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विशेष : कोरोना वायरस महामारी और भारत के पड़ोसी देश...

कोरोना के प्रसार को रोकने के लिए भारत महीनों से देशव्यापी बंद का अभ्यास कर रहा है. दूसरी ओर हमारा पड़ोसी चीन, जो दुर्भाग्य से वायरस के जन्म का केंद्र है, वायरस के प्रसार को नियंत्रित करने में काफी हद तक सफल रहा है. सवाल उठता है कि पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका, नेपाल, भूटान और म्यांमार जैसे अन्य पड़ोसी देश क्या कर रहे हैं? पढ़ें पूरा आलेख...

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Published : Apr 29, 2020, 6:20 PM IST

कोरोना के प्रसार को रोकने के लिए भारत महीनों से देशव्यापी बंद का अभ्यास कर रहा है. दूसरी ओर हमारा पड़ोसी चीन, जो दुर्भाग्य से वायरस के जन्म का केंद्र है, वायरस के प्रसार को नियंत्रित करने में काफी हद तक सफल रहा है. सवाल उठता है कि पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका, नेपाल, भूटान और म्यांमार जैसे अन्य पड़ोसी देश क्या कर रहे हैं? वहां पर कोविड -19 का प्रभाव कैसा है? उन सरकारों के फैसले कैसे लिए जा रहे हैं? उन लोगों को किस तरह की कठिनाई हो रही है? इन पिछड़े देशों की आर्थिक स्थिति कैसी है? चिकित्सा संबंधी कौन सी सावधानियां बरती जा रही हैं?

ऐसी रोचक बातों की चर्चा नीचे की जा रही है :

अफगानिस्तान

बुनियादी सुविधाओं और सेवाओं का अभाव

अफगानिस्तान, एक तालिबान-पीड़ित देश, कोरोना से भी जूझ रहा है. पहले से ही गरीबी और बुनियादी ढांचे की कमी के साथ, वायरस के प्रसार को रोकने के लिए हालिया सरकार के लॉकडाउन के फैसले की वजह से देश की आर्थिक स्थिति और खराब हो गई है. हजारों स्वरोजगार इकाइयों को बंद कर दिया गया था. लाखों लोग अपनी नौकरी खो चुके हैं. सरकार अब पूरी तरह से चीन, पाकिस्तान, ईरान, उज्बेकिस्तान और भारत पर निर्भर है ताकि गरीबों की रक्षा की जा सके. पाकिस्तान और ईरान से लौट रहे लाखों अफगानों के कारण नई समस्याएं पैदा हुई हैं.

ईरान से अफगानिस्तान पहुंचने वाले नागरिकों के साथ, 24 फरवरी को कोविड -19 का पहला मामला और 22 मार्च को कोविड -19 के कारण मौत का पहला मामला सामने आया. देश में फैले वायरस की तेज दर का बड़ा कारण प्रभावित और गैर-प्रभावित व्यक्तियों द्वारा संगरोध नियमों के उल्लंघन को बताया गया है. इससे देश की आबादी के बीच संक्रमण में तेजी से वृद्धि हुई, जिसके परिणामस्वरूप देश के लगभग सभी प्रांतों में तत्काल तालाबंदी लगा दी गई. महामारी की गंभीरता ऐसी है कि यहां तक कि तालिबान भी बंद का समर्थन कर रहे हैं.

पाकिस्तान

अव्यक्त वाहकों की सामाजिक पैठ

पाकिस्तान पर कोविड -19 वज्र का प्रभाव, जहां देश की 25% आबादी गरीबी में जी रही है, अकल्पनीय है. अनुमान है कि लॉकडाउन के कारण लगभग 1.87 करोड़ लोग अपनी नौकरी खो देंगे. ईरान की यात्रा करने वाले दो छात्रों को पहली बार 26 फरवरी को वायरस से संक्रमित पाया गया. पहली मौत 30 मार्च को हुई. तबलीगी जमात, जो 10-12 मार्च के बीच लाहौर में आयोजित की गई थी, के परिणामस्वरूप वायरस के 'सुपर स्प्रेडर्स' का निर्माण हुआ.

इस कार्यक्रम में 40 से अधिक देशों और स्थानीय लोगों समेत एक लाख से अधिक प्रतिनिधियों ने सरकार की सोशल डिस्टेंसिंग की चेतावनी पर ध्यान दिए बिना भाग लिया. इससे वायरस तेजी से फैलने लगा. जैसे-जैसे मामले आगे बढ़े, अधिकारियों ने लगभग 20 हजार तब्लीगी लोगों को क्वारंटाइन कर दिया. 15 मार्च से सभी राज्यों में एक के बाद एक तालाबंदी की घोषणा की गई. केंद्र सरकार ने 30 अप्रैल तक लॉकडाउन को बढ़ा दिया, क्योंकि सभी संक्रमणों में लगभग 79% का कारण सामाजिक संक्रमण होता है. अब प्रतिबंध थोड़े ढीले कर दिए गए है.

देश में लगभग 8 करोड़ गरीबों को उनकी मौजूदा जरूरतों को पूरा करने के लिए 11 हजार रुपये का भुगतान किया जा रहा है. फिर भी लाखों लोग भूखे मर रहे हैं. हालांकि चिंता है कि वायरस तेज गति से फैल रहा है, सरकार ने रमजान की नमाज के लिए मस्जिदों को खोलने की अनुमति दे दी है. चेतावनी दी गई है कि परीक्षणों में गति की कमी मुख्य कारण है कि कई सकारात्मक मामलों की पहचान नहीं की जा रही है और इस वजह से, बहुत सारे अव्यक्त वाहक या स्पर्शोन्मुख रोगी स्वतंत्र रूप से घूम रहे हैं.

ऐसे मरीज समाज के लिए गंभीर खतरा पैदा करते हैं. हालांकि, आपातकाल के लिए देश में कम से कम 1.18 लाख बेड की व्यवस्था के माध्यम से किसी भी अप्रिय स्थिति के लिए अधिकारियों और सरकार को तैयार किया गया है.

नेपाल

टेस्ट के लिए भी बजट नहीं

एक युवक में कोरोना के लक्षण देखे गए जो 23 जनवरी को वुहान से नेपाल लौटा था. उसकी जांच करने के लिए देश में कोई किट उपलब्ध नहीं थे. कोविड-19 वायरस के निदान के लिए एक परीक्षण के ऊपर 17 हजार नेपाली रुपये तक का खर्च आता है. इसलिए उस व्यक्ति के नमूने सिंगापुर भेजे गए, जहां इसका परीक्षण सकारात्मक निकला. उसे तुरंत क्वारंटाइन किया गया. बाद में उसे अगले नौ दिनों के लिए घर पर आइसोलेशन में रहने की सलाह पर रिहा कर दिया गया. जब रोगसूचक मामलों में तेजी से वृद्धि देखी तो सरकार ने पहले चरण में लगभग 100 परीक्षण किट खरीदे.

यह अपने आप में नेपाल की खराब स्थिति का सूचक है. पहले से ही कम आर्थिक सूचकांक के साथ, नेपाल और अधिक बुरी स्थिति में है क्योंकि वह कोरोना प्रभावित भारत और चीन के साथ अपनी सीमाओं को साझा करता है. पर्यटन इस देश की आय का मुख्य स्रोत है. विदेशी पर्यटक यहां माउंट एवरेस्ट पर विभिन्न पर्वतारोहण अभियानों के लिए और देश की प्राकृतिक सुंदरता का आनंद लेने के लिए आते हैं.

नेपाल को महामारी के कारण अपने पर्यटक वीजा को रद करना पड़ा और साथ ही भारत-नेपाल सीमा को भी बंद करना पड़ा. यहां 24 मार्च से तालाबंदी लागू है. नतीजतन, लाखों के सामने बेरोजगारी का खतरा है. पर्वतारोही और उनका समर्थन करके अपनी कमाई करने वाले लोग अब बेकार बैठे हैं. यहां तक कि आपातकालीन दवाओं की आपूर्ति भी भारत सरकार द्वारा की जा रही है.

भूटान

त्वरित प्रतिक्रिया के कारण आश्वासन

भूटान में पहला कोरोना मामला छह मार्च को दर्ज किया गया था. संयुक्त राज्य अमेरिका के एक 79 वर्षीय यात्री को कोरोना से संक्रमित पाया गया और तुरंत, उसकी पत्नी और 70 अन्य को अलग कर दिया गया. उसी महीने के 13 वें दिन, अमेरिकी अपने देश के लिए रवाना हो गया. हालांकि, उनकी पत्नी और ड्राइवर भूटान में ही रह गए. भारत में वायरस के प्रसार के बारे में पता चलने के बाद, भूटान के राजा ने पूरी भारत-भूटान सीमा को बंद कर दिया.

विभिन्न सामानों के आयात पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया. जो लोग भारत, मालदीव और श्रीलंका में अध्ययन या काम कर रहे थे. उन्हें वापस बुला लिया गया और देश की राजधानी थिम्पू में स्थापित संगरोध केंद्रों में ले जाया गया. पूरी तरह से ठीक होने के बाद ही उन्हें घर भेजा गया. इस तरह, स्थिति को नियंत्रण में लाया गया.

श्रीलंका

नागरिक केंद्रित तैयारी

श्रीलंका ने दुनिया को दिखाया है कि चिकित्सा आपातकाल से कैसे निपटना चाहिए. सरकार तबाही के लिए तैयार हो गई थी और अपने नागरिकों के कल्याण को प्राथमिकता पर रखते हुए कार्य किया. सरकार की सतर्कता ने देश की सुरक्षा को बहुत हद तक मदद की. प्रारंभ में, श्रीलंका उन देशों की सूची में 16 वें स्थान पर था, जहां वायरस खतरनाक दर से फैल रहा था. उसकी उचित रणनीतियों और कार्यान्वयन के साथ, यह हाल ही में उन देशों की सूची में 9 वें स्थान पर आ गया है, जो सफलतापूर्वक घातक महामारी पर काबू पा रहे हैं.

यह उन सफल रणनीतियों का सबूत है जो सरकार अपने देश में लागू कर रही थी. जैसे ही विश्व स्वास्थ्य संगठन ने वायरस और महामारी पर अलर्ट जारी किया, देश के सभी हवाई अड्डों में स्क्रीनिंग की व्यवस्था कड़ी कर दी गई. 27 जनवरी को एक महिला में जो चीन से श्रीलंका लौटी थी, कोरोना के लक्षण दिखाई दिए इसलिए उसे तुरंत क्वारंटाइन कर दिया गया.

वुहान में फंसे श्रीलंकाई छात्रों को स्वदेश वापस लाया गया और उन्हें आवश्यक संगरोध समय पूरा करने के बाद ही उनके परिजनों के पास भेज दिया गया. एक पर्यटक गाइड के 10 मार्च को कुछ इतालवी पर्यटकों से वायरस से संक्रमित होने के बाद श्रीलंका में कोविड का पहला मामला दर्ज किया गया था. उसी के बाद मार्च के 14 वें दिन से सरकार ने देश में कर्फ्यू और लॉकडाउन लागू कर दिया जिससे वायरस के प्रसार को रोकने में काफी हद तक मदद मिली.

बांग्लादेश

विषम गरीबी और रोहिंगिया से खतरा

बांग्लादेश की जनसंख्या 16 करोड़ है. देश में किसी भी आपात स्थिति के लिए लगभग 1,169 आईसीयू बेड उपलब्ध हैं. इसका मतलब है कि प्रति लाख लोगों में एक बिस्तर से कम! महीने के अंत तक एक और 150 बेड की स्थापना प्रस्तावित है. 1,155% की वृद्धि के साथ, कोरोना वायरस तेजी से पूरे देश में महामारी का जाल फैला रहा है.

यह पूरे एशिया में वायरस के फैलाव की उच्चतम दर है. पहला कोविड -19 मामला 8 मार्च को दर्ज किया गया था और उसी महीने के 18 वें दिन पहली मौत. सरकार ने मार्च से तालाबंदी लागू कर दी है. कपड़ा उद्योग को सभी प्रकार के प्रतिबंधों से मुक्त रखा गया है, जो देश की अर्थव्यवस्था का मुख्य स्रोत है.

आरोप है कि अब तक केवल 50 हजार से कम परीक्षण किए गए हैं और वास्तविक मृत्यु संख्या को छुपाया जा रहा है. दूसरी ओर नागरिकों में यह चिंता पैदा हो रही है कि लगभग 10 लाख रोहिंग्या शरणार्थी कोरोना सुपर स्प्रेडर बन सकते हैं.

म्यांमार

संकट की गुप्तता

हालांकि चीन और थाईलैंड, जो म्यांमार की सीमा पर हैं, अपने देशों में एक बड़ी संकट की स्थिति की घोषणा कर रहे हैं और बड़ी संख्या में सकारात्मक मामलों और मृत्यु की सूचना दे रहे है, म्यांमार कह रहा है कि उन पर इस संक्रमण का बहुत कम प्रभाव पड़ा है. ऐसे आरोप लगाए जा रहे हैं कि सरकार बहुत ही कम टेस्ट कर रही है और संक्रमित लोगों की कम संख्या बता रही है.

सरकार ने इन आरोपों का खंडन किया है. सरकार का यह भी दावा है कि लोगों की जीवन शैली ही ऐसी है जो इस जानलेवा वायरस के फैलने से उन्हें बचा रही है. म्यांमार में लोग आम तौर पर एक दूसरे से हाथ नहीं मिलाते, एक दूसरे को गले लगाने के लिए प्रोत्साहित नहीं करते और न ही करेंसी नोट गिनते समय अपनी जीभ से गीला करते हैं.

सरकार का कहना है कि इस तरह की जीवन शैली उनके देश में कोरोना प्रभावित होने से पहले बहुत लंबे समय से प्रचलित है. म्यांमार में पहला मामला 23 मार्च को सामने आया था और स्थानीय सरकार ने संबंधित जिले में तालाबंदी लागू कर दी है. केंद्र सरकार ने देश की बाकी जगहों में सामाजिक दूरी का पालन करने के लिए लोगों को सूचित कर दिया है.

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