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सीमा विवाद :  नवंबर में आठवें दौर की बैठक करेंगे भारत-चीन !

भारत और चीन के बीच आठवें दौर की बातचीत अगले सप्ताह हो सकती है, जिसमें पूर्वी लद्दाख से सैनिकों की वापसी की प्रक्रिया पर बातचीत को आगे बढ़ाने पर ध्यान दिया जा सकता है. इससे पहले 12 अक्टूबर को सातवें दौर की वार्ता के दौरान दोनों देशों के सैनिकों के टकराव वाले बिंदुओं से सैनिकों की वापसी में कोई सफलता नहीं मिली है. इस बार लेफ्टिनेंट जनरल पी.जी.के मेनन भारत की ओर से बातचीत में नेतृत्व करेंगे. पढ़ें वरिष्ठ संवाददाता संजीब कुमार बरुआ की रिपोर्ट...

भारत-चीन सीमा विवाद
भारत-चीन सीमा विवाद

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Published : Oct 29, 2020, 7:20 PM IST

Updated : Oct 30, 2020, 11:15 AM IST

नई दिल्ली: भारत और चीन के सैन्य प्रतिनिधि पूर्वी लद्दाख में सीमा विवाद को सुलझाने के लिए अगले हफ्ते आठवीं बार बातचीत करेंगे. इससे पहले, वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर फोर्स की तैनाती कम करने के मुद्दे पर सभी दौर की बातचीत बेनतीजा रही थी. अब सर्दियां भी आ गई हैं और सैनिकों को शून्य से 30 डिग्री सेल्सियस नीचे तापमान में वहां रहना पड़ रहा है.

ईटीवी भारत से सूत्रों ने आज बताया कि भारतीय और चीनी अधिकारियों ने एक दूसरे से टेलीफोन पर संपर्क किया है. संभावना है कि अगले सप्ताह वार्ता चुशुल में भारतीय सीमा पर होगी. एक अधिकारी ने कहा कि जल्द ही इसे अंतिम रूप दिया जाएगा.

इससे पहले कमांडर स्तर पर वार्ता विवाद को हल करने में असफल साबित हुई. क्योंकि उनके पास उतने अधिकार नहीं होते हैं कि वह निर्णय ले सकें. इसलिए वार्ता में दोनों पक्षों राजनयिकों का शामिल किया गया है.

इस बार लेफ्टिनेंट जनरल पी.जी.के मेनन भारत की ओर से बातचीत का नेतृत्व करेंगे, जबकि विदेश मंत्रालय के संयुक्त सचिव नवीन श्रीवास्तव भी प्रतिनिधिमंडल में शामिल रहेंगे.

लेफ्टिनेंट जनरल हरिंदर सिंह का भारतीय सैन्य अकादमी (आईएमए) में तबादला होने के बाद, मेनन ने अक्टूबर के मध्य में 14 कोर कमांडर का कार्यभार संभाला, जहां वो सेना के अधिकारियों के प्रशिक्षण के प्रभारी होंगे.

इससे पहले भारत और चीन के बीच 6 जून, 22 जून, 30 जून, 14 जुलाई, 2 अगस्त और 21 सितंबर को कमांडर स्तर की वार्ता हुई, लेकिन यह सभी बैठकें अनिष्कर्षपूर्ण साबित हुई हैं.

इससे पहले दोनों देशों के सैन्य कमांडरों ने भारत-चीन सीमा पर छह महीने से चल रहे गतिरोध को हल करने के लिए सात बार मुलाकात की थी. अंतिम बैठक 12 अक्टूबर को हुई थी, जिसमें भी कोई फैसला नहीं निकल पाया था.

बैठक के बाद, भारतीय सेना ने एक बयान जारी कर कहा था कि दोनों पक्षों ने भारत-चीन सीमा के पश्चिमी क्षेत्र में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर फोर्स की तैनाती कम करने को लेकर रचनात्मक बातचीत की.

1959 में तत्कालीन चीनी पीएम चाउ एन-लाई ने अपने भारतीय समकक्ष जवाहर लाल नेहरू को पत्र लिखकर सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश पर दावा किया था, इसे नेहरू ने खारिज कर दिया था. एक बार फिर चीन के इस दावे ने 1959 के बाद की सभी बातचीत और संधियों में चल रही कूटनीतिक और सैन्य वार्ता को एक झटके के साथ नकार दिया है.

सेना ने ये भी कहा था कि दोनों पक्ष सैन्य और राजनयिक चैनलों के माध्यम से बातचीत जारी रखने के लिए सहमत हैं, और जितनी जल्दी हो सके फोर्स कम करने पर राजी हो जाएंगे.

यह भी पढ़ें- भारत-अमेरिका समझौता : क्या अफगानिस्तान में सैनिकों को भेजगा भारत ?

30 अगस्त को, भारत ने पैंगोंग झील के दक्षिणी किनारे पर स्थित महत्वपूर्ण पहाड़ी ऊंचाइयों रेचन ला, रेजांग ला, मुकर्पी और टेबोप पर कब्जा कर लिया था, जो तब तक मानव रहित थे. भारत ने ब्लैकटॉप के पास कुछ फोर्स की तैनाती भी की है.

अब, इन चोटियों पर कब्जे से भारत, चीनी नियंत्रण वाले स्पंगुर दर्रे और मोल्डो गैरिसन पर नजर रख सकता है.

भारत और चीन के बीच सीमा पर पिछले छह महीने से गतिरोध बना हुआ है.

वास्तविक नियंत्रण रेखा पर भारत और चीन के एक लाख से अधिक सैनिक तैनात हैं. इतना हीं नहीं दोनों पक्षों ने नियंत्रण रेखा पर खतरनाक हथियारों को भी तैनात किया है.

कुछ दिनों बाद यहां पर भारी बर्फबारी होगी, जिसके चलते डिसएंगेजमेंट करना मुश्किल साबित होगा. यहां का तापमान 30 से 40 डि्ग्री सेल्सियस तक गिर जाता है. यहां पर ऑक्सीजन की कमी हो जाती है. इस वजह से सैन्य गतिविधियों को या कहें तो डिसएंगेजमें करना मुश्किल होगा. क्योंकि इतनी ज्यादा बर्फबारी होती है कि रास्ते बंद हो जाते हैं.

Last Updated : Oct 30, 2020, 11:15 AM IST

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