हैदराबाद :डाकिया और डाकघर कुछ साल पहले तक सार्वजनिक जीवन का अभिन्न हिस्सा हुआ करते थे. लोग डाकिया से पत्र पाने का बड़ी बेसब्री से इंतजार करते थे. उसकी साइकिल की घंटी की आवाज और बरामदे में फेंके गए पत्र बीते दिनों के आम नजारे थी. डाक सेवा एकमात्र सरकारी विभाग है, जो घर की याद दिलाने और भावनाओं का पर्याय है. मोबाइल फोन और इंटरनेट के आगमन के साथ ही पोस्ट कार्ड, लिफाफा और अंतर्देशीय पत्रों ने अपना महत्व खो दिया है. एक-दूसरे को पत्र लिखने के बजाय लोग बस एक एसएमएस या एक ईमेल भेज रहे हैं. विभाग प्रति पोस्टकार्ड औसतन सात रुपये और प्रति अंतर्देशीय पत्र पांच रुपये का नुकसान उठाता है, जिसकी वजह से यह सबसे ज्यादा नुकसान उठाने वाला सार्वजनिक उपक्रम बन रहा है, लेकिन इंडिया पोस्ट बदलते समय के साथ खुद को बदल रहा है.
भारत में स्वतंत्रता के समय कुल 23 हजार 344 डाकघर थे. अगले सात दशकों में यह संख्या बढ़कर एक लाख 55 हजार हो गई, जिसमें से 90 फीसद ग्रामीण क्षेत्रों में स्थित हैं. डाक विभाग की ताकत को इसके 40 करोड़ उपयोग करने वाले लोग और 17 करोड़ से अधिक डाकघर बचत खाते दर्शाते हैं. इस ठोस आधार को बचाए रखने के लिए इंडिया पोस्ट को नवाचार का रास्ता अपनाने को मजबूर हुआ. इस मोड़ पर इस पीएसयू ने स्पीड पोस्ट और माई स्टैम्प सेवाओं की शुरुआत की. धीरे-धीरे उसने अपने आधार को कूरियर, बीमा, पेंशन, पासपोर्ट, आधार, तिरुमला तिरुपति देवस्थानम कैलेंडर और टिकटों, पुस्तकों और दवाओं के वितरण सेवाओं तक विस्तारित किया. इंडिया पोस्ट पेमेंट्स बैंक इसकी एक और उपलब्धि है.
बैंकिंग क्षेत्र में हालांकि, बहुत तेजी से बढ़ोतरी हुई है, लेकिन इसकी पूरी तरह सेवा 50 हजार से भी कम गांवों में उपलब्ध है. भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में डाकघरों की उपलब्धता और विश्वास के कारक को ध्यान में रखते हुए सुब्रमण्यम समिति (2014) ने डाकघर नेटवर्क का लाभ उठाने की सिफारिश की. पोस्टल बैंक ऑफ इंडिया बनाने के लिए समिति का सुझाव इंडिया पोस्ट के लिए एक वरदान के रूप में आया. यह बैंकिंग पेशेवरों के साथ स्वतंत्र रूप से डाक विभाग के तहत काम करेगा. एक कदम और आगे बढ़ाते हुए इस पीएसयू ने डाक पे नाम से डिजिटल बैंकिंग सेवाओं के एक सेट की शुरुआत की. जिसमें डाक नेटवर्क के माध्यम से डिजिटल वित्तीय और बैंकिंग सेवाओं की सहायता दी जाएगी.