नई दिल्ली :वर्तमान में भारत और चीन के बीच सीमा पर सैन्य तनाव असमान छू रहा है. इतना ही नहीं दोनों देशों के बीच तनाव कम होने का नाम नहीं ले रहा है और आगे भी कम होने के संकेत नहीं दिख रहे हैं, जिससे भारतीय सैनिकों को शीत ऋतु में भी ऊंचाई वाले स्थानों पर रहना पड़ सकता है. शीत ऋतु में यहां पर हाड़कपाती ठंड पड़ती है. इससे बचने के लिए सेना को रसद और बुनियादी चीजों की जरूरत होगी. ऐसे में अगर सरकार भारतीय सेना को उचित व्यवस्था मुहैया करवाती है, तो इससे सैनिकों का मनोबल बढ़ेगा.
लोक लेखा समित (एक प्रमुख संसदीय स्थायी समिति) ने सोमवार को एक बैठक में नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) द्वारा हाल ही में प्रस्तुत रिपोर्ट पर विचार किया. कैग की यह रिपोर्ट सेना से जुड़े सौदों में देरी की एक घिनौनी कहानी बयां करती है. साथ ही सरकार के अनिर्णय और दोषपूर्ण प्रबंध के कारण अधिक ऊचांई पर तैनात सैनिकों के आवास और रहने की स्थिति में सुधार नहीं हो पा रहा है.
सेना की आवास योजना को 13 वर्ष के पूर्व स्थगित कर दी गई थी. वहीं तीन पायलट परियोजनाओं पर जबर्दस्त खर्च का प्रयास किया गया. इसकी 274.11 करोड़ रुपये की लागत आई थी, जब नवंबर 2017 में डायरेक्टरेट जनरल ऑफ मिलिट्री ऑपरेशंस (DGMO) ने इस परियोजना को बंद कर दिया.
अगस्त 2019 में मुख्य निर्माण अभियंता (केंद्रीय आयुध डिपो से), जिन्होंने पायलट परियोजनाओं को निष्पादित किया था. उसने राष्ट्रीय लेखा परीक्षक कैग को एक रिपोर्ट में कहा था कि मुख्य परियोजना के बंद होने के कारणों का पता नहीं चल पाया है.
अधिक ऊंचाई वाले क्षेत्रों में जलवायु चुनौतियों का सामना करने के लिए फाइबर युक्त प्लास्टिक (FRP) या फाइबर ग्लास हट्स (FGH), बिजली, हीटिंग, पानी की आपूर्ति आदि सहायक सेवाएं सेनाओं को प्रदान की जाती हैं.