नई दिल्ली : भारत ने इस साल जनवरी में 15-राष्ट्रों की संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में गैर-स्थायी सदस्य के रूप में अपने दो साल के कार्यकाल की शुरुआत की. सदस्यता लेने के बाद से ही भारत अंतरराष्ट्रीय शांति और समग्र रूप से दुनिया की सुरक्षा से संबंधित मामलों में समावेशी समाधान लाने के लिए अपना काम कर रहा है.
समय के साथ फिर से भारत ने बताया कि विश्व निकाय-यूएनएससी के सबसे शक्तिशाली अंग में अक्षमता का अभाव है, जिसके परिणामस्वरूप काउंसिल अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा के जटिल मुद्दों का समाधान नहीं कर पा रही है.
इसलिए, भारत, जर्मनी, जापान और ब्राजील के साथ मिलकर UNSC के तत्काल सुधार और विश्व निकाय के 15 सदस्यीय शीर्ष अंग में एक स्थायी सीट के लिए लगातार दबाव बना रहा है.
साथ ही भारत ने विभिन्न वैश्विक मंच पर सुधारवादी बहुपक्षवाद की आवश्यकता को लेकर अपना रुख स्पष्ट किया है और आतंकवाद, मानवाधिकार उल्लंघन जैसे मुद्दों के खिलाफ अपनी आवाज उठाने के लिए प्रतिबद्ध दिखाई है, जो वैश्विक सुरक्षा और मानवता के लिए जरूरी है. हालांकि इसकी विश्वसनीयता और इसकी प्रभावशीलता के लिए काफी चुनौतियां हैं.
ईटीवी भारत से बात करते हुए स्ट्रेटेजिक स्टडीज प्रोग्राम,ओआरएफ न्यू डेल्ह के निदेशक और प्रमुख प्रोफेसर हर्ष वी पंत ने कहा कि उनका मानना है कि चूंकि भारत अगले दो वर्षों के लिए यूएनएससी का एक गैर-स्थायी सदस्य है, इसलिए वो यूएनएससी सुधारों के मुद्दे को उठाने का कार्य करेगा.
उन्होंने कहा कि मुझे नहीं लगता कि बहुत कुछ पूरा किया जा सकता है. हालांकि अमेरिकी प्रशासन ने कहा है कि वे सुधारों को पसंद करेंगे, लेकिन यह केवल अमेरिका के लिए निर्णय लेने की बात नहीं है.
प्रोफेसर हर्ष ने कहा कि हम एक ऐसे चरण में प्रवेश कर रहे हैं, जहां 'महाशक्तियों के बीच प्रतियोगिता' है और रूसी व चीनी एक तरफ हैं और बाकी शक्तियां दूसरे तरफ हैं, जहां तक स्थायी सदस्यों का संबंध है, उनके बीच किसी भी तरह की समझ बनाना बहुत मुश्किल होगा.
उन्होंने ईटीवी भारत को बताया कि भारत के लिए, वैश्विक समुदाय को यह बताना महत्वपूर्ण है कि यह संयुक्त राष्ट्र की विश्वसनीयता है दांव पर है.
उन्होंने आगे कहा कि वैश्विक क्रम पूरी तरह से बदल गया है. एक तरफ इंडो-पैसिफिक है, जो चर्चा के केंद्र में है, जबकि यूएनएससी में पांच स्थायी सदस्यों में से चार यूरोपीय शक्तियां हैं. चीन बड़े इंडो-पैसिफिक का गैर-यूरोपीय इलाके में प्रतिनिधि नहीं है.
इसलिए, भारत जैसे देश के लिए दुनिया को यह बताना जारी रखना महत्वपूर्ण है कि यूएनएससी में समावेशिता की कमी के कारण इसकी कार्रवाई और निर्णय को कम ही लोग मानेंगे. इसलिए इसमें सुधार करने की जरूरत है और इसके लिए भारत को अन्य हितधारकों को साथ लाना होगा.