कुवैत छोड़ने को मजबूर लाखों भारतीय, जानें खाड़ी देशों में बसे प्रवासियों के मुद्दे - तेल की खदान
कोरोना वायरस महामारी के बाद कुवैत में विदेशियों की संख्या कम करने को लेकर कुवैत में प्रवासी कोटा बिल के मसौदे को मंजूरी मिल गई है. कुवैत की नेशनल असेंबली की कानूनी और विधायी समिति द्वारा बिल के मसौदे को मंजूरी दी गई. बिल के मुताबिक, भारतीयों की संख्या कुल आबादी के 15 प्रतिशत से अधिक नहीं होना चाहिए. कुवैत की मौजूदा कुल आबादी 43 लाख है. इनमें कुवैतियों की आबादी 13 लाख है, जबकि प्रवासियों की संख्या 30 लाख है. पढ़ें विस्तार से...
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Published : Jul 7, 2020, 5:28 AM IST
हैदराबाद : कोरोना वायरस महामारी के बाद कुवैत में विदेशियों की संख्या कम करने को लेकर कुवैत में प्रवासी कोटा बिल के मसौदे को मंजूरी मिल गई है. कुवैत की नेशनल असेंबली की कानूनी और विधायी समिति द्वारा बिल के मसौदे को मंजूरी दी गई. बिल के मुताबिक, भारतीयों की संख्या कुल आबादी के 15 प्रतिशत से अधिक नहीं होना चाहिए. कुवैत की मौजूदा कुल आबादी 43 लाख है. इनमें कुवैतियों की आबादी 13 लाख है, जबकि प्रवासियों की संख्या 30 लाख है.
प्रवासी भारतीय मजदूर
मीडिया के रिपोर्ट्स के अनुसार आठ लाख भारतीयों को कुवैत छोड़ना पड़ सकता है, क्योंकि भारतीय समुदाय की बड़ी आबादी है, जो 14.5 लाख है.
पिछले महीने कुवैत के प्रधानमंत्री शेख सबा अल खालिद अल सबा ने प्रवासियों की संख्या 70 प्रतिशत से घटाकर आबादी का 30 प्रतिशत करने का प्रस्ताव दिया था.
प्रवासी भारतीय मजदूर
भारतीय मिशनों से प्राप्त आंकड़ों के अनुसार विदेश में 13.62 मिलियन भारतीय रहते हैं.
खाड़ी देशों में भारतीयों की संख्या :-
देश
भारतीय (संख्या)
भारतीय (प्रतिशत)
बहरीन
323292
3.63%
कुवैत
1029861
11.56%
ओमान
779351
8.75%
कतर
756062
8.49%
सऊदी अरब
2594947
29.14%
संयुक्त अरब अमीरात
3420000
38.14%
खाड़ी देशों में कुल भारतीय
8903513
दुनियाभर में कुल प्रवासी भारतीय
13619384
65.37%
खाड़ी देशों में प्रवासी भारतीय :-
1970 के दशक में तेल उद्योग में उछाल के बाद भारतीय मजदूर बड़ी संख्या में खाड़ी देश जाने लगे. जैसे-जैसे खाड़ी देशों की अर्थव्यवस्था में तेजी से विस्तार हुआ, प्रवासी मजदूरों की संख्या लगातार बढ़ती गई. खाड़ी देशों में मजदूरों की कमी थी, जिसके कारण विदेशी श्रमिकों से काम लेने की नीति शुरू की गई.
खाड़ी देशों को भारतीय और दक्षिण एशियाई देशों से अधिक मजदूरों को भर्ती करने में रुचि थी. चूंकि दक्षिण एशियाई मजदूर कम कुशलता वाली नौकरियों के लिए जल्द हां कर देते थे.
यहां पर करीब 70% भारतीय निर्माण क्षेत्र में मजदूर, तकनीशियन और घरों में नौकर और ड्राइवर का काम करते हैं. हालांकि, पिछले एक दशक में अत्यधिक कुशल प्रवासी भी इन देशों में जाने लगे हैं.
खाड़ी देशों में भारतीय प्रवासियों से जुड़े प्रमुख मुद्दे :-
वेतन का भुगतान न होना.
श्रम अधिकारों और लाभों से इनकार.
निवास परमिट जारी न करना/नवीनीकरण.
प्रवासी भारतीय
ओवरटाइम भत्ते का गैर-भुगतान/अनुदान
साप्ताहिक अवकाश.
लंबे समय तक काम करना.
भारत की यात्रा के लिए निकास/पुनः प्रवेश परमिट देने से इनकार.
प्रवासी भारतीय मजदूर
कर्मचारी को उनके अनुबंधों के पूरा होने और चिकित्सा और बीमा सुविधाओं आदि के गैर-प्रावधान के बाद अंतिम निकासी वीजा पर अनुमति देने से इनकार करना.
घरेलू महिला कर्मचारी को प्रसवास्था के दौरान मालिकों द्वारा काम से निकाल देना.
प्रवासी भारतीय मजदूर
2014 से अक्टूबर 2019 के बीच खाड़ी देशों में जान गंवाने वाले प्रवासी मजदूर :-
देश
मौतें
बहरीन
1235
कुवैत
3580
ओमान
3009
कतर
1611
सऊदी अरब
15022
यूएई
9473
2014 से नवंबर 2019 तकविभिन्न कारणों को लेकर भारतीय मजदूरों द्वारा की गई शिकायतें :-
देश
शिकायतें
बहरीन
4458
कतर
19013
सऊदी अरब
36570
ओमान
14746
कुवैत
21977
यूएई
14424
खाड़ी देशों से भेजा गया धन (विश्व बैंक की रिपोर्ट 2018) :-
देश
भेजा गया धन
(मिलियन-डॉलर)
यूएई
$13,823 mn
सऊदी अरब
$11,239 mn
कुवैत
$4,587 mn
कतर
$4.143 mn
ओमान
$3250 mn
कोविड-19 और भारतीय प्रवासी मजदूरों पर प्रभाव :-
फारस की खाड़ी क्षेत्र में बड़ी संख्या में भारतीयों को निर्माण क्षेत्रों, रेस्तरां, ड्राइवर, छोटे उद्यमों, सेवा क्षेत्रों और घरेलू सेवाओं में छोटी नौकरी दी जाती है.
उनमें से अधिकांश को अपना जीवन यापन करने के लिए रोजाना बाहर जाने की जरूरत है. इन दिहाड़ी मजदूरों को अक्सर उनके आवास और भोजन के लिए मुफ्त आवास या भत्ते प्रदान किए जाते हैं. इसके अलावा, ये मजदूर समय-समय पर अपनी मासिक आय बढ़ाने की कोशिश करते हैं.
लॉकडाउन ने उन्हें बिना किसी आय के कार्यबल से बाहर रहने के लिए मजबूर किया है. इसका न केवल खाड़ी में प्रवासियों पर बल्कि भारत में उनके लाखों परिवार के सदस्यों पर वित्तीय प्रभाव पड़ता है जो इन प्रवासियों द्वारा भेजे गए धन पर निर्भर हैं.
इन श्रमिकों का स्वास्थ्य खतरे में हैं, क्योंकि वे सामाजिक दूरी बनाए रखने के लिए अपर्याप्त शिविरों के साथ श्रम शिविरों, डॉर्मिटरी और साझा अपार्टमेंट में रहते हैं.
कम जगह में रहने और अस्वच्छता से इन मजदूरों के कोरोना वायरस होने के जोखिम को बढ़ाती है.
इन कम आय वाले प्रवासी मजदूरों को खाड़ी देशों में सामाजिक सुरक्षा और स्वास्थ्य बीमा से काफी हद तक बाहर रखा गया है, जो कि संक्रमित होने पर स्वास्थ्य संबंधी लाभ और उपचार तक उनकी पहुंच कम कर देंगे.