नई दिल्ली : भारत और अमेरिका के बीच आज एक मजबूत रणनीतिक और रक्षात्मक साझेदारी है और 14,200 करोड़ डॉलर से अधिक कीमत के मजबूत व्यापारिक संबंध हैं. लेकिन लंबे समय से चल रहे विवादों में आव्रजन और एक प्रस्तावित व्यापार सौदा शामिल है. यह एक ऐसे हाथ में न आने वाला सौदा है जो फरवरी 2020 में राष्ट्रपति ट्रंप की भारत यात्रा के दौरान भी इसे कागज पर उतारा नहीं जा सका. हालांकि हाल ही में यूएस इंडिया स्ट्रेटेजिक पार्टनरशिप फोरम द्वारा आयोजित एक वार्षिक सम्मेलन में वाणिज्य और उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने घोषणा की कि संभवत: नवंबर के राष्ट्रपति चुनावों से पहले एक सीमित व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर किए जा सकते हैं.
वाशिंगटन डीसी के हडसन इंस्टीट्यूट में इंडिया इनिशिएटिव की निदेशक डॉ. अपर्णा पांडे ने सीमित व्यापार सौदे की संभावना के बारे में पूछे जाने पर कहा कि इसकी बहुत ज्यादा संभावना नहीं है. 'मुझे यकीन नहीं है कि आने वाले महीनों में किसी भी छोटे या अमुख्य एक व्यापार सौदे पर हस्ताक्षर किए जाएंगे. जो संभव है वो यह है कि अमेरिका भारत को जीएसपी (वरीयता की सामान्य प्रणाली) प्लस प्रदान करे, जो विशेषाधिकार छीन लिए गए थे. यह लगभग 600 से 800 करोड़ अमेरिकी डालर होगा. यह एक ऐसी चीज है जिसे एक कार्यकारी आदेश ने ले लिया था और राष्ट्रपति आने वाले एक या दो महीनों में ऐसा कर सकते हैं. यह छोटे सौदे की तरह प्रतीत होगा. डॉ. पांडे ने अपनी किताब चाणक्य ‘टू मोदी एंड मेकिंग इंडिया ग्रेट’ में इस बात का जिक्र भी किया है.
'एक बड़े व्यापार सौदे के साथ समस्या यह है कि हम एक ऐसे समय में रहते हैं जब भारत और अमेरिका दोनों राष्ट्रवादी और संरक्षणवादी हैं. ‘अमेरिका फर्स्ट’ या अमेरिका को प्राथमिकता देने वाली नीति के साथ आगे बढ़ते हुए के देश को सुविधाएं देना मुश्किल है, जिसे आप पहले ही टैरिफ किंग का खिताब दे चुके हैं और जिसके खिलाफ आप कृषि सब्सिडी से लेकर बौद्धिक संपदा अधिकारों तक अन्य करों के मुद्दे पर मोर्चा लिए हुए हों. इसलिए अमेरिकी राष्ट्रपति के लिए अगले दो महीनों में ऐसा करना मुश्किल है. उन्होंने कहा, मैं नहीं जानती कि क्या यह अगले प्रशासन में भी मुमकिन होगा चाहे वह बाइडेन हों या ट्रंट. यह भारत के पक्ष में भी कठिन है. भारतीय अर्थव्यवस्था को नुकसान हुआ है. भारत के लिए कुछ टैरिफ और कर अपने स्वयं के किसानों और निर्माताओं की रक्षा के लिए महत्वपूर्ण हैं.'
फ्रांस में रहे पूर्व भारतीय राजदूत और व्यापार वार्ताकार मोहन कुमार ने इसी तरह की शंकाओं को प्रतिध्वनित करते हुए कहा कि 2021 की पहली तिमाही से पहले किसी भी व्यापार समझौते की संभावना नहीं है. उन्होंने जटिल मुद्दों को भी सामने रखा जो भारत के लिए अधिक चिंता का विषय हैं.
'सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा अब अमेरिका हमें चीन के साथ जोड़ रहा है और कह रहा है कि हम दोनों देश विकासशील कहलाने के हक़दार नहीं हैं. मेरे जैसे पूर्व वार्ताकार के लिए यह एक चौंकाने वाला तर्क है. आप सेब और संतरे की तुलना कर रहे हैं. हर कोई जानता है कि चीन की 13 ट्रिलियन डालर की अर्थव्यवस्था है, जबकि हम 2.7 ट्रिलियन डालर की अर्थव्यवस्था हैं. हमें इस मुद्दे पर अगले प्रशासन को अपनी ओर करना ही होगा, चाहे जैसे भी. मोहन कुमार ने कहा जो थिंक टैंक आरआइएस के अध्यक्ष हैं और जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी में डीन भी हैं.
'मत्स्य पालन पर आसन्न बहुपक्षीय वार्ताओं के कारण मेरे लिए सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है कि हम विकासशील देश होने का दर्जा वापस प्राप्त करें. हम विश्व व्यापार संगठन में बातचीत करने का जोखिम नहीं उठा सकते हैं. यदि अमेरिका कहता है कि हम आपके साथ चीन या किसी अन्य देश की तरह व्यवहार करने जा रहे हैं. बाकी सब कुछ, मुझे विश्वास है कि, हम सुलझा सकते हैं लेकिन, यह अत्यंत महत्वपूर्ण मुद्दा है जिस पर मैं लाइटहाइज़र (यूएस व्यापार प्रतिनिधि मंडल) राज़ी होता नज़र नहीं आ रहा है.' कुमार ने जीएसपी के साथ-साथ एक और जटिलता के रूप में डिजिटल सेवा कर की ओर इशारा करते हुए कहा.