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मौसम में बदलाव से दस फीसदी तक गिर सकती है भारतीय अर्थव्यवस्था: अध्ययन - भारतीय अर्थव्यवस्था

एक अध्ययन से खुलासा हुआ कि इस सदी में जलवायु परिवर्तन के कारण भारत की अर्थ व्यवस्था 10 प्रतिशत तक का नुकसान हो सकता है.

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Published : Aug 20, 2019, 2:55 AM IST

Updated : Sep 27, 2019, 2:35 PM IST

लंदन: जलवायु परिवर्तन भारत की अर्थव्यवस्था को इस सदी के अंत तक 10 प्रतिशत तक कम कर सकता है. सोमवार को प्रकाशित एक अध्ययन में यह जानकारी दी गई है. इसमें कहा गया है कि अगर पेरिस समझौता नहीं होता है तो लगभग सभी देश - चाहे वे अमीर हों या गरीब, उष्ण हों या शीत, सभी आर्थिक रूप से प्रभावित होंगे.

ब्रिटेन में कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने कहा कि मौजूदा आर्थिक शोध उष्ण या गरीब राष्ट्रों पर जलवायु परिवर्तन के बोझ का अनुमान लगाते हैं. वे 174 देशों के 1960 के बाद से एकत्र आंकड़ों का प्रयोग करते हैं.

कुछ लोगों का अनुमान है कि शीत देश या धनी अर्थव्यवस्थाएं इससे अप्रभावित रहेंगी या यहां तक ​​कि उच्च तापमान वाले देशों को इससे लाभ मिल सकता है.

हालांकि, नेशनल ब्यूरो ऑफ इकोनॉमिक रिसर्च द्वारा प्रकाशित अध्ययन से पता चलता है कि - औसतन, अमीर, ठंडे देश भी उतनी ही आमदनी खो देंगे जितनी कि गरीब और गरम देश.

ऐसा तब होगा जब तक उत्सर्जन परिदृश्य के हालात ऐसे ही सामान्य बने रहते हैं जिनमें सदी के अंत तक औसत वैश्विक तापमान में चार डिग्री सेल्सियस से अधिक बढ़ने का अनुमान है.

शोधकर्ताओं ने कहा कि इसके कारण 2100 तक अमेरिका का सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी), मौजूदा से 10.5 प्रतिशत कम हो जाएगा जो कि पर्याप्त रूप से नुकसानदायक हो सकता है.

उन्होंने कहा कि इसी प्रकार जापान, भारत और न्यूजीलैंड अपनी आय का 10 प्रतिशत खो देंगे.

शोधकर्ताओं ने कहा कि कनाडा दावा करता है कि वह तापमान में वृद्धि से आर्थिक रूप से लाभान्वित होगा, वह भी साल 2100 तक अपनी मौजूदा आय का 13 प्रतिशत से अधिक खो देगा.

अध्ययन से पता चलता है कि पेरिस समझौते को बनाए रखना, जिसका उद्देश्य वैश्विक औसत तापमान में वृद्धि को दो डिग्री सेल्सियस से नीचे रखना है, दोनों उत्तर अमेरिकी राष्ट्रों के घाटे को जीडीपी के दो प्रतिशत से कम करता है.

शोधकर्ताओं ने कहा कि वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद का सात प्रतिशत सदी के अंत तक खत्म होने की आशंका है.

स्विट्जरलैंड की अर्थव्यवस्था में साल 2100 तक 12 प्रतिशत की कमी होने की संभावना है. रूस अपने सकल घरेलू उत्पाद का नौ प्रतिशत तो ब्रिटेन चार प्रतिशत नीचे आ जाएगा.

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कैंब्रिज के फैकल्टी ऑफ इकोनॉमिक्स के अध्ययन के सह-लेखक, कमीआर मोहद्देस ने कहा, 'चाहे शीत लहर हो या गर्म हवा के थपेड़े, सूखा, बाढ़ या प्राकृतिक आपदाएं, जलवायु की स्थिति का अपने ऐतिहासिक मानदंडों से विचलनों का आर्थिक प्रभाव पड़ता है.'

मोहद्देस ने कहा कि पर्यावरण के अनुकूल नीतियों के बिना, कई देशों में ऐतिहासिक मानदंडों के सापेक्ष निरंतर तापमान में वृद्धि का अनुभव हो रहा है और परिणामस्वरूप आमदनी के बड़े हिस्से का नुकसान हो सकता है. यह बात अमीर और गरीब दोनों देशों के लिए ही नहीं बल्कि गर्म और ठंडे इलाकों के लिए भी है.

Last Updated : Sep 27, 2019, 2:35 PM IST

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