दिल्ली

delhi

ETV Bharat / bharat

18 फरवरी को पेश होगा उत्तर प्रदेश सरकार का बजट, जानिए इसकी प्रक्रिया

उत्तर प्रदेश विधान मंडल का बजट सत्र 2021 आगामी 18 फरवरी से शुरू हो रहा है. योगी आदित्यनाथ सरकार के इस कार्यकाल का यह अंतिम और पांचवां बजट होगा. बजट सत्र क्या है, कैसे तैयार होता है, बजट सत्र में सदन की कार्यवाही कैसे चलती है. इसको लेकर ईटीवी भारत ने संसदीय मामलों के जानकार व राजनीतिक विश्लेषक प्रोफेसर आरके मिश्र से खास बातचीत की.

By

Published : Feb 6, 2021, 1:23 PM IST

yogi
yogi

लखनऊ : बजट एक ऐसा शब्द है, जिसका आम इंसान से लेकर सरकार तक सभी का वास्ता है. कहां से आमदनी होगी, कहां कितने पैसे खर्च करने हैं, कहां बच सकते हैं और कहां पर कटौती करनी पड़ेगी, इन सब के बारे में हमें सबकुछ सोचना पड़ता है. ऐसे में आप सोचते होंगे कि जब एक परिवार का बजट बनाने में इतनी माथापच्ची होती है, तो देश या फिर प्रदेश का बजट किस तरह से तैयार होता होगा. हम बात करें 23 करोड़ की आबादी वाले देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश की, तो इसके लिए बजट तैयार करना किसी चुनौती से कम नहीं है.

उत्तर प्रदेश विधान मंडल का बजट सत्र 2021 आगामी 18 फरवरी से शुरू हो रहा है. 19 फरवरी को वित्त मंत्री सुरेश खन्ना योगी आदित्यनाथ सरकार के इस कार्यकाल का अंतिम और पांचवां बजट पेश करेंगे. बजट सत्र क्या है, कैसे तैयार होता है बजट, इस सत्र में सदन की कार्यवाही कैसे चलती है. इसको लेकर ईटीवी भारत ने उत्तर प्रदेश के संसदीय मामलों के जानकार राजनीतिक विश्लेषक प्रोफेसर आरके मिश्र से खास बातचीत की.

बजट पर राजनीतिक विश्लेषक प्रोफेसर आरके मिश्र से खास बातचीत.

बजट बनाने की होती है लंबी प्रक्रिया

बजट को टेक्निकली एनुअल फाइनेंशियल स्टेटमेंट (वार्षिक वित्तीय विवरण) कहते हैं. यही नहीं बजट बनाने की एक लंबी प्रक्रिया होती है. बजट प्रस्तुत करने से कई महीने पहले से इसकी तैयारी शुरू हो जाती है. बजट बनाने से पहले काफी समय से शुरू होने वाली प्रक्रिया को फाइनल करना और फिर उसे सदन में पेश किए जाने को बजट कहते हैं. एनुअल फाइनेंशियल स्टेटमेंट अंतिम रूप वित्त मंत्री के स्तर पर ही दिया जाता है और उसे फिर कैबिनेट अनुमोदन देता है. उसके पश्चात ही विधान सभा के बजट सत्र में पेश किया जाता है और फिर इसे सदन में चर्चा के बाद बहुमत से पास किया जाता है.

सभी विभागों से मांगे जाते हैं प्रस्ताव

बजट बनाना कार्यपालिका का दायित्व है. मुख्य रूप से जो वित्त मंत्री होते हैं और उनके साथ जो वरिष्ठ नौकरशाह होते हैं, इसे बनाने का काम करते हैं. प्रोफेसर आरके मिश्र कहते हैं कि बजट बनाने की प्रक्रिया कार्यपालिका का काम होता है. उसमें वह जितने भी शासन के विभाग हैं उन सभी से प्रस्ताव आमंत्रित करते हैं. आय और व्यय के प्रस्ताव मांगे जाते हैं. उनकी मांगो के आधार पर बजट बनाया जाता है और उसके बाद वित्तीय विशेषज्ञ से परामर्श भी लिया जाता है. इन सब को वित्त मंत्री के मार्गदर्शन में उन सब को एग्जामिन करते हुए अंतिम प्रस्ताव बनाया जाता है. जिसको विधानसभा में पेश किया जाता है.

ईटीवी भारत से बातचीत में संसदीय मामलों के जानकार व राजनीतिक विश्लेषक प्रोफेसर आरके मिश्र कहते हैं कि बजट में दो बातें मुख्य रूप से होती हैं. प्रदेश के सालाना बजट को वित्त मंत्री की देख रेख में वरिष्ठ नौकरशाह यानी कार्यपालिका बनाती है. यानी वित्त मंत्री या मुख्यमंत्री के अधीनस्थों के द्वारा बजट तैयार किया जाता है. इसके बाद तैयार वित्तीय प्रारूप को बजट के रूप में सदन में वित्त मंत्री प्रस्तुत करते हैं.

बजट के लिए सत्र का एक दिन निर्धारित होता है

विधानसभा में बजट प्रस्तुत करने के लिए पूरा एक दिन निर्धारित किया जाता है. बजट पेश किए जाने से पूर्व विधानसभा की कार्यमंत्रणा समिति उसे स्वीकृति देती है. उसी दिन वित्त मंत्री का बजट भाषण होता है और स्पीकर समय निर्धारित करते हैं कि इसपर सदन किस दिन और कितने घंटे चर्चा करेगा और उसकी समयावधि क्या होगी. तो इस प्रकार से विचार-विमर्श की प्रक्रिया चलती है, जिसमें सत्ता पक्ष और विपक्ष के सदस्य भाग लेते हैं.

बजट के दो पक्ष होते हैं

प्रोफेसर आरके मिश्रा कहते हैं कि बजट के जो दो पक्ष होते हैं, उनमें एक राजस्व का पक्ष और दूसरा आय-व्यव का होता है. बजट के दोनों पक्षों के विभिन्न बिंदुओं पर विस्तार पूर्वक चर्चा होती है और अंततः बजट को सदन के द्वारा पास किया जाता है. विधानसभा के द्वारा बजट पास होने के बाद उसे विधान परिषद में भेजा जाता है. विधान परिषद को उस पर विचार करने का तो अधिकार है, लेकिन विधान परिषद को वित्तीय शक्तियां प्राप्त नहीं हैं. इसलिए विधान परिषद में बजट पास होना आवश्यक नहीं है. विधान परिषद केवल उसके ऊपर विचार विमर्श कर सकती है.

बजट में होते हैं तीन वाचन

सदन में जब बजट पर विचार विमर्श होता है, तो उसमें तीन वाचन होते हैं. मुख्य रूप से प्रथम वाचन, द्वितीय वाचन और तृतीय वाचन. तीनों वाचनों को अलग-अलग समय पर निर्धारित किया जाता है और मुख्य रूप से द्वितीय वाचन जो होता है वह बहुत महत्वपूर्ण होता है. जिसमें सदन में काफी बहस होती है, वाद विवाद होता है. साथ ही सदस्यों को कट मोशन भी प्रस्तुत करने का अधिकार रहता है, लेकिन सामान्य रूप से जब तक सरकार उनको स्वीकार ना कर ले तब तक कट मोशन पर कोई फर्क नहीं पड़ता. यानी वह एक प्रकार से अस्वीकृत हो जाते हैं. इस प्रक्रिया के द्वारा सदन में विधान सभा में विचार-विमर्श के उपरांत उसको पास कर देती है.

बजट पर चर्चा के बाद फिर इसमें संशोधनों के साथ या बिना किस संशोधन के बजट को राज्यपाल की स्वीकृति के लिए भेजा जाता है. राज्यपाल की स्वीकृति मिलने के बाद और वह बजट लागू करने की स्थिति में आ जाता है.

प्रोफेसर आरके मिश्र कहते हैं कि पहले बजट सत्र में सदन में सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच काफी विचार-विमर्श होता था और बजट के हर पक्ष की समीक्षा होती थी. वहीं आज के दौर में विधानसभा का सत्र की अवधि घटती जा रही है. सदस्य भी अब उतना उत्साह प्रदर्शित नहीं करते हैं. विभिन्न पक्षों पर विचार करने के लिए आम तौर से राजनीतिक दृष्टि से विचार विमर्श होता है, लेकिन बजट को लेकर आर्थिक दृष्टि के साथ ही वित्तीय दृष्टि से विचार होना चाहिए. पहले और अब में काफी अंतर आया है, लेकिन यह है कि अभी भी वह सब प्रक्रिया अपनाई जाती हैं, क्योंकि वह संविधान और कानून की आवश्यकता है और उसी अनुरूप बजट पेश करते हुए पास किया जाता है. पहले जितना समय बजट के ऊपर दिया जाता था, उसमें निश्चित रूप से अब कमी आई है.

ABOUT THE AUTHOR

...view details