हैदराबाद : कोरोना के इस दौर में लोग अपने प्रियजनों के जीवन को बचाने के लिए किसी तरह कर्ज लेकर चिकित्सा का खर्च वहन कर रहे हैं. ऐसे में अस्पतालों द्वारा ओवरचार्ज करना इन मरीजों और उनके रिश्तेदारों के जख्मों पर नमक छिड़कने जैसा काम करता है. कोरोना वायरस के इस कठिन दौर में अस्पतालों की इस तरह की अमानवीयता मरीज और उसके परिजनों का सीधे तौर पर शोषण है.
स्वास्थ्य का मंदिर कहे जाने वाले अस्पताल ही जब लुटेरे बन जाएं, तो कोरोना के खिलाफ जंग में लड़ाई भला कैसे संभव है?
अपने परिजनों को बचाने में जब लोगों के सारे पैसे अस्पतालकर्मियों की जेब भरने में चले जाते हैं, तो हर साल तकरीबन छह करोड़ लोग गरीबी के अंधेरे में धकेल दिए जाते हैं.
खुद की सुरक्षा करना ही लोगों के लिए एक बड़ी चुनौती बनकर रह गई है. कोरोना से देश में 40 हजार लोग मर चुके हैं और 22 लाख लोग इसकी चपेट में हैं. सरकारों की बात करें, तो उन्होंने पहले कोरोना के उपचार के लिए अस्पतालों का प्रबंधन किया था. कोरोना के बढ़ते मामले देख उन्होंने निजी सेवाओं को अनुमति दी.
तेलंगाना उच्च न्यायालय ने मई के तीसरे सप्ताह में स्पष्ट किया कि स्वास्थ्य लोगों का मौलिक अधिकार है और उन्हें अपनी इच्छानुसार इलाज कराने की स्वतंत्रता है.
निजी अस्पतालों पर नाराजगी व्यक्त करने के लिए तेलंगाना उच्च न्यायालय के पास मजबूत कारण हैं.