हैदराबाद : पूर्व-ब्रिटिश दिनों में हिंदू और मुसलमानों को पाठशालाओं और मदरसों के माध्यम से शिक्षित किया गया था. अंग्रेजों के आने के बाद शिक्षा के लिए नया मिशनरी सिस्टम आया.
उन्होंने भारतीय का एक वर्ग बनाने का लक्ष्य रखा, जो खून और रंग में भारतीय हो, लेकिन स्वाद में अंग्रेजी हो. जो सरकार और जनता के बीच दुभाषियों के रूप में काम करे. आज, भारत एक तेजी से विकास करने वाला देश है, जिसमें समावेशी, उच्च-गुणवत्ता वाली शिक्षा अपनी भविष्य की समृद्धि के लिए अत्यधिक महत्व रखती है.
आज भारतीय शिक्षा प्रणाली अन्य देशों के मुकाबले में काफी पिछड़ती नजर आ रही है और न केवल विकसित देश बल्कि भारत के कई पड़ोसी देश शिक्षा के मामले में काफी आगे हैं. भारत अपने दक्षिण एशियाई समकक्षों में दूसरे सबसे कम शिक्षा स्कोर (66/100), अफगानिस्तान से थोड़ा आगे (65) और ग्रुप लीडर श्रीलंका (75) से बहुत पीछे है.
शिक्षा में आने वाली परेशानियां
सर्वोत्तम प्रयासों के बावजूद हमारा शैक्षिक विकास निम्न स्तर पर बना हुआ है. पर्याप्त धन की कमी शिक्षा के विकास में मुख्य समस्या है. पंचवर्षीय योजनाओं में शिक्षा का परिव्यय कम हो रहा है. अपर्याप्त धन के कारण, अधिकांश शैक्षणिक संस्थानों में बुनियादी सुविधाओं, विज्ञान उपकरणों और पुस्तकालयों आदि की कमी है.
भारत में विश्वविद्यालय, पेशेवर और तकनीकी शिक्षा महंगी हो गई है. इसके अलावा विज्ञान विषयों में शिक्षा का माध्यम अंग्रेजी है, इसलिए जो ग्रामीण छात्र अंग्रेजी में कमजोर हैं, वह विज्ञान का अंग्रेजी में ठीक से अध्ययन नहीं कर पाते.
ब्रेन ड्रेन
जब योग्य उम्मीदवारों को देश में उपयुक्त नौकरी नहीं मिलती है, तो वे नौकरी मांगने के लिए विदेश जाना पसंद करते हैं. इसलिए हमारा देश अच्छी प्रतिभाओं से वंचित है. इस घटना को 'ब्रेन ड्रेन' कहा जाता है.
संवैधानिक निर्देशों और आर्थिक नियोजन के बावजूद, हम शत-प्रतिशत साक्षरता हासिल नहीं कर पा रहे हैं. भारत में अभी भी 35 फीसदी लोग अनपढ़ हैं.
भारत में, निरक्षरों की संख्या दुनिया के कुल निरक्षरों की लगभग एक तिहाई है. उन्नत देश 100 फीसदी साक्षर है, जबकि भारत में स्थिति काफी निराशाजनक है.
हमारी शिक्षा प्रणाली सामान्य शिक्षा पर आधारित है. प्राथमिक और माध्यमिक स्तर में ड्रॉपआउट दर बहुत अधिक है.