नई दिल्ली: हिमालय में स्थित पूर्वी लद्धाख का वह इलाका जहां की रातें बेहद सर्द होती हैं. वहां का वातावरण काफी कष्टकारी होता है. ऐसे में 50 किमी प्रति घंटे की गति से चलने वाले लम्बरिंग टैंक को इलाकों में तैनात करना आसान काम नहीं होता है.
पूर्वी लद्दाख में दो प्रकार की टोपोग्राफी ( प्राकृतिक और आर्टिफिशियल स्थिति) शामिल हैं. एक जो पूरी तरह से बंजर चट्टानी भूमि और दूसरी आसमान को छूती दुर्गम पहाड़ी. भारी बर्फबारी और दुर्गम पहाड़ी दोनों को मिला दें तो यहां के इलाके और भी ज्यादा खतरनाक नजर आते हैं. यहां ठंड का मतलब सिर्फ और सिर्फ आधिक से अधिक ठंड और भारी बर्फबारी है.
वहीं दूसरी ओर यहां ऊंचे पहाड़ों के बीच घाटियां मौजूद हैं. इस क्षेत्र के विशाल मैदान चुशुल या डेमचोक में पठारी मैदान हैं, जो टैंक युद्ध के लिए आदर्श इलाके हैं. यही कारण है कि अन्य हथियार प्लेटफार्मों के साथ भारतीय सेना के लगभग 200 टैंक तैनात हैं जो भारत और चीन के बीच एक सीमा पर चल रही तनावपूर्ण स्थिति के बीच मुख्य केंद्र बने हुए हैं. हालांकि अधिक ऊंचाई पर हैंडलिंग टैंक को उतारने के लिए विमान में 45 टन के टैंक को पैक करना आसान है, यह कहना बेहद सरल है.
गौरतलब है कि 2014 के बाद से लद्दाख में छोटी टैंकों की मौजूदगी थी. इसके बाद 2015 में लेह हवाई अड्डे पर बड़ी संख्या में टैंकों को 11,000 फीट से अधिक ऊंचाई पर लेकर उड़ान भरना शुरू हुई और वहां से गर्मियों की शुरुआत से पूर्वी लद्दाख में उनकी तैनाती की जगह पहुंचाना शुरू हुआ.
2015-16 में फिर से हमने सिर्फ एक बार ग्लोबमास्टर सी -17 में टी -72 टैंक लेकर उड़ान भरी. बाद में हमने सी -17 में दो टैंक लेकर उड़ान भरी. यह प्रक्रिया एक वर्ष से अधिक समय तक चली.
एक सेवारत वरिष्ठ रक्षा अधिकारी ने कहा कि इस क्षेत्र में T-90 के तैनात किए जाने से हम किसी भी प्रकार के टैंक युद्ध या किसी भी स्थिति से निपटने के लिए तैयार हैं, यहां टैंक काम में आएंगे. उन्होंने कहा कि यह टैंक पहले भी ऑपरेशन में भी सक्रिय रूप से शामिल थे और अब जो हो रहा है वह भी उसमें भी सक्रिय रहेंगे. यह टैंक अपनी विस्फोटक शक्ति के साथ तैयार हैं.