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ग्लियोमा ब्रेन ट्यूमर के लिए भारत-जापान के वैज्ञानिकों ने उपकरण विकसित किया - ग्लियोमा ग्रेडिंग का कम्प्यूटेशनल प्रणाली

ग्लियोमा ब्रेन ट्यूमर के रोगियों के लिए भारत और जापान के वैज्ञानिकों ने उपचार चुनने में मदद के लिए एक उपकरण विकसित किया है. उपकरण विकसित करने में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) एल्गोरिदम में मदद करते हैं.

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प्रतीकात्मक चित्र

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Published : Jun 10, 2020, 10:34 PM IST

नई दिल्ली : भारत और जापान के वैज्ञानिकों ने ग्लियोमा ब्रेन ट्यूमर के रोगियों के लिए सबसे प्रभावी उपचार चुनने में मदद के लिए एक उपकरण विकसित किया है. शोधकर्ताओं के अनुसार नई मशीन ब्रेन ट्यूमर का लगभग 98 प्रतिशत सटीक जानकारी के साथ निम्न या उच्च ग्रेड में वर्गीकृत कर सकेगा. शोधकर्ताओं ने आईईई एक्सेस नामक पत्रिका में यह जानकारी दी है.

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान रुड़की (आईआईटी-आर) के शोधकर्ता बालसुब्रमण्यम रमन ने कहा, 'मस्तिष्क एमआरआई स्कैन से ग्लियोमा के स्तर की भविष्यवाणी करना अन्य अत्याधुनिक तरीकों से बेहतर है.'

शोधकर्ताओं के अनुसार ग्लिओमास एक सामान्य प्रकार का मस्तिष्क ट्यूमर है. यह ग्लियाल कोशिकाओं को प्रभावित करता है. इसके द्वारा न्यूरॉन्स इन्सुलेशन के लिए भेजता है.

ट्यूमर का उपचार गतिविधियों के आधार पर भिन्न होता है, इसलिए प्रत्येक व्यक्ति के लिए सही इलाज करना महत्वपूर्ण है.

रेडियोलॉजिस्ट स्कैन किए गए ऊतक (टिश्यू) की 3डी छवि को फिर से सही करने के लिए एमआरआई स्कैन से बहुत बड़ी मात्रा में डेटा प्राप्त करते हैं.

एमआरआई स्कैन में उपलब्ध अधिकांश डेटा को नग्न आंखों द्वारा नहीं पहचाना जा सकता है, जैसे कि ट्यूमर के आकार, बनावट या छवि से संबंधित जानकारी है. आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) एल्गोरिदम इस डेटा को निकालने में मदद करते हैं.

मेडिकल ऑन्कोलॉजिस्ट रोगी के उपचार में सुधार के लिए रेडियोमिक्स नामक तरीके का उपयोग कर रहे हैं. हालांकि इसकी सटीकता को अभी भी बढ़ाने की आवश्यकता है.

वर्तमान अध्ययन के लिए क्योटो विश्वविद्यालय के इंस्टीट्यूट फॉर इंटीग्रेटेड सेल-मटेरियल साइंसेज (iCeMS, जापान) में बायोइन्जीनियर गणेश पांडियन नामसीवयम ने जानकारी इकट्ठा करने वाली मशीन को विकसित करने के लिए भारतीय डेटा वैज्ञानिक रमन का साथ लिया है. अब इससे 97.54 प्रतिशत सटीकता के साथ ग्लियोमा को निम्न या उच्च वर्ग में रखा जा सकता है.

दरअसल रोगी का सही उपचार ग्लियोमा के ग्रेडिंग पर निर्धारित होता है.

राहुल कुमार, अंकुर गुप्ता और हरकीरत सिंह अरोड़ा सहित पूरी टीम ने एमआरआई स्कैन की उच्च श्रेणी के ग्लियोमा वाले 210 रोगी और निचले स्तर के ग्लियोमा के 75 अन्य लोगों के डेटासेट का उपयोग किया है.

उन्होंने सीजीएचएफ नामक उपकरण विकसित किया है. हाइब्रिड रेडिओमिक्स और तरंग-आधारित सुविधाओं का उपयोग करने के लिए ग्लियोमा ग्रेडिंग का कम्प्यूटेशनल प्रणाली है.

इस प्रणाली के तहत एमआरआई स्कैन का विशिष्ट एल्गोरिदम को चुना और फिर इस डेटा से ग्लियोमा ग्रेडिंग बताने वाला एल्गोरिदम तैयार किया. फिर उन्होंने इसकी सटीकता का आकलन करने के लिए बाकी एमआरआई स्कैन पर अपने मॉडल का परीक्षण किया.

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