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पीओके में शिया समुदाय पर अत्याचार, आबादी में घटी हिस्सेदारी - जनसांख्यिकी

पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (पीओके) के गिलगित-बाल्टिस्तान इलाके में शिया समुदाय की आबादी लगातार घटती जा रही है. कभी आबादी में इनकी हिस्सेदारी 80 फीसदी तक हुआ करती थी, लेकिन अब उनकी भागीदारी मात्र 39 फीसदी रह गई है. इसकी वजह है पाकिस्तान का अपने अल्पसंख्यक समुदाय के प्रति अपनाई गई नीति. आइए जानते हैं विस्तार से आखिर पाकिस्तान ने शिया समुदाय के खिलाफ किस तरह की नीति अपनाई है.

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Published : Sep 2, 2020, 3:38 PM IST

Updated : Sep 2, 2020, 9:09 PM IST

नई दिल्ली/वाशिंगटन :पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर का गिलगित-बाल्टिस्तान क्षेत्र शिया बाहुल्य हुआ करता था. लेकिन, पाकिस्तान की नीति के कारण शिया समुदाय की आबादी लगातार कम होती जा रही है. उनकी हिस्सेदारी 80 फीसदी से घटकर 39 फीसदी रह गई है.

नई दिल्ली स्थित लॉ एंड सोसाइटी अलांयस संस्था ने हाल ही में एक अध्ययन रिपोर्ट प्रकाशित की है. इसके अनुसार गिलगित-बाल्टिस्तान में 39 फीसदी शिया, 27 फीसदी सुन्नी, 18 फीसदी इस्माली और 16 फीसदी नुर्बाक्शी हैं. एक समय में यहां पर 80 फीसदी शिया हुआ करते थे. यह इलाका जम्मू-कश्मीर का क्षेत्र है, लेकिन पाकिस्तान ने इस पर कब्जा कर रखा है.

1998 की जनगणना के अनुसार इस क्षेत्र की कुल आबादी 8,70,000 है. गिलगित-बाल्टिस्तान दुनिया के बहु जातीय, बहु भाषी, बहु सांस्कृतिक इलाकों में से एक था, लेकिन पिछले 70 सालों में पाकिस्तानी सेना ने उत्पीड़न की नीति अपनाई है.

शिया समुदाय पर अत्याचार

रिपोर्ट के मुताबिक यहां की संस्कृति और बहु जातीयता पर 1988 में सबसे अधिक प्रहार किया गया था. पाकिस्तानी सेना और कश्मीरी मामलों के संघीय मंत्री द्वारा समर्थित आतंकी संगठनों ने पूरे क्षेत्र पर हमला किया. सैकड़ों लोगों को मौत के घाट उतार दिया. 16 दिनों तक लगातार मार-काट चलता रहा. 14 से अधिक गांव जला दिए गए. महिलाओं की इज्जत लूटी गई. इसे गिलगित नरसंहार के रूप में भी जाना जाता है.

इस रिपोर्ट में कहा गया है कि धर्म की आड़ में लोगों को घरों में जिंदा जला दिया जाता था. 2013 तक 3000 से अधिक शिया समुदाय के लोगों की हत्या कर दी गई. यह राज्य द्वारा समर्थित सुन्नी चरमपंथियों का कृत्य था.

इंटरनेशनल ह्यूमन राइट्स ऑब्जर्वर्स के गिलगित-बाल्टिस्तान चैप्टर में भी इसकी पुष्टि की गई है. इसके अनुसार 2500 बच्चे अनाथ हो गए, 900 से अधिक महिलाओं ने अपना सुहाग खो दिया. संपत्तियों के नुकसान का तो आकलन ही नहीं हुआ.

16 अगस्त 2012 को 19 शिया यात्रियों को बस से उतारकर मार दिया गया. छह महीने के अंदर इस तरह की तीसरी घटना थी. इसके बाद ऐसी कई घटनाएं हुईं. 28 फरवरी 2012 को कोहिस्तान के कराकोरम हाईवे पर 18 शिया लोगों को मार दिया गया. तीन अप्रैल 2012 को 20 शिया समुदाय के लोगों को गोलियों से भून दिया गया.

पूरे पाकिस्तान में शिया समुदाय निशाने पर रहे है. तीन अप्रैल को क्वेटा में और 6 अप्रैल 2012 को कराची में शिया समुदाय के छात्रों पर निशाना साधा गया.

गिलगित-बाल्टिस्तान क्षेत्र के शियाओं को देश भर में निशाना बनाकर मार दिया जाता है. गिलगित और चिलास में हुई हिंसा के बाद गिलगित-बाल्टिस्तान के दो शियाओं की 3 अप्रैल को क्वेटा में और गिलगित-बाल्टिस्तान के एक शिया छात्र अहमर अब्बास की 6 अप्रैल 2012 को कराची में गोली मारकर हत्या कर दी गई थी.

लक्षित हत्याओं के विरोध में मजलिस-ए-वहादतुल मुस्लिमीन (MWM) के उप महासचिव अल्लामा असगर असकरी ने कहा लक्षित हत्याओं के आसन्न द्वेष से पूरे शिया समुदाय को गहरा धक्का लगा है.

सरकार सिंध में मोरों के मरने से चिंतित थी, लेकिन चरमपंथियों द्वारा निर्दयतापूर्वक मारे गए लोगों को कोई महत्व नहीं दिया जाता है.

रिपोर्ट में कहा गया कि इन क्षेत्रों में जातीय सफाई के कई हिंसक प्रयासों के अलावा जिया-उल-हक के नेतृत्व में पाकिस्तान सरकार और सेना ने क्षेत्र की जातीय जनसांख्यिकी को बदलने के लिए कई निरंतर प्रयास किए.

1980 के दशक के बाद पंजाब और खैबर पख्तूनख्वा जैसे पाकिस्तानी प्रांतों के सुन्नी मुसलमानों ने व्यापार मार्गों के माध्यम से आमदनी शुरू कर दी. इसके बाद धीरे-धीरे इस क्षेत्र में बसना शुरू कर दिया.

शोधकर्ता और कार्यकर्ता सैमुअल बैद बताते हैं कि बाहरी लोगों की आमद ने दो समस्याएं पैदा की. स्थानीय लोगों के लिए रोजगार के अवसरों में कमी और सांप्रदायिक तनाव की क्रूरता. बाहरी लोग जमीन और सरकारी नौकरी हड़प लेते हैं. यह केवल बाहरी लोगों को हड़पने वाली नौकरियां नहीं हैं लेकिन, वे इस क्षेत्र में वन और प्राकृतिक संसाधनों पर भी लूट करते हैं. गिलगित-बाल्टिस्तान के विकास के लिए आवंटित धन को वहां तैनात सेना पर खर्च किया जाता है.

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पाकिस्तानी सेना के सक्रिय समर्थन के साथ खुलेआम गिलगित-बाल्टिस्तानमें चलाए जा रहे आतंकी शिविरों ने सिपाह-ए-सहाबा पाकिस्तान (एसएसपी) के सैकड़ों सुन्नी जिहादियों पर प्रतिबंध लगा दिया, जो अब पूरे क्षेत्र में काम कर रहे हैं, जिससे शिया मुस्लिम मारे जा रहे हैं.

गिलगित-बाल्टिस्तान क्षेत्र शिया बाहुल्य था.

पाकिस्तानी सरकार के इस दावे को दोहराते हुए कि विदेशी ताकतें गिलगित-बाल्टिस्तान दंगों में शामिल हैं, गिलगित-बाल्टिस्तान के महानिरीक्षक हुसैन असगर ने रिकॉर्ड में यह कहा कि मुझे नहीं लगता कि संप्रदायिक दंगों में कोई विदेशी हाथ शामिल है.

अध्ययन में कहा गया है कि सुन्नी मुसलमानों को कट्टर बनाना न केवल पाकिस्तान में शिया, इस्माइली और नूरबख्शी समुदायों के सांप्रदायिक हिंसा और जातीय सफाई का लक्ष्य रहा है, बल्कि उदार सुन्नी मुसलमान भी इस क्षेत्र को साफ करने और इसे आबाद करने के लिए पाकिस्तानी सरकार और सेना के प्रयासों का शिकार हुए हैं.

कई वर्षों से गिलगित-बाल्टिस्तान के अभ्यर्थी अपनी चिंता व्यक्त कर रहे हैं कि उनका क्षेत्र वजीरिस्तान क्षेत्र से तालिबान के हमले के तहत है. इसे जिहादियों के लिए सुरक्षित पनाहगाह के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है, जिसको पाकिस्तान सेना में सलाफी तत्वों द्वारा समर्थित किया गया है.

बलूचिस्तान नेशनल फ्रंट के अब्दुल हामिद खान ने यूएन ह्यूमन राइट्स काउंसिल के 13वें सत्र में कहा कि मानवाधिकारों के हनन कई दशकों तक गिलगित-बाल्टिस्तान में व्यापक और आम है लेकिन, स्थानीय मीडिया और स्वतंत्र न्यायपालिका की अनुपस्थिति ने गैरकानूनी प्रथाओं को छिपाने में मदद की है.

1974 में गिलगित-बाल्टिस्तान में राज्य विषय नियम को समाप्त करने और 2009 में गिलगित-बाल्टिस्तान सशक्तीकरण और स्वशासन आदेश की शुरुआत ने स्थानीय लोगों से भूमि अधिकार छीन लिए. इस क्षेत्र में पाकिस्तानी बस्तियों के लिए दरवाजा खोल दिया.

कई कारपोरेट, आर्मी जनरलों और राजनेताओं सहित पाकिस्तानी कुलीनों ने इसमें भूमि का अधिग्रहण किया और विशाल मकानों का निर्माण किया. इस सूची में प्रधानमंत्री इमरान खान, पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ, सीनेटर तलहा महमूद और हामिद गुल के साथ-साथ कई अन्य शामिल हैं.

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बहुत से चीनी नागरिक जो शुरू में चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (CPEC) पर काम करने आए थे, अब गिलगित-बाल्टिस्तान में बस गए हैं.

2010 की स्ट्रैटफोर की रिपोर्ट में आंकड़ों का अनुमान लगाया गया और दावा किया गया कि 7,000 से 11,000 पीएलए सैनिक सीपीईसी परियोजनाओं में शामिल हैं. जिनकी एक दशक में संख्या कई गुना होने की उम्मीद है.

सीपीईसी परियोजनाओं पर काम करने के लिए पूर्व सेना अधिकारियों सहित कई कट्टरपंथी पाकिस्तानी सैनिकों को रोप-वे किया जा रहा है. ये वहाबी सुन्नी कार्यकर्ता स्थायी रूप से जी-बी में बसते हैं, इस क्षेत्र को और कट्टरपंथी बनाते हैं और शिया बहुमत को मिटा देते हैं.

पाकिस्तान की संघीय सरकार भी 1971 की शुरुआत से ही पाक अधिकृत कश्मीर की जनसांख्यिकी को बदलने के लिए काम कर रही है.

1971 में लिखे एक लेख आजाद कश्मीर : ए कॉलोनी ऑफ इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ पाकिस्तान शीर्षक से संयुक्त कश्मीर लिबरेशन फ्रंट के संयोजक यूके स्थित एम. बशीर असेफ ने पीओजेके के उपनिवेशन के लिए पाकिस्तान द्वारा किए गए प्रयासों पर विवरण प्रस्तुत किया.

जिसमें बताया गया कि पाकिस्तानी सरकार पहले से ही आसानी से पीओजेके में गैर-कश्मीरियों को बसाने की सुविधा दे रही थी.

पाकिस्तान सरकार स्थानीय कार्यबल की सेना को पीओजेके में परियोजनाओं के ठेके देने और बाद में इस क्षेत्र में बसने का पक्षधर है. मजदूरों को श्रमिक अधिकारों से वंचित किया जाता है क्योंकि उन्हें श्रमिक संघ बनाने से रोक दिया जाता था. पाक अधिकृत कश्मीर में सेना के जवानों को बसाने की स्पष्ट वजह भारत के साथ टकराव के मामले में नियंत्रण रेखा (एलओसी) के साथ एक प्रमुख स्थान सुनिश्चित करना है.

गिलगित-बाल्टिस्तान के शियाओं पर लक्षित हमलों के अलावा पाकिस्तान सरकार भी पाक अधिकृत कश्मीर शिया मुसलमानों की जातीय सफाई सुनिश्चित करने के लिए निरंतर प्रयास कर रही है.

मीडिया संगठन एलयूपीबी द्वारा संकलित और अनुरक्षित एक डेटाबेस के अनुसार पाक अधिकृत कश्मीर में शिया समुदाय पर लगभग आधा दर्जन से अधिक संगठित हमले हुए हैं, जिससे असंख्य लोग हताहत हुए हैं.

अध्ययन में कहा गया है कि हमले शिया क्षेत्रों में और शिया जुलूसों पर सटीक रूप से लक्षित किए गए थे और उनमें से ज्यादातर सुन्नी मुसलमानों के बड़े समूहों द्वारा सामूहिक रूप से किए गए थे.

Last Updated : Sep 2, 2020, 9:09 PM IST

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