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नवनिर्मित सड़क मार्ग को लेकर हो रहे भारत-नेपाल के राजनयिक रिश्ते खराब

नेपाल ने लिपुलेख दर्रे को उत्तराखंड के धारचूला से जोड़ने वाली रणनीतिक दृष्टिकोण से अहम सर्कुर लिंक रोड का भारत द्वारा उद्घाटन किए जाने पर आपत्ति जताई है. साथ ही कहा है यह एकतरफा कदम दोनों देशों के बीच सीमा मुद्दों को सुलझाने के लिए बनी सहमति के खिलाफ है. वहीं भारत ने सीमा उल्लंघन के सभी आरोपों को सिरे से नकारा है.

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मानसरोवर को जोड़ती सड़क को लेकर नेपाल ने जताई आपत्ति

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Published : May 10, 2020, 3:28 PM IST

हैदराबाद : उत्तराखंड में कैलाश मानसरोवर यात्रा को छोटा करने के लिए हाल ही में भारत और नेपाल के बीच बनी सड़क पर राजनीति तेज हो गई है.गौरतलब है कि नेपाल ने लिपुलेख दर्रे को उत्तराखंड के धारचूला से जोड़ने वाली रणनीतिक दृष्टिकोण से अहम सर्कुर लिंक रोड का भारत द्वारा उद्घाटन किए जाने पर आपत्ति जताई है. साथ ही कहा है यह एकतरफा कदम दोनों देशों के बीच सीमा मुद्दों को सुलझाने के लिए बनी सहमति के खिलाफ है.

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नेपाल के विदेश मंत्रालय ने यह भी कहा कि भारत ने नेपाली भूमि लिपुलेख में सड़क निर्माण करा लिया और फिर शुक्रवार को उद्घाटन भी कर दिया. यह दुखद है. नेपाल सरकार ने सुगौली संधि का हवाला दिया और कहा कि नेपाल इस संधि का पूरी तरह से अनुपालन कर रहा है.

हालांकि भारत ने शनिवार को नेपाल की सभी आपत्तियों को खारिज कर दिया है. विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अनुराग श्रीवास्तव ने कहा कि उत्तराखंड में धारचूला को लिपुलेख दर्रे से जोड़ते हुए जो सड़क बनाई गई है, वह पूरी तरह उसके क्षेत्र में है.

उन्होंने अपनी बात को जारी रखते हुए कहा कि वर्तमान परियोजना के अंतर्गत उसी रास्ते को तीर्थयात्रियों, स्थानीय लोगों और व्यापारियों की सुविधा के लिए आसान बनाया गया है.

बता दें कि 80 किलोमीटर लंबे इस रास्ते का उद्घाटन रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए किया.

रक्षा मंत्री ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए पिथौरागढ़ के पहले काफिले को रवाना किया. इसके साथ ही कैलाश-मानसरोवर जाने वाले यात्री अब तीन हफ्तों की जगह एक ही हफ्ते में अपनी यात्रा पूरी कर सकेंगे.

गौरतलब है कि सीमा विवाद को लेकर दोनों पड़ोसी देशों के बीच तनाव बढ़ रहा है.

जम्मू-कश्मीर और लद्दाख को अलग केंद्र शासित प्रदेश बनाने के बाद भारत सरकार द्वारा दो नवंबर को देश का नया नक्शा जारी करने के बाद से नेपाल नाराज है. दरअसल नए नक्शे में भारत ने उस कालापानी को अपना हिस्सा दर्शाया है, जिस पर नेपाल दावा करता आया है.

आज के अपने ताजा बयान में, काठमांडू ने मई 2015 में भारत और चीन को जारी किए गए दो अलग-अलग विरोध टिप्पणियों की याद दिलाई, जब दोनों देश नेपाल की सहमति के बिना जारी किए गए अपने संयुक्त बयान में लिपु लेख को एक द्विपक्षीय व्यापार मार्ग के रूप में शामिल करने पर सहमत हुए थे.

शनिवार शाम को मंत्रालय ने अपनी प्रतिक्रिया में कहा कि भारत और नेपाल ने सभी सीमा मामलों से निपटने के लिए एक तंत्र स्थापित किया है. नेपाल के साथ सीमा परिसीमन का अभ्यास जारी है. भारत राजनयिक बातचीत और नेपाल के साथ हमारे घनिष्ठ और मैत्रीपूर्ण द्विपक्षीय संबंधों की भावना के माध्यम से बकाया सीमा के मुद्दों को हल करने के लिए प्रतिबद्ध है.

भारत ने आगे सूचित किया है कि कोविड-19 से सफलतापूर्वक निपटने की वार्ता के बाद दोनों पक्ष इस मुद्दे पर भी बातचीत कर रहे हैं.

संयोग से नेपाली विदेश मंत्रालय के बयान में यह भी दावा किया गया है कि पिछले साल कालापानी विवाद के बाद दोनों विदेश सचिवों के बीच बैठक के लिए काठमांडू में दो बार तारीख प्रस्तावित की गई थी, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला.

लेखक-स्मिता शर्मा

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