चेन्नई: इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी मद्रास के शोधकर्ताओं ने बताया कि पारंपरिक कैंसर चिकित्सा को और अधिक प्रभावी बनाया जा सकता है. रिसर्च टीम रिएक्टिव ऑक्सीजन स्पीसीज (आरओएस) का अध्ययन करती है, जो हाइड्रोजन पेरोक्साइड और हाइड्रॉक्सिल रेडिकल्स जैसे अत्यधिक प्रतिक्रियाशील अणु हैं. यह किमोथेरेपी सहित कई सामान्य कैंसर उपचारों में उपयोग किए जाते हैं.
आईआईटी मद्रास टीम द्वारा किए गए अवलोकन बेहतर परिणामों के लिए फाइनेंशियल एंटीकैंसर उपचार के तरीके दिखाते हैं. शोध का नेतृत्व प्रो जी.के. सुर्यकुमार और प्रोफेसर डी. करुणागरण, संकाय, जैव प्रौद्योगिकी विभाग, आईआईटी मद्रास कर रहा है. उनके हालिया काम को स्प्रिंगर-नेचर के प्रतिष्ठित पीयर-रिव्यू जर्नल साइंटिफिक रिपोर्ट्स में प्रकाशित किया गया है.
शोध पत्र का सह-लेखक प्रो.सूर्यकुमार, प्रो. करुणागरण और रिसर्च स्कॉलर्स, सुश्री उमा किजुवेटिल और सुश्री सोनल ओमर ने किया था. यह विज्ञान और इंजीनियरिंग अनुसंधान बोर्ड (एसईआरबी), विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी), भारत सरकार से अनुदान द्वारा आर्थिक रूप से समर्थित था.
उनके अनुसंधान और इसके महत्व को बताते हुए प्रो. जी.के. सुरेशकुमार ने कहा, 'प्रतिक्रियाशील ऑक्सीजन प्रजातियां ऐसे अणु हैं जो सामान्य कामकाज के दौरान शरीर में उत्पन्न होते हैं और कई चयापचय प्रक्रियाओं से जुड़े होते हैं. इन प्रजातियों का नियमन महत्वपूर्ण है क्योंकि अगर अधिक उत्पादन होता है, तो यह ऑक्सीडेटिव तनाव और कोशिकाओं को नुकसान पहुंचा सकता है. जिसके परिणामस्वरूप सूजन और विभिन्न बीमारियां हो सकती हैं.'
सुरेशकुमार ने आगे कहा, 'आरओएस के ज्ञात हानिकारक प्रभावों के बावजूद उनका उपयोग उन कोशिकाओं को नष्ट करने के लिए किया जा सकता है जिन्हें हम नहीं चाहते हैं. जैसे कि कैंसर कोशिकाएं दरअसल, कीमोथेरेपी सहित सामान्य कैंसर चिकित्सा, कैंसर कोशिकाओं पर दवा द्वारा उत्पन्न आरओएस की कार्रवाई पर आधारित हैं.'