श्रीनगर : केंद्र की मोदी सरकार ने पिछले साल 5 अगस्त को जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 और 35A को निरस्त कर दिया था. इसके नौ महीने बाद नवगठित केंद्रशासित प्रदेश लद्दाख के गलवान घाटी में चीनी घुसपैठ की खबरें सामने आईं.
चीनी घुसपैठ की खबरों ने न केवल 1999 के कारगिल युद्ध की यादों को ताजा किया, बल्कि लद्दाख के साथ-साथ जम्मू-कश्मीर की स्थानीय आबादी पर भी इसका असर पड़ा है.
स्थानीय लोग पूर्ण शटडाउन और संचार प्रतिबंध के काल से गुजरे ही थे कि वे एक और प्रतिकूल स्थिति की दहलीज पर थे.
अनुच्छेद 370 हटाने की वर्षगांठ पर हम आपको बता रहे हैं कि कोरोना महामारी के बीच जम्मू-कश्मीर को दो केंद्रशासित प्रदेशों में विभाजित करने के बाद वहां के निवासियों के जीवन में क्या बदलाव हुआ और चीनी घुसपैठ ने उनके जीवन को कैसे प्रभावित किया.
जम्मू-कश्मीर पर प्रभाव
उत्तरी कश्मीर के हंदवाड़ा और सोपोर क्षेत्र में पिछले महीने दो अलग-अलग मुठभेड़ के दौरान छह केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) के जवानों की मौत हो गई थी. जिसके बाद सेना के अधिकारियों ने दावा किया था कि इस क्षेत्र में एक बार फिर आतंकी गतिविधियां बढ़ेंगी.
श्रीनगर में तैनात एक वरिष्ठ सैन्य अधिकारी ने खुफिया जानकारी साझा करते हुए ईटीवी भारत को बताया, 'वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर मौजूदा हालात से क्षेत्र में उग्रवाद की नई लहर पैदा हो सकती है. पाकिस्तान नियंत्रण रेखा (एलओसी) पर तनाव बढ़ा कर और सीमा पार आतंकी गतिविधियों को सक्रिय रखते हुए लाभ उठाने की कोशिश कर रहा है.
उन्होंने आगे कहा कि राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) अजीत डोभाल ने भी जम्मू-कश्मीर में सुरक्षा स्थिति के बारे में समीक्षा बैठक के दौरान यही बात कही थी.
नौ मई को, नई दिल्ली में जम्मू-कश्मीर की सुरक्षा स्थिति की समीक्षा करते हुए डोभाल ने सुरक्षाबलों को विपरीत परिस्थिति के लिए तैयार रहने को कहा था.
जबकि सेना और अन्य सुरक्षा एजेंसियां कश्मीर घाटी में आतंकवाद को पूर्ण रूप से खत्म करने की तैयारी कर रही हैं. सुरक्षा विशेषज्ञों ने ईटीवी भारत को बताया कि घबराने की कोई बात नहीं थी.
रक्षा विशेषज्ञ जय कुमार वर्मा ने कहा, 'ऐसी रिपोर्ट्स हो सकती हैं और हमारे सुरक्षाबलों को किसी भी स्थिति के लिए तैयार रहना चाहिए, लेकिन आंकड़े आतंकवाद, संघर्ष विराम उल्लंघन या सुरक्षाबलों पर घातक हमले में वृद्धि का इशारा नहीं करते हैं. कम से कम मेरे लिए, घबराने की कोई बात नहीं है और आपको भी आराम महसूस करना चाहिए.'
वर्मा के अनुसार, सुरक्षाबलों को उनके द्वारा शुरू किए गए लक्षित अभियानों में जनहानि का सामना करना पड़ा है, न कि आतंकवादियों के कारण. वर्मा ने कहा, 'वे (सुरक्षाबल) समन्वित तरीके से काम करते हैं और पूरा ऑपरेशन पहले से संचालित सामान्य घेराबंदी और सर्च ऑपरेशन की बजाय खुफिया जानकारी पर आधारित है.'
श्रीनगर में मौजूद पर्यवेक्षकों के लिए, एलएसी पर तनाव और घाटी में आतंकवाद के बढ़ने के बीच सीधा संबंध है. स्थानीय निवासियों में गुस्सा, कश्मीर पर पाकिस्तान सरकार की बयानबाजी और लद्दाख में तनाव, ये सभी जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे को निरस्त करने से जुड़े हुए हैं.
कश्मीर के एक वरिष्ठ राजनेता ने नाम न छापने की शर्त पर ईटीवी भारत को बताया, 'भारत सरकार पांच अगस्त के बाद चीन की आक्रामक कूटनीतिक की स्थिति को ठीक से नहीं आंक सकी.'
उन्होंने कहा, 'चीन अब कश्मीर मुद्दे में तीसरा पक्ष बन गया है. मुझे लगता है कि लद्दाख अब चीन द्वारा विनियोजित है और पाकिस्तान को कश्मीर संभालने के लिए छोड़ दिया गया है. पाकिस्तान और चीन रणनीतिक साझेदार हैं और सामरिक अभियान भी शुरू कर चुके हैं. आप देखते हैं कि लगभग हर दिन एलओसी पर युद्धविराम का उल्लंघन होता है. अगर इन बातों को जोड़ कर देखें तो चीजें स्पष्ट हो जाएंगी.'
हालांकि, रक्षा विशेषज्ञ जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में होने वाले विकास को चीन और पाकिस्तान के समन्वित प्रयास के रूप में नहीं देखते हैं, मगर यह महसूस करते हैं कि दोनों देश स्थिति का फायदा उठाने की कोशिश कर रहे हैं.
वर्मा ने कहा, 'फिलहाल मुझे पाकिस्तान की तरफ से पैटर्न में कोई बदलाव नहीं दिख रहा है. एलओसी पर गोलीबारी कोई नई बात नहीं है, और यह नियमित रूप से बढ़ रहा है. लद्दाख गतिरोध एक गंभीर मुद्दा है, लेकिन अभी तक यह अकेले चल सकने योग्य है. अभी तक मैं यह नहीं मानता कि जम्मू-कश्मीर के मौजूदा हालात के साथ चीन की घुसपैठ से कोई संबंध है. लेकिन मैं कोई भाग्य बताने वाला नहीं हूं. इसलिए भविष्य में कुछ भी संभव है.'
राजनीतिक परिणाम में देरी
21 मई को, भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव राम माधव ने एक अखबार के लेख, जिसका शीर्षक था- 'यह जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राजनीतिक गतिविधि की अनुमति देने का समय है' में कहा था कि जम्मू-कश्मीर में 5 अगस्त, 2019 के प्रस्ताव से किया गया परिवर्तन एक तार्किक अंत तक पहुंच गया था और यह एक संकेत था कि केंद्र सरकार नवगठित केंद्रशासित प्रदेश की राजनीति में पूर्व की स्थिति बहाल करने के लिए तैयार थी.
इसके बाद तय हुआ था कि जम्मू-कश्मीर में एक सलाहकार परिषद का गठन किया जाएगा, जिसके अध्यक्ष अपनी पार्टी के नेता अल्ताफ बुखारी होंगे.
जम्मू-कश्मीर में दिल्ली के एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए अपनी पार्टी को माध्यम बनाया गया था. मीडिया में कहा गया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिल्ली में 14 मार्च को अल्ताफ बुखारी और उनके 24 सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल के साथ एक सलाहकार परिषद के गठन पर चर्चा की. जून के पहले सप्ताह में इसकी लॉन्चिंग की उम्मीद की जा रही थी, लेकिन कोरोना महामारी के कारण इसे स्थगित कर दिया गया.
हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि सलाहकार परिषद में देरी के पीछे कई और कारण हो सकते हैं.
वरिष्ठ पत्रकार भरत भूषण ने ईटीवी भारत को बताया, 'अगर महामारी ने केंद्र को 18 मई को जम्मू-कश्मीर के लिए नए अधिवास नियमों को अधिसूचित करने से नहीं रोका, तो एक सलाहकार परिषद की नियुक्ति के लिए एक साधारण प्रशासनिक आदेश पारित करने से क्यों रोका जाएगा? देरी के पीछे कोई और कारण हो सकता है.'
उन्हें लगता है कि लद्दाख में चीनी घुसपैठ ने भूमिका निभाई होगी.
भरत भूषण ने कहा, 'पाकिस्तान की तरह, चीन भी नहीं चाहेगा कि जम्मू-कश्मीर में 'सामान्य स्थिति' बहाल करने के लिए भारत कोई कदम उठाए. एक सलाहकार परिषद का निर्माण उस दिशा में एक कदम होगा, जो लोगों की भागीदारी (लंबित चुनाव) के माध्यम से शासन व्यवस्था देगा.
उन्होंने आगे कहा, 'चीन, विशेष रूप से, केंद्रशासित प्रदेश लद्दाख में रुचि रखता है, जो कि जम्मू-कश्मीर से जुड़ा है. एलओसी पर पाकिस्तान की हरकतों की तुलना में लद्दाख में चीन की आक्रामकता से बहुत अलग तरीके से निपटा जा रहा है.'
गृह मंत्री अमित शाह के संसद में पिछले साल 6 अगस्त के भाषण का हवाला देते हुए उन्होंने कहा, 'जब गृह मंत्री भूतपूर्व जम्मू-कश्मीर राज्य का उल्लेख करते हैं, तो उसमें पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर ('आजाद कश्मीर' और गिलगित-बाल्टिस्तान) और अक्साई चिन शामिल हैं. सर्वे ऑफ इंडिया ने 2 नवंबर, 2019 को केंद्रशासित प्रदेशों लद्दाख और जम्मू-कश्मीर के नए नक्शे प्रकाशित किए. कुछ लोग कहेंगे कि लद्दाख की सीमा के भीतर गिलगित-बाल्टिस्तान और अक्साई चिन का चित्रण सिर्फ रूटीन था - पूर्ववर्ती जम्मू-कश्मीर राज्य के पुराने नक्शे की सीमाएं चिन्हित हैं. हालांकि, सरकारी घोषणाओं के साथ जोड़े गए नए मानचित्रों को भारत के हिस्से में वृद्धि की जुगलबंदी के संकेत के रूप में देखा जा सकता है.'
दावों की सच्चाई