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महाराष्ट्र की राजनीति में इन परिवारों का रहा है दबदबा - शिंदे परिवार

महाराष्ट्र में विधानसभा चुनावों की हलचल शुरू हो चुकी है. राज्य के राजनीतिक परिवारों ने चुनावों को देखते हुए अपनी तैयारियां शुरू कर दी हैं. महाराष्ट्र की सियासत में कई परिवारों की दूसरी-तीसरी पीढ़ी राजनीतिक विरासत संभालने की तैयारी में है. जानें इन परिवारों के बारे में

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Published : Oct 7, 2019, 11:29 PM IST

Updated : Oct 8, 2019, 4:57 PM IST

मुंबई : महाराष्ट्र में चुनावी बिगुल बज चुका है. पूर्व की भांति इस बार भी राज्य के प्रमुख सियासी परिवारों की साख दांव पर है. वस्तुतः पवार और ठाकरे समेत कुछ ऐसे परिवार हैं, जिनका सूबे की सियासत में हमेशा से दबदबा रहा है. इन परिवारों ने चुनावी हार-जीत के बावजूद राज्य की सत्ता में अपनी पकड़ बनाए रखी और कभी भी अपना रसूख कम नहीं होने दिया. आइए, एक नजर डालते हैं इन परिवारों पर :

पवार परिवार-
महाराष्ट्र की राजनीति का सबसे बड़ा नाम शरद पवार. चार बार सीएम रहे पवार राजनीतिक परिवार से ताल्लुक रखते हैं. यही वजह रही कि सिर्फ 38 साल की उम्र में ही पवार पहली बार मुख्यमंत्री बन गए. इसके अलावा वह केंद्रीय मंत्री भी रहे. कांग्रेस से अपनी राजनीतिक पारी की शुरुआत करने वाले पवार ने 1999 में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) बनाई. पवार की राजनीतिक विरासत उनकी बेटी सुप्रिया सुले संभाल रही हैं. सुप्रिया बारामती से पिछले तीन बार से सांसद हैं और उनके भतीजे अजीत पवार विधायक हैं. अजीत महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री भी रह चुके हैं. पवार परिवार का मराठवाड़ा, बारामती और ग्रामीण पुणे में अच्छा खासा प्रभाव है.

ठाकरे परिवार-
महाराष्ट्र की राजनीति में ठाकरे परिवार ही है, जो बिना चुनाव लड़े भी राज्य की सत्ता का रिमोट कंट्रोल अपने हाथों में रखता है. बालासाहेब ठाकरे ने 1966 में शिवसेना की स्थापना की. पहले मुंबई और फिर पूरे महाराष्ट्र में पार्टी का दबदबा बनाया. नतीजा यह है कि बिना चुनाव लड़े भी ठाकरे परिवार का राज्य की सत्ता में दखल रहता है. फिलहाल उनके बेटे उद्धव शिवसेना चीफ हैं. परिवार की 53 साल से चुनाव न लड़ने की परम्परा से अलग उद्धव के बेटे आदित्य इस बार मुंबई की वर्ली सीट से मैदान में हैं. वहीं, पारिवारिक विवाद के चलते शिवसेना से अलग हुए भतीजे राज ठाकरे ने अपनी पार्टी महाराष्ट्र निर्माण सेना (मनसे) बनाई. राज के बेटे अमित भी राजनीति में सक्रिय हैं. ठाकरे परिवार का मुंबई और आसपास के इलाकों में बेहद प्रभाव है.

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चह्वाण परिवार-
महाराष्ट्र की सियासत में पिछले 50 सालों से सक्रिय चह्वाण परिवार में पिता-पुत्र दोनों ही मुख्यमंत्री रह चुके हैं. शंकरराव चह्वाण 1975 और 1986 में राज्य के सीएम रहे और केंद्र में वित्त और गृह मंत्रालय भी संभाला. वहीं, उनके बेटे अशोक चह्वाण 2008 से 2010 तक मुख्यमंत्री रहे. अशोक 2014 में नांदेड़ लोकसभा सीट सांसद भी रह चुके हैं. उनकी पत्नी अमिता भी विधायक रह चुकीं हैं. चह्वाण परिवार का नांदेड़ जिले में अच्छा खासा दबदबा है.

देशमुख परिवार-
लातूर में जन्मे विलासराव देशमुख महाराष्ट्र की राजनीति का बड़ा नाम हैं. पंचायत चुनाव से अपनी राजनीतिक पारी शुरू करने वाले विलासराव देशमुख 1999 और 2004 में दो बार राज्य के सीएम रह चुके हैं. इसके अलावा वह राज्यसभा सदस्य और यूपीए-2 में केंद्रीय मंत्री भी रहे हैं. उनके बेटे अमित और धीरज भी राजनीति में सक्रिय हैं. देशमुख परिवार का लातूर में बहुत प्रभाव है.

मुंडे परिवार-
दिवंगत गोपीनाथ मुंडे महाराष्ट्र में बीजेपी के बड़े नेता रहे हैं. मुंडे महारष्ट्र सरकार में गृह मंत्री और केंद्र में मंत्री भी रहे. मुंडे की सियासी विरासत उनकी बेटियों के हाथों में है. बड़ी बेटी पंकजा 2009 से बीड़ जिले की परली सीट से विधायक हैं और राज्य सरकार में कैबिनेट मंत्री भी हैं. वहीं, दूसरी बेटी प्रीतम बीड़ से सांसद हैं. गोपीनाथ के भतीजे धनंजय एनसीपी से विधान परिषद सदस्य हैं. मुंडे परिवार का बीड जिले में अच्छा खासा प्रभाव है.

भुजबल परिवार-
छगन भुजबल के बारे में कहा जाता है कि मुंबई के बाहर शिवसेना को बढ़ाने में इनका अहम योगदान है. भुजबल 1985 और 91 में शिवसेना की सीट पर मुंबई के मेयर बने. 1991 में पार्टी से मतभेद के बाद कांग्रेस से जुड़े और 1999 में पहली बार उपमुख्यमंत्री बने. भुजबल का बेटा पंकज नादगांव से विधायक है. उनका भतीजा समीर भी 2009 में सांसद रह चुका है. भुजबल शिवसेना में रहते हुए मुंबई में प्रभावशाली रहे. फिर नासिक जिले में अपनी राजनीतिक पैठ बनाई.

शिंदे परिवार-
बतौर सब इंस्पेक्टर अपने करिअर की शुरुआत करने वाले सुशील शिंदे महाराष्ट्र के सीएम और देश के गृह मंत्री भी रह चुके हैं. 1974 में राजनीति में आने वाले शिंदे 2003 में मुख्यमंत्री बने. इसके अलावा वह यूपीए सरकार में केंद्रीय मंत्री भी रहे. शिंदे महाराष्ट्र में कांग्रेस का दलित चेहरा हैं. शिंदे की राजनीतिक विरासत उनकी बेटी प्रणीति शिंदे संभाल रही हैं. प्रणीति सोलापुर से विधायक हैं. सोलापुर क्षेत्र में शिंदे परिवार मजबूती से अपने पैर जमाए हुए है.

राणे परिवार-
महाराष्ट्र की राजनीति में नारायण राणे भी बड़ा नाम हैं. कहा जाता है कि राणे 60 के दशक मुंबई में सड़कों पर खुलेआम हमला करने वाली हरया-नारया गैंग के सदस्य थे. शिवसेना से अपने सियासी सफर की शुरुआत करने वाले राणे 1990 में पहली बार विधायक बने और 1999 में शिवसेना-बीजेपी सरकार में मुख्यमंत्री बने. राणे 2005 में कांग्रेस में शामिल हुए और 2017 में अपनी पार्टी बनाई. फिर बीजेपी की तरफ से राज्यसभा पहुंचे. कई दलों में रहने के बाबजूद राणे परिवार का सियासी रुतबा कम नहीं हुआ. उनके बेटे नीलेश उनकी विरासत आगे ले जा रहे हैं. राणे परिवार सिंधदुर्ग और कोंकण इलाके में बेहद प्रभावशाली है.

पाटिल परिवार-
महाराष्ट्र की सियासत में एक समय पाटिल परिवार सबसे शक्तिशाली हुआ करता था. पाटिल परिवार के वसंत दादा पाटिल दो बार 1977 और 1983 में राज्य के मुख्यमंत्री रहे. इसके साथ ही वे सांगली से सांसद भी रहे. उनकी पत्नी शालिनी ताई कैबिनेट मंत्री रह चुकीं हैं. पाटिल परिवार की तीसरी पीढ़ी भी राजनीति में सक्रिय है. वसंद दादा के बेटे प्रकाश और पोते प्रतीक सांगली से सांसद रह चुके हैं. पाटिल परिवार का सांगली और आसपास के इलाके में बहुत दबदबा है.

Last Updated : Oct 8, 2019, 4:57 PM IST

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