नई दिल्ली : भारत और बांग्लादेश के बीच मजबूत रिश्तों के बावजूद अक्सर लगता है कि तीस्ता नदी विवाद और इस क्षेत्र में हठधर्मी चीन या चीन के प्रभाव के निहितार्थ जैसी चुनौतियों को लेकर बहस अधिक होती है, जो अपने द्विपक्षीय रिश्ते में कई सकारात्मक घटनाओं पर मोहित कर लेता है.
ईटीवी भारत से बात करते हुए दिल्ली स्थित ऑब्जर्वर रिसर्चर फाउंडेशन नाम के विचार मंच में बांग्लादेश मामलों की विशेषज्ञ जोयीता भट्टाचार्य ने कहा कि तीस्ता का समाधान पूरी तरह से यह समझने में है कि दोनों देश पानी का प्रबंधन कैसे कर सकते हैं और कैसे इसके जलग्रहण क्षेत्र में आने वाले लोगों के लिए वैकल्पिक आजीविका देख सकते हैं. इसका कारण है कि खेती के लिए नदी के पानी पर अधिक निर्भरता बहुत मुश्किलें पैदा कर रही है. यह समझने और देखने का एक आदर्श मामला है कि भारत और बांग्लादेश मिलकर नदी का प्रबंधन करने के बारे में कैसे सोच सकते हैं.
खबरों से पता चलता है कि बांग्लादेश ने तीस्ता नदी के प्रबंधन के लिए चीन से करीब एक अरब डॉलर की मांग की थी. इसे लेकर लंबे समय से दोनों देशों के बीच जिच की स्थिति बनी हुई है. दोनों देशों ने हालांकि इस बारे में एक लंबा सफर तय किया है और बातचीत अब भी जारी है.
खास कर जब सीमा विवाद के कारण चीन के साथ भारत के संबंधों में खटास आ गई है तो यह चिंता बढ़ती जा रही है कि भारत का अपने पड़ोसी देश बांग्लादेश के साथ लंबे समय से चला आ रहा संबंध टूट सकता है, क्योंकि इस तथ्य से कोई इनकार नहीं करता कि चीन का आर्थिक प्रभाव बांग्लादेश में स्पष्ट है और बांग्लादेश व्यापार और आर्थिक निर्भरता को लेकर चीन की ओर झुका हुआ है. सवाल अब यह है कि भारत को बांग्लादेश में चीन के प्रभाव के बारे में चिंता करनी चाहिए और किसी दूसरे देश के साथ चीन के संबंधों का हंसी उड़ाते रहना चाहिए या बांग्लादेश के साथ लंबे समय तक दोस्ती बनाए रखने के लिए एक स्मार्ट कदम उठाना चाहिए?
विश्लेषकों का मानना है कि चीन का बांग्लादेश पर अत्यधिक प्रभाव है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि भारत पंगु हो जाएगा. चीन के हौआ पर अधिक ध्यान केंद्रित करने की जगह भारत के लिए महत्वपूर्ण है कि अपनी ताकत पर ज्यादा ध्यान केंद्रित करे.
एमपी-आईडीएसए की रिसर्च फेलो स्मृति एस. पटनायक ने कहा कि भारत चीन से बराबरी नहीं कर सकता है, इसलिए चीनी हौआ के बारे में बोलने और भारत की ताकत पर ध्यान केंद्रित नहीं करने का कोई मतलब नहीं है. भारत को बांग्लादेश में चीनी प्रभाव से परेशान नहीं होना चाहिए. उसकी जगह उन परियोजनाओं पर ध्यान केंद्रित करने की जरूरत है जो भारत की सुरक्षा को सीधे प्रभावित करेंगी. उन पर ध्यान दें और देखें कि वे परियोजनाएं चीन को नहीं चली जाएं. उदाहरण के लिए भारत को सोनादिया बंदरगाह के बारे में चिंता करनी चाहिए.
भट्टाचार्य आगे कहती हैं कि पिछले कुछ वर्षों में भारत के पड़ोस में चीन का प्रभाव बढ़ा है. इस तरह वास्तव में मुझे यह नहीं लगता कि हमें बांग्लादेश को पूरी तरह से एक अलग नजरिए से देखने की जरूरत है. बांग्लादेश एक बहुत अलग तरह का मामला है. ऐसा होने पर भी बांग्लादेश में चीन का प्रभाव बढ़ रहा है. हम लोगों को भी यह देखना होगा कि इससे बांग्लादेश सरकार कैसे निपट रही है.
भारत और बांग्लादेश धरती पर दुनिया की पांचवीं सबसे लंबी सीमा साझा करते हैं. बहुत समय से यह जरूरी है कि भारत बांग्लादेश के साथ सुरक्षा और सीमा प्रबंधन को बढ़ावा देने के लिए कामकाज का एक सकारात्मक रिश्ता बनाए रखे. चीन के लिए भी यह मुनासिब है कि वह बांग्लादेश के साथ स्वागत करने वाले रिश्ते को बरकरार रखे ताकि दोनों बांग्लादेश के बंदरगाहों का इस्तेमाल करके व्यापार का लाभ उठाना सुनिश्चित कर सकें और इसके साथ ही भारत पर भी नजर रखे रहें.
भट्टाचार्य ने ध्यान दिलाया कि यह वास्तविकता है कि बांग्लादेश को विकास की जरूरत है, लेकिन भारत-बांग्लादेश-चीन के संबंध को समझने के लिए हमें बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना के उस बयान पर गौर करना होगा जो उन्होंने वर्ष 2019 में दिया था. हसीना ने विशेष रूप से उल्लेख किया है कि भारत के साथ बांग्लादेश के संबंध काया से जुड़ा वाला है और उनकी गिनती थोड़े से धन से नहीं की जा सकती है जबकि चीन के साथ एक आर्थिक संबंध है. इस जोरदार बयान में वह स्पष्ट रूप से बताती हैं कि बांग्लादेश अपने पड़ोसी देशों के साथ रिश्तों को कैसे देखता है.
कुल मिलाकर चुनौतियां तो रहेंगी लेकिन भट्टाचार्य ने कहा कि हसीना उन क्षेत्रीय प्रतिद्वंद्वियों के साथ बांग्लादेश के रिश्तों को चतुराई से परिभाषित करने में सक्षम हैं जो खुद के भू-राजनीतिक हितों को साधने के लिए उनके देश को लगातार वित्तीय सहायता की पेशकश करते रहते हैं.
ध्यान देने की बात यह है कि जैसे ही चीन ने 2013 में बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) की शुरुआत की, भारत ने 2014 में क्षेत्रीय संबंधों को बढ़ावा देने के लिए 'पड़ोस पहले' की नीति तैयार की. वर्ष 2016 में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने बांग्लादेश को 24 अरब डॉलर का आर्थिक पैकेज देने की पेशकश की, जो कई क्षेत्रों की कई परियोजनाओं के लिए ढाका की सबसे बड़ी विदेशी क्रेडिट लाइन बन गई. वर्ष 2017 में भारत ने बांग्लादेश को 5 अरब डॉलर के कर्ज की पेशकश की. भारत की ओर से किसी भी देश को एक बार में दी गई यह अब तक की सबसे बड़ी क्रेडिट लाइन है.
भट्टाचार्य जोर देकर कहती हैं कि बांग्लादेश का चीन के प्रति झुकाव नहीं है और उससे उसकी दोस्ती नई नहीं है. चीन बांग्लादेश में रहा है और लंबे समय से मजबूत संबंध बनाए हुए है. चीन न केवल बांग्लादेश के साथ बल्कि अन्य सभी वैश्विक शक्तियों के साथ यही खेल खेल रहा है. इसलिए भारत को इसे लेकर परेशान क्यों होना चाहिए? बांग्लादेश के साथ भारत का संबंध बहुत अलग है और दोनों देश इसे दिखा चुके हैं. द्विपक्षीय मुद्दों के समाधान और ज्यादा सहयोग के मार्ग को सुगम बनाने के प्रयास किए जा रहे हैं.
खबरों के अनुसार, भारत ने बांग्लादेश को उदारता के साथ विकास के लिए सहायता दी है. भारत की ओर से करीब 10 अरब डॉलर की रियायती 'लाइन ऑफ क्रेडिट' अब तक किसी भी देश को पेशकश की गई भारत की सबसे बड़ी राशि है. इसके अलावा भारत की ओर से दी गई अनुदान सहायता बांग्लादेश में विकास से संबंधित सहायता का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है.
जोयीता ने कहा कि भू-राजनीति के बीच महामारी एक बड़ा मानवीय संकट लाती है. भारत ने हमेशा इसे महत्व दिया है. बांग्लादेश के संकट के समय भारत ने हमेशा सबसे पहले सहायता की है. ऐसा अभी चल रहे कोविड-19 महामारी के दौरान भी है. बांग्लादेश में जैसे ही कोविड-19 फैला, भारत ने स्वास्थ्य सहायता के रूप में परीक्षण किट, पीपीई और दवाएं भेजीं. इसके साथ-साथ चिकित्सा से जुड़े पेशेवरों के लिए ऑनलाइन प्रशिक्षण भी दिया.
चिकित्सा अनुसंधान में भारत की प्रगति पर बल देते हुए भट्टाचार्य ने कहा कि यह 'पड़ोस पहले' नीति का विस्तार करने में मदद करेगी. यह नीति साझा विकास, साझा समृद्धि और चुनौतियों को एक साथ साझा करने और मिलकर उनका समाधान खोजने के बारे में बात करती है. वह कहती हैं कि हमें अपनी कूटनीति पर बहुत भरोसा है.
उन्होंने कहा कि भारतीय और बांग्लादेशी संबंधों की शुरुआत मानवता के भाव के साथ हुई थी यही मूल बात है. वर्ष 1971 में भारत-बांग्लादेश के रिश्ते में मानवता एक बड़े रूप में सामने आई और यही नजरिया होना चाहिए.
भारत और बांग्लादेश अपने संबंधों को मजबूत करने के लिए आगे बढ़ रहे हैं लेकिन कई चुनौतियां हैं जिनसे बड़े व्यवधान आने की संभावना है. तीसरा पक्ष है और हस्तक्षेप करना जारी रखेगा. लेकिन, यह समय की मांग है कि भारत-बांग्लादेश दोनों मिलकर अपने लोगों के जीवन को बदलने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाएं.