देहरादून : आपने प्रायः लोगों पर वन्यजीवों के हमलों की खबरें सुनी होंगी. यह हमले और वन्यजीवों का खौफ कोई नई बात नहीं है. आज हम आपको वन्यजीवों के हमलों से परेशान लोगों की रक्षा के लिए आगे आए एक शिकारी के विषय रोचक जानकारी देंगे. उत्तराखंड राज्य वनों और वन्यजीव संपदा के लिए प्रसिद्ध है. एक समय था जब इस संपदा के लिए उन्हें भारी कीमत चुकानी पड़ती थी. यहां के जंगलों में विचरने वाले बाघ अक्सर नरभक्षी हो जाते थे और लोगों को शिकार बनाने लगते थे. इस समस्या के साथ मानव और वन्यजीवों में संघर्ष बढ़ने लगे. ठीक उसी समय एक शिकारी का नाम चर्चा में आया. यह शिकारी शौक नहीं, बल्कि शांति या लोगों के जीवन रक्षा के लिए बाघों का बहादुरी से मुकाबला कर शिकार करता. इस शिकारी का नाम था जिम कार्बेट.
जिम कार्बेट का पूरा नाम जेम्स एडवर्ड कार्बेट था और उनका जन्म नैनीताल में 25 जुलाई 1875 में हुआ था. 1906 में जिम कार्बेट उस समय चर्चा में आए जब उन्हें भारत और नेपाल में सवा चार सौ से ज्यादा लोगों को निवाला बना चुके नरभक्षी बाघ को मारने की चुनौती मिली.
इस नरभक्षी को मारने से पहले जिम कार्बेट ने सरकार के सामने अपनी शर्तें रखीं, जिन्हें सरकार ने मान लिया. जंगलों में काफी समय नरभक्षी का पता लगाने के बाद आखिर एकदिन उन्होंने बाघिन को गोली का शिकार बनाया और लोगों को आतंक से मुक्ति दिलाई.
आदमखोर के शिकार को आता था बुलावा
इस शिकार के बाद उनकी ख्याति दूर-दूर तक फैल गई. उन्हें नरभक्षी बाघों से मुक्ति दिलाने के लिए बुलावे आने लगे. वह भी लोगों की मदद के लिए कभी पीछे नहीं रहते. अपनी जान की परवाह किए बिना नरभक्षी बाघों का पीछा करते रहते. वह कई-कई रातें जंगलों में गुजारते.
ऐसे पेड़ों पर सोते जहां बंदर हों, ताकि बाघ के आने पर बंदरों के शोर से उन्हें पता चल सके. नरभक्षी जीवों के शिकार को लेकर अनेक किस्से हैं. उत्तराखंड के लोग आज भी उन्हें याद करते हैं.
कार्बेट बचपन से ही बहुत मेहनती और निडर थे. उन्होंने स्टेशन मास्टरी की, सेना में अधिकारी रहे और अंत में ट्रांसपोर्ट अधिकारी भी बने. उन्होंने मानवाधिकारों के लिए आवाज उठाई. साथ ही संरक्षित जीवों के आंदोलन प्रारंभ किया.
उन्होंने उत्तराखंड के नैनीताल स्थित कालाढूंगी में घर बनाया था, जिसे देखने आज भी पर्यटक आते हैं. जिम कार्बेट को जब भी समय मिलता वह कुमाऊं के वनों में घूमने निकल जाते थे. वह वन्य जीवों को बहुत प्यार करते थे. लोगों का जीवन खतरे में न पड़े इसलिए वह नरभक्षी हो चुके बाघों या अन्य वन्य जीवों का ही शिकार करते थे.