नई दिल्ली/वाशिंगटन :पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर का गिलगित-बाल्टिस्तान क्षेत्र शिया बाहुल्य हुआ करता था. लेकिन, पाकिस्तान की नीति के कारण शिया समुदाय की आबादी लगातार कम होती जा रही है. उनकी हिस्सेदारी 80 फीसदी से घटकर 39 फीसदी रह गई है.
नई दिल्ली स्थित लॉ एंड सोसाइटी अलांयस संस्था ने हाल ही में एक अध्ययन रिपोर्ट प्रकाशित की है. इसके अनुसार गिलगित-बाल्टिस्तान में 39 फीसदी शिया, 27 फीसदी सुन्नी, 18 फीसदी इस्माली और 16 फीसदी नुर्बाक्शी हैं. एक समय में यहां पर 80 फीसदी शिया हुआ करते थे. यह इलाका जम्मू-कश्मीर का क्षेत्र है, लेकिन पाकिस्तान ने इस पर कब्जा कर रखा है.
1998 की जनगणना के अनुसार इस क्षेत्र की कुल आबादी 8,70,000 है. गिलगित-बाल्टिस्तान दुनिया के बहु जातीय, बहु भाषी, बहु सांस्कृतिक इलाकों में से एक था, लेकिन पिछले 70 सालों में पाकिस्तानी सेना ने उत्पीड़न की नीति अपनाई है.
रिपोर्ट के मुताबिक यहां की संस्कृति और बहु जातीयता पर 1988 में सबसे अधिक प्रहार किया गया था. पाकिस्तानी सेना और कश्मीरी मामलों के संघीय मंत्री द्वारा समर्थित आतंकी संगठनों ने पूरे क्षेत्र पर हमला किया. सैकड़ों लोगों को मौत के घाट उतार दिया. 16 दिनों तक लगातार मार-काट चलता रहा. 14 से अधिक गांव जला दिए गए. महिलाओं की इज्जत लूटी गई. इसे गिलगित नरसंहार के रूप में भी जाना जाता है.
इस रिपोर्ट में कहा गया है कि धर्म की आड़ में लोगों को घरों में जिंदा जला दिया जाता था. 2013 तक 3000 से अधिक शिया समुदाय के लोगों की हत्या कर दी गई. यह राज्य द्वारा समर्थित सुन्नी चरमपंथियों का कृत्य था.
इंटरनेशनल ह्यूमन राइट्स ऑब्जर्वर्स के गिलगित-बाल्टिस्तान चैप्टर में भी इसकी पुष्टि की गई है. इसके अनुसार 2500 बच्चे अनाथ हो गए, 900 से अधिक महिलाओं ने अपना सुहाग खो दिया. संपत्तियों के नुकसान का तो आकलन ही नहीं हुआ.
16 अगस्त 2012 को 19 शिया यात्रियों को बस से उतारकर मार दिया गया. छह महीने के अंदर इस तरह की तीसरी घटना थी. इसके बाद ऐसी कई घटनाएं हुईं. 28 फरवरी 2012 को कोहिस्तान के कराकोरम हाईवे पर 18 शिया लोगों को मार दिया गया. तीन अप्रैल 2012 को 20 शिया समुदाय के लोगों को गोलियों से भून दिया गया.
पूरे पाकिस्तान में शिया समुदाय निशाने पर रहे है. तीन अप्रैल को क्वेटा में और 6 अप्रैल 2012 को कराची में शिया समुदाय के छात्रों पर निशाना साधा गया.
गिलगित-बाल्टिस्तान क्षेत्र के शियाओं को देश भर में निशाना बनाकर मार दिया जाता है. गिलगित और चिलास में हुई हिंसा के बाद गिलगित-बाल्टिस्तान के दो शियाओं की 3 अप्रैल को क्वेटा में और गिलगित-बाल्टिस्तान के एक शिया छात्र अहमर अब्बास की 6 अप्रैल 2012 को कराची में गोली मारकर हत्या कर दी गई थी.
लक्षित हत्याओं के विरोध में मजलिस-ए-वहादतुल मुस्लिमीन (MWM) के उप महासचिव अल्लामा असगर असकरी ने कहा लक्षित हत्याओं के आसन्न द्वेष से पूरे शिया समुदाय को गहरा धक्का लगा है.
सरकार सिंध में मोरों के मरने से चिंतित थी, लेकिन चरमपंथियों द्वारा निर्दयतापूर्वक मारे गए लोगों को कोई महत्व नहीं दिया जाता है.
रिपोर्ट में कहा गया कि इन क्षेत्रों में जातीय सफाई के कई हिंसक प्रयासों के अलावा जिया-उल-हक के नेतृत्व में पाकिस्तान सरकार और सेना ने क्षेत्र की जातीय जनसांख्यिकी को बदलने के लिए कई निरंतर प्रयास किए.
1980 के दशक के बाद पंजाब और खैबर पख्तूनख्वा जैसे पाकिस्तानी प्रांतों के सुन्नी मुसलमानों ने व्यापार मार्गों के माध्यम से आमदनी शुरू कर दी. इसके बाद धीरे-धीरे इस क्षेत्र में बसना शुरू कर दिया.
शोधकर्ता और कार्यकर्ता सैमुअल बैद बताते हैं कि बाहरी लोगों की आमद ने दो समस्याएं पैदा की. स्थानीय लोगों के लिए रोजगार के अवसरों में कमी और सांप्रदायिक तनाव की क्रूरता. बाहरी लोग जमीन और सरकारी नौकरी हड़प लेते हैं. यह केवल बाहरी लोगों को हड़पने वाली नौकरियां नहीं हैं लेकिन, वे इस क्षेत्र में वन और प्राकृतिक संसाधनों पर भी लूट करते हैं. गिलगित-बाल्टिस्तान के विकास के लिए आवंटित धन को वहां तैनात सेना पर खर्च किया जाता है.
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पाकिस्तानी सेना के सक्रिय समर्थन के साथ खुलेआम गिलगित-बाल्टिस्तानमें चलाए जा रहे आतंकी शिविरों ने सिपाह-ए-सहाबा पाकिस्तान (एसएसपी) के सैकड़ों सुन्नी जिहादियों पर प्रतिबंध लगा दिया, जो अब पूरे क्षेत्र में काम कर रहे हैं, जिससे शिया मुस्लिम मारे जा रहे हैं.