नई दिल्ली :भारतीय और चीनी विदेश मंत्रालयों ने सीमा तनाव को हल करने के लिए द्विपक्षीय वार्ता आयोजित होने के एक हफ्ते बाद भी मतभेदों को दूर करने में कामयाब नहीं हुए है. सीमा विवाद अभी भी कायम है.
चीन और भारत के बीच आरोप-प्रत्यारोप का दौर अब भी जारी है. इस तथ्यों के बावजूद दोनों पक्ष तनाव को कम करने के लिए सहमत हुए हैं, लेकिन इन सब के बाद भी तनाव कम नहीं हो रहा है.
जेएनयू के चीनी अध्ययन के प्रोफेसर श्रीकांत कोंडापल्ली का कहना है कि मॉस्को में विदेश मंत्रियों के बीच हुई बैठक के बाद पांच-सूत्री समझौते से दोनों पक्षों पर दबाव बनेगा, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि इससे कोई टकराव नहीं होगा. सीमा में झड़प की आशंका है.
उन्होंने कहा कि दोनों पक्षों ने यह तय नहीं किया है कि उनके क्षेत्र कहां हैं. वह यह कहते हैं कि स्थायी शांति की एकमात्र गारंटी एक क्षेत्रीय विवाद निपटान है, जिसके लिए हमारे पास समाधान नहीं है.
श्रीकांत कोंडापल्ली ने ईटीवी भारत को बताया कि बीजिंग ने दावा किया है कि भारत ने एलएसी को पार कर लिया है, लेकिन उन्होंने यह उल्लेख नहीं किया है कि कौन सा क्षेत्र एलएसी है.
नवंबर 1959 में चीन के प्रमुख झोउ एनलाई ने पश्चिमी क्षेत्र में एक रेखा का सुझाव दिया और पूर्वी क्षेत्र में भारत और चीन के बीच औपचारिक सीमा के रूप में मैकमोहन रेखा पर विचार किया. जबकि पश्चिमी क्षेत्र में उन्होंने एक सुझाव दिया जो दावे के साथ मेल खाता है.
भारतीय और चीनी विदेश मंत्रियों की पांच-सूत्री सिद्धांत तक पहुंचने की पृष्ठभूमि में चीनी राजदूत सुन वेइदॉन्ग ने पहले दोहराया कि भारत ने सीमांकित सीमा का उल्लंघन किया था. भारतीय मीडिया रिपोर्ट के अनुसार वास्तविक नियंत्रण रेखा पर दो बार फायरिंग की बात सामने आई है.
चीनी दूत ने कहा था कि हाल ही में संबंधित भारतीय मंत्रालयों ने बयानों में दावा था कि भारतीय सेना ने पैंगोंग त्सो झील के दक्षिण किनारे पर चीनी सैन्य गतिविधि को पूर्व-खाली कर दिया है, जिससे जाहिर है कि सीमा में एलएसी और यथास्थिति में गैरकानूनी अतिचार हो रहे हैं.
श्रीकांत इस बात पर जोर देते हैं कि अगर सुन वेइदॉन्ग कह रहा है कि भारत ने एलएसी पार कर ली है, तो चीन ने कभी एलएसी के बारे में अपनी धारणा नहीं दी है जिसे भारत ने पार कर लिया है. उन्होंने भारत के साथ इस पर नक्शे का आदान-प्रदान नहीं किया है. न तो चीन ने और न ही भारत ने दूसरी तरफ या किसी भी तटस्थ पर्यवेक्षकों को एलएसी में उनके संबंधित पदों के लिए दिया था. दोनों पक्ष एलएसी को पार करने का दावा कर रहे हैं और एलएसी पर विभिन्न धारणाएं हैं.
बैठक के बाद सन वेइदॉन्ग की टिप्पणी यह दर्शाती है कि चीजें लंबी होने जा रही हैं. जैसे-जैसे सर्दी करीब आ रही है और एक अड़चन कारक है, जैसा कि हम जानते हैं कि दौलत बेग ओलडी, डेपसांग प्लेन, चुशुल, पैंगोंग त्सो का तापमान माइनस 50 डिग्री सेल्यियस है. ऐसा कोई तरीका नहीं है कि दोनों सेनाएं उस स्थान पर रह सकें इसलिए दोनों पक्षों को प्रदेशों को छोड़ना होगा और एक गर्म स्थान पर जाना होगा.