नई दिल्ली: हरियाणा की राजनीति का डूबता-चमकता, चमकता-डूबता सितारा, वह सितारा जिसने सत्ता का सुख अगर भोगा, तो तिहाड़ जेल की सलाखों की तन्हाई भी झेली. सितारे गर्दिश में पहुंचे तो 54 साल के गोपाल गोयल कांडा अपनी इमारतों की चार-दिवारी में बंद हो गए.
अब जब सुनहरा मौका हाथ लगते देखा तो चार-दिवारी से बाहर आकर चुनावी मैदान में उतर ताल ठोंक दी. ताल ठोंकी तब किसी ने सोचा भी नहीं था कि गोपाल के वक्त का गुणा-गणित आखिर परिणाम क्या निकाल कर देगा?
अतीत पर नजर डालें तो एअर हॉस्टेस गीतिका शर्मा आत्महत्या कांड में कल तक दिल्ली पुलिस जिन गोपाल गोयल कांडा की तलाश में खाक छाना करती थी, अब वही गोपाल गोयल कांडा हरियाणा की राजनीति में लीक से हटकर कुछ कर दिखाने की भागदौड़ में लगे हैं.
हरियाणा के सिरसा जिले के बिलासपुर गांव के मूल निवासी गोपाल गोयल कांडा ने नौजवानी के दिनों में पुश्तैनी धंधा संभाला था. सिरसा की सब्जी मंडी में 'नाप तौल' करने का. सब्जियों की नाप-तौल करते-करते गोपाल गोयल कांडा ने 'नेताओं' की नब्ज पकड़ने का भी हुनर हथिया लिया. बस फिर क्या था, इसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा.
सब्जी मंडी में माप-तौल का 'कांटा' संभालने वाले गोपाल गोयल कालांतर में अपने नाम और जाति के बाद 'कांडा' भी जोड़ने लगे. जबकि गोपाल गोयल के पिता मुरलीधर गोयल की गिनती सिरसा और उसके आसपास के इलाके में नामी वकीलों में हुआ करती थी.
देखते-देखते गोपाल गोयल कांडा हरियाणा के गृह राज्य मंत्री भी बन गए. सब्जी मंडी से निकल कर हरियाणा की राजनीति में कदम रखा. सत्ता का सुख मिला तो गोपाल गोयल कांडा को दो आंखों से जमाने में चार-चार दुनिया नजर आने लगीं.
कहा तो यह भी जाता था कि मेहनतकश गोपाल गोयल कांडा ने संघर्ष के दिनों में जूते बनाने का भी कारोबार किया. यह अलग बात है कि वो कारोबार नहीं चला. जूतों की बड़ी दुकान यानि शो-रुम खोला तो वहां भी किस्मत दगा दे गई. एक जमाने में चर्चाएं तो यह भी हुआ करती थीं कि हमेशा खुद के बलबूते कुछ कर गुजरने की ललक रखने वाले गोपाल गोयल कांडा ने जूते बनाने-बेचने के बाद टीवी रिपेयरिंग का भी काम कुछ वक्त तक किया.
किस्मत ने पलटा अचानक तब मारा जब 1990 के दशक के अंत में गोपाल का प्रापर्टी के कारोबार में 'गणित' सही बैठ गया. रियल स्टेट कारोबार के लिए गोपाल ने चुना हरियाणा का मंहगा शहर दिल्ली से सटा गुरुग्राम (तब गुड़गांव).