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विशेष लेख : भारतीय प्रवासी - दोस्ती और विकास के पुल

विदेश में नौकरी के लिए जाने वाले सभी लोगों को बीमा कराना चाहिए, जिससे अचानक नौकरी चले जाने या किसी और सूरत में वो अपना ख्याल रख सके. पीपीपी फॉर्मेट के तहत बाहर जाने से पहले कौशल विकास और जानकारी का कार्यक्रम चलाया जाता है. लेकिन सभी सावधानियों के बावजूद कई बार मुश्किलें आ जाती हैं. इससे निबटने के लिए भारत सरकार ने कई देशों के साथ समझौते किए हैं, जिनके तहत बाहर रहने वाले सभी भारतीयों के साथ सही बर्ताव सुनिश्चित किया जाता है और साथ ही दूतावास स्तर पर लगातार बातचीत कर मुद्दों को उठाया जाता है. दूतावास में 'ओपन हाउस' कार्यक्रमों की मदद से लोग अपनी शिकायतें और समस्याओं का निस्तारण कर सकते हैं और साथ ही दूतावासों में 24 घंटे आपातकालीन नंबर उपलब्ध रहते हैं.

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Published : Mar 1, 2020, 4:38 PM IST

Updated : Mar 3, 2020, 1:53 AM IST

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प्रतीकात्मक चित्र

नॉन रेजिडेंट इंडियन और ओवरसीज सिटीजन ऑफ इंडिया के अंतर्गत आने वाले 1.8 करोड़ भारतीय प्रवासियों को दुनिया का सबसे बड़ा प्रवासी समुदाय माना जाता है. अलग-अलग देशों में इन प्रवासी भारतीयों के योगदान को सराहा गया है. अपनी कार्यकुशलता और कर्मठता के कारण आज की तारीख में ये लोग पसंदीदा कर्मचारियों में गिने जाते हैं और नॉर्थ अमेरिका से लेकर मिडिल ईस्ट में इन लोगों की मांग है. यूएई में 34 लाख, अमेरिका में 26 लाख और सऊदी अरब में 24 लाख की आबादी के साथ यह सबसे बड़ा समुदाय है.

राष्ट्रपति ट्रंप ने अपने हाल के भारत दौरे के दौरान, अमरीका की तरक्की में 40 लाख प्रवासी भारतीय समुदाय के योगदान को याद किया. खाड़ी के देशों में सभी विदेशियों में इन्हें सबसे अधिक भरोसेमंद माना जाता है और पसंद किया जाता है. 'इंडिया इकनोमिक स्ट्रेटजी 2035' में ऑस्ट्रेलिया सरकार ने ऑस्ट्रेलिया में मौजूद भारतीय मूल के लोगों को राष्ट्रीय आर्थिक संपदा करार दिया है और इन्हें इस संदर्भ में और बढ़ाने की बात कही है. इसमें आगे कहा है कि प्रवासी भारतीय समुदाय की उद्यमी सोच, खासतौर पर नये शोध और जोखिम उठाने की क्षमता और भारतीय बाजार की जानकारी ऑस्ट्रेलिया के व्यापारिक समुदाय के लिये फायदेमंद साबित हो सकती है. इस समुदाय का अपने देशों में बढ़ता आर्थिक वर्चस्व उन देशों में भारत के लिए मजबूती लाता है. आज की तारीख में प्रवासी भारतीय बड़ी कंपनियों के सर्वोच्च पदों पर हैं और यह भारत के लिए गर्व की ही बात नहीं है, बल्कि इससे देश में निवेश के रास्ते भी खुलते हैं. भारत के आईटी और आर्थिक क्षेत्र में इनकी भागीदारी बड़ी है. साथ ही, इनके द्वारा सालाना भारत में आने वाले 60 अरब डॉलर, भारतीय अर्थव्यवस्था को मजबूती देता है.

हालांकि, भारतीय कामगारों के उत्पीड़न के भी मामले काफी हैं, खासतौर पर खाड़ी के देशों में. इसके पीछे मुख्य कारण नियमों की अनदेखी, मजदूरों के गैरकानूनी एजेंट, और कई बार असंवेदनशील मालिक हैं. इन मामलों में कई बार लोगों की मजबूरी बड़ी भूमिका निभाती है. खासतौर पर तब, जब कई युवा पश्चिमी देश जाने के अपने सपनों को साकार करने के लिए इकतरफा करार पर दस्तखत कर देते हैं और गैरकानूनी तरीके से अन्य देशों में पहुंच जाते हैं.

खाड़ी के देशों में वर्क परमिट/इकामा में कई बार निकासी के लिए कड़े कायदे और एकतरफा शर्तें हो सकती हैं. नौकरी देने वालों की ओर से कई बार ऐसे लोगों के पासपोर्ट अपने पास रख लिए जाते हैं, जो भारतीय पासपोर्ट नियमों के खिलाफ है. किसी परेशानी की सूरत में, अपनी पहचान साबित करने के लिए, आप अपने पास अपना आधार कार्ड या ड्राइविंग लाइसेंस रखें. कई बार एजेंट और बिचौलिये नौकरी के लिए तैयार लोगों को सुनहरी तस्वीर दिखाते हैं और सही जानकारी छिपाते हैं. यह जरूरी है कि लोग अपने राज्य के सरकारी केंद्रों से जानकारी लें और अपने करार और यात्रा संबंधी सभी दस्तावेजों की एक कॉपी घर पर भी रखें. भारतीय संस्थाओं से सही दिशानिर्देश लेना और अरबी भाषा के कुछ शब्द सीखना भी जरूरी है.

इस वर्ग के भारतीयों के बचाव के लिए इनके पासपोर्ट पर 'इमिग्रेशन क्लियलरेंस रिक्वायर्ड' की मुहर रहती है, जो विदेश मंत्रालय स्थित प्रोटेकर्रेट जनरल ऑफ इमिग्रेंट द्वारा दी जाती है. ब्यूरो ऑफ इमिग्रेशन के सहयोग से 'ई-माइग्रेंट' प्रणाली के माध्यम से नौकरी देने वाली विदेशी कंपनियों और नागरिकों का डेटा रखा जाता है, जिससे इनकी जवाबदेही भी निर्धारित रहे. सभी देशों के भारतीय दूतावासों में भी मुश्किल में फंसे भारतीयों की मदद के लिए फंड रखा जाता है, जिससे न केवल इन लोगों की आर्थिक मदद की जा सके बल्कि उन देशों की सरकारों और काम देने वालों से वाद विवाद का निबटारा हो सके. ऐसे कई मामले हुए हैं, जब भारतीय आया या नर्सों के साथ बुरा सलूक किया गया है और भारतीय दूतावास ने इन्हें अपने यहां शरण दी है.

विदेश में नौकरी के लिए जाने वाले सभी लोगों को बीमा कराना चाहिए, जिससे अचानक नौकरी चले जाने या किसी और सूरत में वो अपना ख्याल रख सकें. पीपीपी फॉर्मेट के तहत बाहर जाने से पहले कौशल विकास और जानकारी का कार्यक्रम चलाया जाता है. लेकिन सभी सावधानियों के बावजूद कई बार मुश्किलें आ जाती हैं. इससे निबटने के लिए भारत सरकार ने कई देशों के साथ समझौते किए हैं, जिनके तहत बाहर रहने वाले सभी भारतीयों के साथ सही बर्ताव सुनिश्चित किया जाता है और साथ ही दूतावास स्तर पर लगातार बातचीत कर मुद्दों को उठाया जाता है. दूतावास में 'ओपन हाउस' कार्यक्रमों की मदद से लोग अपनी शिकायतें और समस्याओं का निस्तारण कर सकते हैं और साथ ही दूतावासों में 24 घंटे आपातकालीन नंबर उपलब्ध रहते हैं.

पूर्व विदेश मंत्री स्वर्गीय सुषमा स्वराज ने भारतीय दूतावासों को 'घर से दूर घर' कहा था और वह कई बार इतने बड़े प्रवासी भारतीय समुदाय में एकल मामलों में खुद हस्तक्षेप करती थीं. वर्तमान विदेश मंत्री भी इस पर अधिक जोर देते हैं. पीएम मोदी ने विदेश में रह रहे भारतीयों के भले के लिए खास जोर दिया है और इनके लिए खास आयोजित कार्यक्रमों में वह हिस्सा लेते रहे हैं. विदेश में रह रहे भारतीयों के योगदान और देश से उनके जुड़ाव को मजबूत करने के मकसद से प्रवासी भारतीय दिवस मनाया जाता है, जहां प्रवासी भारतीयों को पुरस्कृत किया जाता है. कई राज्य सरकारों ने भी अपने प्रवासियों से जुड़ाव के लिए अपने-अपने कार्यक्रम शुरू किये हैं. किसी भी मुश्किल की घड़ी में भारतीय दूतावास आपका सिंगल प्वॉइंट सूत्र है. दूतावास से मदद मांगने में किसी तरह की झिझक नहीं होनी चाहिए.

भारत न केवल अपने नागरिकों के लिए बल्कि पड़ोस के कई देशों के नागरिकों के लिए भी मुश्किल के समय सबसे आगे खड़ा रहा है. हाल ही में कोरोना वायरस के कारण चीन से लोगों को निकालना हो या युद्धग्रस्त यमन, लीबिया, लेबनान, सीरिया और इराक से लोगों को निकालना, भारत ने अपनी प्रतिबद्धता लगातार साबित की है.

विदेश जाने वाले भारतीयों को यह ध्यान रखना चाहिए कि भारत सरकार ने किन देशों की यात्रा न करने की सलाह जारी की है और साथ ही भारतीय दूतावासों द्वारा समय समय पर जारी सलाह को ध्यान में रखना चाहिए, जिससे वो किसी मुश्किल हालात में न फंस जाएं.

लेखक - अनिल त्रिगुनायत

(लीबिया, जॉर्डन और माल्टा में भारत के पूर्व राजदूत)

Last Updated : Mar 3, 2020, 1:53 AM IST

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