भारत उन कुछ देशों में से एक है, जिन्होंने 1975 की शुरुआत में समेकित बाल विकास सेवा (आईसीडीएस) कार्यक्रम शुरू किया था. इस योजना का उद्देश्य छह वर्ष से कम उम्र के बच्चों और उनकी माताओं को पौष्टिक भोजन, पूर्व स्कूली शिक्षा, प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल और टीकाकरण सेवाएं सुनिश्चित करना था. यह योजना शुरू में 5 हजार आंगनबाड़ी केंद्रों के साथ शुरू की गई थी, लेकिन 7 हजार ब्लॉकों में 14 लाख केंद्रों के बाद भी परियोजना के मूलभूत मिशन को पूरा करना कोसों दूर है.
नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (सीएजी) ने अपनी नवीनतम रिपोर्ट में बताया कि भारत शिशु कल्याण के क्षेत्र में घाना और टोबैगो जैसे अफ्रीकी देशों की तुलना में इतना खराब प्रदर्शन क्यों कर रहा है. कैग की रिपोर्ट ने महिला और बाल विकास मंत्रालय की यह कहते हुए निंदा की है कि उसने समेकित बाल विकास सेवा के लिए आवंटित धनराशि को उन गतिविधियों की ओर मोड़ दिया, जिनके लिए कार्यक्रम के तहत अनुमति नहीं दी गई. पिछले कुछ वर्षों में आईसीडीएस के लिए बजट का आवंटन को भी कम किया गया है. 2016 में लगभग 50 प्रतिशत फंड में कटौती हुई थी.
पोषण संबंधी सूचकांकों के बावजूद इस योजना में 2020 के केंद्रीय बजट में 19 प्रतिशत की गिरावट देखी गई है. कुछ राज्यों ने अपने वित्तीय विवरण का ब्योरा प्रस्तुत किया है, लेकिन वास्तविक व्यय और धन के उपयोग के बीच विसंगतियां साफ है.
सितंबर 2019 में प्रकाशित इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) की रिपोर्ट में 5 वर्ष की आयु से कम 68 प्रतिशत बच्चों की मौत कुपोषण से हुई है. 5 वर्ष से कम आयु के 35 प्रतिशत बच्चे अविकसित हैं और 17 प्रतिशत बच्चे क्षीण हालात में हैं. इन आंकड़ों से पता चलता है कि कैसे अपर्याप्त आवंटन और खराब निगरानी ने इस योजना को नकारात्मक तौर पर प्रभावित किया है.