दिल्ली

delhi

ETV Bharat / bharat

कोरोना से जंग जीतने के लिए वेंटिलेटर उत्पादन में तेजी लाएगा भारत

पूरा विश्व कोरोना वायरस के खिलाफ जंग का एलान कर चुका है. ऐसे में स्वास्थ्य सुविधाओं से जुड़ी आवश्यक वस्तुओं की मांग बड़ी तेजी से बढ़ रही है. कोविड-19 से संक्रमित गंभीर मरीजों के इलाज के लिए इस वक्त वेंटिलेटर की मांग में तेजी आई है. पढ़ें पूरी खबर.....

photo
प्रतीकात्मक तस्वीर.

By

Published : Apr 21, 2020, 12:19 PM IST

Updated : Apr 21, 2020, 12:26 PM IST

हैदराबाद : आज हम सब कोरोना वायरस के खतरे से जूझ रहे हैं. इस महामारी ने पूरी दुनिया को लॉकडाउन के मोड पर ला खड़ा किया है. कोरोना के मरीजों को स्वस्थ करने के लिए डॉक्टर जी जान से जुटे हुए हैं. इस समय कोविड-19 के इलाज के लिए वेंटिलेटर की मांग बढ़ गई है.

वेंटिलेटर निर्माण के क्षेत्र में अग्रणी भारतीय चिकित्सा और प्रौद्योगिकी कंपनियां आगे आई हैं. ये कंपनिया वेंटिलेटर मशीनों के घरेलू उपयोग पर जोर दे रही हैं, जिसकी वजह से इसके निर्माण को लेकर अब प्रतिस्पर्धा काफी बढ़ गई है. इतना ही नहीं इन मशीनों को सस्ती कीमत पर डिजाइन करने के लिए अनुसंधान भी चल रहा है.

गंभीर रूप से बीमार मरीजों के लिए वेंटिलेटर
कोरोना वायरस आपके फेफड़ों को संक्रमित करता है. इसके दो मूल लक्षण होते हैं बुखार और सूखी खांसी. कई बार इसके कारण व्यक्ति को सांस लेने में भी दिक्कत पेश आती है.

इंसान के फेफड़े शरीर में वो जगह हैं, जहां से ऑक्सीजन शरीर में पहुंचना शुरू होता है जबकि कार्बन डाई ऑक्साइड शरीर के बाहर निकलता है.

लेकिन कोरोना वायरस के बनाए छोटे-छोटे एयरसैक में पानी जमने लगता है और इस कारण मरीज को सांस लेने में तकलीफ होती है. इसके बाद मरीज लंबी सांस नहीं ले पाते. ऐसे स्टेज में मरीज को वेंटिलेटर की जरूरत पड़ती है.

जानकारी के मुताबिक तीन प्रतिशत कोरोना से संक्रमित मरीजों को ही वेंटिलेटर सपोर्ट की आवश्यकता होती है.

वर्तमान में भारत में 60 हजार वेंटिलेटर उपलब्ध
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार, वर्तमान में भारत में 60,000 वेंटिलेटर उपलब्ध हैं. इनमें से 10,000 से भी कम सरकारी अस्पतालों में हैं. कोरोना संकट को देखते हुए यह अनुमान है कि भारत को वर्तमान में 1.10 से 2.20 लाख वेंटिलेटर की आवश्यकता है.

अगर सामान्य रूप से स्पेयर पार्ट्स मिल जाते हैं तो भारत प्रति माह 5,500 वेंटिलेटर का निर्माण कर सकता है.

वहीं घरेलू रूप से 2,700 वेंटिलेटर फरवरी में और 5,580 मार्च में निर्मित किए गए थे जबकि भारत का लक्ष्य मई तक 50,000 इकाइयों की मासिक उत्पादन क्षमता हासिल करना है.

घरेलू वेंटिलेटर (देश में निर्मित) की कीमत पांच लाख से लेकर सात लाख रुपये तक है जबकि बाहर से (Imported) मंगाए गए वेंटिलेटर की कीमत 11 लाख से लेकर 18 लाख रुपये के बीच है.

वेंटिलेटर दो प्रकार के होते हैं-

1. माइक्रोप्रोसेसर आधारित तीसरी पीढ़ी (Third Generation)के वेंटिलेटर आईसीयू में बड़े पैमाने पर उपयोग किए जाते हैं.

2. इसी तरह, कृत्रिम मैनुअल ब्रीदिंग यूनिट (ManualBreathing Unit) या बैग वाल्व मास्क वेंटिलेटर भी आपातकाल के समय में उपयोगी होते हैं. इसे अंबु बैग भी कहा जाता है, ये वेंटिलेटर काफी किफायती होते हैं.

अम्बु बैग का उपयोग मुख्य रूप से रोगी को सांस लेने में कठिनाई, कमजोर, सांस लेने में कोई समस्या या ऑक्सीजन की कमी को हल करने के लिए है.

कंपनियां का वेंटिलेटर निर्माण के प्रति सकारात्मक रुख
बीईएल, बीएचईएल और महिंद्रा एंड महिंद्रा ने स्कैन्रे के साथ मिलकर काम किया है, जिसका मासिक उत्पादन 2,000 वेंटिलेटर है.मई तक उत्पादन क्षमता बढ़ाकर 30,000 कर दी जाएगी.

मारुति सुजुकी इंडिया लिमिटेड AgVa हेल्थकेयर के साथ साझेदारी करने के लिए तैयार है. वर्तमान में, AgVa इकाइयों की उत्पादन क्षमता को 400 से 10,000 तक बढ़ाने का प्रयास चल रहा है.

रक्षा अनुसंधान एंव विकास संगठन (डीआरडीओ) और भारतीय रेलवे सहित देश के विभिन्न तकनीकी, चिकित्सा और शैक्षणिक संस्थान इस संकट को हल करने के लिए आगे आए हैं.

उन्होंने उन्नत तकनीक का उपयोग कर वेंटिलेटर के नमूने तैयार किए हैं. विशेष रूप से डीआरडीओ का उद्देश्य कम लागत, उच्च क्षमता वाले वेंटिलेटर का उत्पादन करना है. जबकि कई मॉडल तैयार किए गए हैं, कुछ पहले से ही निर्मित किए जा रहे हैं.

वैसे ही, श्री चित्रा तिरुनल इंस्टीट्यूट फॉर मेडिकल साइंसेज एंड टेक्नोलॉजी ने अंबु बैग प्रौद्योगिकी का उपयोग करके एक वेंटिलेटर मॉडल विकसित किया है. भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के अनुमोदन के साथ, इंस्टीट्यूट ने वेंटिलेटर उत्पादन के लिए विप्रो थ्री डी के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं.

हैदराबाद स्थित नेक्स्टबाइट टेक्नोलॉजी ने अंबु बैग इकाइयों को संचालित करने के लिए एक बिजली से चलने वाले उपकरण का निर्माण किया है. इसकी कीमत 4,000 रुपये है.

पीजीआईएमआर चंडीगढ़ में सहायक प्रोफेसर राजीव चौहान ने इसी तरह की स्वचालित अम्बु बैग इकाई तैयार की है. महिंद्रा एंड महिंद्रा ने अम्बु बैग वेंटिलेटर का नमूना भी तैयार किया है.

भारत के रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन ने मार्च में एक नए वेंटिलेटर मॉडल का अनावरण किया है. अन्य उद्योगों की मदद से डीआरडीओ 5,000 इकाइयों का निर्माण करने जा रहा है. भारतीय रेलवे ने कपूरथला में रेल कोच फैक्ट्री में जीवन नामक एक कम लागत वाले वेंटिलेटर मॉडल को डिजाइन किया है.

कंप्रेसर के बिना, इसकी कीमत 10,000 रुपये है. रेलवे अधिकारियों ने कहा कि आईसीएमआर की मंजूरी मिलते ही वे मासिक रूप से 100 वेंटिलेटर का उत्पादन करेंगे.

आईआईटी हैदराबाद-इनक्यूबेटेड स्टार्टअप ने एक कम लागत वाला वेंटिलेटर विकसित किया जिसे जीवन लाइट नाम दिया गया है. इसकी कीमत 1,00,000 तक हो सकती है. साथ में,भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान( IIT) रुड़की और अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) ऋषिकेश ने प्राण-वायु नामक एक पोर्टेबल वेंटिलेटर विकसित किया है. इस मॉडल को 450 उद्योग विशेषज्ञों को प्रदर्शित किया गया था. इसकी कीमत 25,000 रुपये है.

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान धनबाद (आईआईटी) के इंजीनियरों ने एक विशेष एडाप्टर मॉडल विकसित किया है जो दो लोगों को एक साथ वेंटिलेटर का उपयोग करने में सक्षम बनाता है. यह मॉडल डिमांड पर बनाया जाएगा.

गुजरात के राजकोट में एक निजी कंपनी ने दमन -1 नामक एक वेंटिलेटर विकसित किया है, जिसका कोरोना के रोगी पर सफल परीक्षण किया गया. गुजरात राज्य सरकार ने इस वेंटिलेटर के निर्माण को मंजूरी दे दी है, जिसकी लागत एक लाख से भी कम है.

Last Updated : Apr 21, 2020, 12:26 PM IST

ABOUT THE AUTHOR

...view details