हैदराबाद : कोविड-19 के खिलाफ जापान की तैयारी अबतक सराहनीय रही है. जापान शुरुआत में उन कुछ देशों में था, जो महामारी से ग्रस्त था. एक समय में जापान कोरोना से सबसे ज्यादा प्रभावित देशों में दूसरे स्थान पर था. अब जापान 36वें स्थान पर आ गया है. जापान की महामारी और संक्रमितों की संख्या को नियंत्रित करने की यात्रा विशेष रूप से दिलचस्प है. विदेशी मीडिया और अंतर्राष्ट्रीय महामारी वैज्ञानिक जापान की महामारी के खिलाफ प्रतिक्रिया को पहचानने में विफल रहे हैं.
कुछ विशेषज्ञों ने यहां तक आरोप लगाया है कि सरकार ने आगामी टोक्यो ओलंपिक को ध्यान में रखते हुए संक्रमितों की संख्या को कम बताया है. जापान में कोरोना से कम मृत्यु दर को देखते हुए इन आरोपों का खंडन हो जाना चाहिए.
होक्काइडो विश्वविद्यालय में अंतर्राष्ट्रीय राजनीति के प्रोफेसर काजूतो सुजुकी के अनुसार जापान ने समूह-आधारित नीति पर काम किया. यह मॉडल संक्रामक रोगों के अध्ययन के निष्कर्षों के आधार पर तैयार किया गया था. मॉडल को पहली बार तीन फरवरी को डायमंड प्रिंसेस क्रूज पर लागू किया गया था जो योकोहामा बंदरगाह पर फंसा था. इस पद्धति में संक्रमण के स्रोत की पहचान करने और उसे बीमारी फैलाने से अलग रखने के लिए प्रत्येक समूह की जांच की गई.
यह मॉडल रैंडम कोरोना परीक्षणों को अनिवार्य नहीं करता है. यदि संक्रमित लोगों की संख्या कम है और समूहों को प्रारंभिक चरण में पहचाना जा सकता है तो सफल होने की संभावना अधिक है.
उल्लेखनीय है कि जापान में सबसे पहले आपातकाल होक्काइडो क्षेत्र में घोषित हुआ था. यहां पर इस मॉडल को अपनाकर सरकार ने संक्रमण रोका था. जापान ने थ्री सी मॉडल भी अपनाया है. इसमें लोगों से बचने का आग्रह किया जाता है कि वह हवा बंद स्थान से दूर रहें और भीड़-भाड़ वाले स्थान से दूर रहें. सामाजिक दूरी के मानदंडों के साथ इसका अच्छा प्रभाव पड़ा.