
इस प्रक्रिया में व्यवहारिक अर्थशास्त्र के सिद्धांतों का भी व्यापक रूप से उपयोग और कार्यान्वयन किया जाता है. तत्पश्चात गहन समाधानों का अनुमान लगाया जाता है और सुझाव दिये जाते हैं ताकि उस विशेष श्रेणी के सभी लोगों को सर्वोत्तम परिणाम और बेहतर बदलाव प्राप्त करने के लिए विस्तारित किया जाए.
इसे प्रूफ ओरिएंटेड कॉन्सेप्ट मॉडलिंग कहा जाता है यानि वह मॉडल को साक्ष्य पर आधारित हो. कुछ प्रतिष्ठित अर्थशास्त्रियों ने इस कार्यप्रणाली की आलोचना करते हुए कहा है कि यह मॉडल अपने विकासात्मक प्रभाव पर सवाल नहीं उठाता है और साथ ही व्यापक रूप से संरचनात्मक पैमाने और उद्यमशीलता के मुद्दों के दावों को भी दरकिनार के देता है.
खैर, इस दुनिया से गरीबी को मिटाने और उचित समाधान खोजने के लिए विशिष्ट शोध किया जाना चाहिए, साथ ही यह एक सतत प्रक्रिया होनी चाहिए. उल्लेखनीय है कि एमआईटीमें अभिजीत बेनर्जी और उनकी जीवनसाथी डफ़्लो द्वारा स्थापित अब्दुल जमील गरीबी उन्मूलन अध्ययन केंद्र आरटीसी विधि के माध्यम से कई विकासशील देशों में गरीबी को कम करने के लिए समर्पित रूप से काम कर रहा है.