नई दिल्ली : हिंद महासागर और उसके पड़ोसी देश तेजी से वैश्विक नौसेना शक्तियों के लिए अपने संबंधित क्षेत्रों को मजबूत और विस्तार करने में लगे हुए हैं. ऐसे में पूर्वी अफ्रीकी देश जिबूती, भारत और चीन सहित वैश्विक शक्तियों के लिए केंद्र बिंदु बन गया है.
बुधवार को भारतीय नौसेना आईएनएस ऐरावत द्वारा सुरक्षा और क्षेत्र में सभी के लिए विकास (SAGAR) योजना के तहत 50 टन खाद्य-गेहूं, चावल और चीनी जिबूती के अधिकारियों को दान दिए गए, जो प्राकृतिक आपदाओं और कोविड-19 महामारी को दूर करने के लिए मित्र देशों की मदद का एक प्रयास था.
जिबूती पर बढ़ता ध्यान भारत के भू-राजनीतिक और सैन्य हितों द्वारा निर्देशित है. लगभग 10 लाख आबादी वाला जिबूती एक छोटा देश हो सकता है, लेकिन स्वेज नहर के प्रवेश द्वार पर बाब अल-मंडेब स्ट्रेट पर स्थित है और यह दुनिया के सबसे व्यस्त शिपिंग लेन पर नजर रखने के लिए एक काफी अहम जगह है.
यही कारण है कि यह अमेरिका, फ्रांस, जापान, सऊदी अरब और चीन के प्रमुख सैन्य ठिकानों और नौसैनिक स्टेशनों का घर है, जबकि जर्मन और इटालियंस सहित कई अन्य देश युद्ध की आड़ में यहां मौजूदगी दर्ज करवाते रहते हैं.
भारत की अमेरिका, फ्रांस और जापान के साथ प्रमुख पारस्परिक रसद सेवा संधि है, जो दुनिया भर में एक-दूसरे की सैन्य सुविधाओं, तार्किक समर्थन, आपूर्ति और सेवाओं तक पहुंच की अनुमति देता है. इसमें सैन्य संपत्ति और प्लेटफार्मों के लिए ईंधन भरने, पुर्जे फिट करना आदि शामिल है.
2016 में अमेरिका ने भारत लॉजिस्टिक एक्सचेंज मेमोरेंडम ऑफ एग्रीमेंट (LEMOA) को शामिल किया था, 2018 में भारत और फ्रांस के बीच लॉजिस्टिक सपोर्ट पैक्ट पर हस्ताक्षर किए गए थे, जबकि 2020 में जापानियों के साथ अधिग्रहण और क्रॉस-सर्विसिंग एग्रीमेंट (ACSA) पर हस्ताक्षर हुए थे.
वास्तव में भारतीय के साथ अमेरिका, फ्रांस और जापान के मौजूदा समझौते के चलते जिबूती भारत को स्वतंत्र रूप से संचालित करने की अनुमति देगा, जिससे भारतीय नेवी पहुंच को बहुत सक्षम बनाया जा सकेगा.
यह हिंद महासागर क्षेत्र में सर्वोपरि नौसैनिक शक्ति के रूप में खुद को स्थापित करने का लक्ष्य रखने वाले चीन का मुकाबला करने में काफी सहायक होगा.