हैदराबाद : भारत ने कभी सोचा भी नहीं था चीन कभी हमला भी करेगा, लेकिन उसने ऐसा किया. चीन की ओर से 20 अक्टूबर, 1962 को भारत पर हमला किया गया, जिसे 1962 के चीन-भारत युद्ध के नाम से भी जाना जाता है. चीन द्वारा कभी हमला नहीं किए जाने के विश्वास ने भारतीय सेना को युद्ध के लिए तैयार होने ही नहीं दिया. नतीजतन 10-20 हजार भारतीय और करीब 80 हजार चीनी सैनिकों के बीच गतिरोध बढ़ गया था.
यह युद्ध लगभग एक महीने तक जारी रहा और 21 नवंबर को उस वक्त समाप्त हुआ, जब चीन ने युद्ध विराम की घोषणा की.
1962 के युद्ध में भारत को मिली हार के बाद 1967 में भारत ने चीन को मुंह के बल गिराया. भारतीय सेना ने चीन को मुंहतोड़ जवाब देते हुए करीब 300 से 400 चीनी सैनिकों को मौत के घाट उतारा. हालांकि, इस दौरान भारतीय सेना के भी 80 जवान शहीद हो गए थे.
मुख्य बिंदु :
- भारत ने 1967 में चीन से 1962 का बदला लेते हुए मुंहतोड़ जवाब दिया.
- सिक्किम के तत्कालीन साम्राज्य में भारतीय सेना की उपस्थिति से चीन नाराज था.
जहां कहीं भी भूमि विवाद होता है, पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) मुख्य रूप से तीन तरह की रणनीतियां अपनाती हैं.
पहली :भूमि विवाद मामले में दुश्मन से निपटने के दौरान प्रतिद्वंद्वी को उस भूमि क्षेत्र को जाने न दें, जो चीन की पकड़ में है.
दूसरी :उस भूमि की मांग करना, जो उसके प्रतिद्वंद्वी के पास है.
तीसरी : यदि प्रतिद्वंद्वी देश की भूमि चीन की भूमि के बीच आती है, तो दुश्मन को उस भूमि के लिए भी डराया-धमकाया जाए.
अरुणाचल प्रदेश में 1987 में सुमदोरोंग चू (Sumdorong Chu) घटना भारतीय सेना और पीएलए के बीच एक ऐसा गतिरोध था, जहां भारत-चीन के बीच युद्ध पनप सकता था. लेकिन भारत ने अपनी कूटनीति से न केवल युद्ध को टाला, बल्कि चीन को भी चर्चा के लिए राजी कर लिया. 1987 की घटना का प्रभाव ऐसा था कि जब 1988 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने चीन का दौरा किया, तो उन्होंने चीनी प्रधानमंत्री के साथ बराबरी से बातचीत की.
अप्रैल 2013 में भारत ने वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर दावा किया कि चीनी सैनिकों ने रेखा से 10 किमी की दूरी पर शिविर बना लिए. 19 किमी जमीन पर दावा किया. भारतीय मीडिया के अनुसार, चीनी सैन्य टुकड़ी में तब हेलीकॉप्टर भी शामिल थे. चीनी सैनिक भारतीय वायु क्षेत्र में सैनिकों को आपूर्ति छोड़ने के लिए प्रवेश कर रहे थे. हालांकि चीन ने इन आरोपों से इनकार किया. इसके बाद मई की शुरुआत में दोनों देशों ने अपनी सेनाओं के वापस बुला लिया.
सितंबर 2014 में भारत और चीन के बीच एलएसी पर गतिरोध उत्पन्न हुआ, जब भारतीय श्रमिकों ने सीमावर्ती गांव डेमचोक में एक नहर का निर्माण कार्य शुरू किया और चीनी नागरिकों ने सेना के समर्थन के साथ विरोध किया. यह लगभग तीन सप्ताह के बाद समाप्त हुआ, जब दोनों देश अपने-अपने सैनिकों को वापस बुलाने पर सहमत हुए. भारतीय सेना ने दावा किया कि चीनी सेना ने भारत द्वारा दावा किए गए क्षेत्र में तीन किमी अंदर एक शिविर स्थापित किया है.
सितंबर 2015 में उत्तरी लद्दाख के बर्टस क्षेत्र में चीनी और भारतीय सैनिक आमने-सामने आए. इस दौरान भारतीय सैनिकों ने एक विवादित प्रहरीदुर्ग को ध्वस्त कर दिया, जिसे चीनी परस्पर-सहमत गश्त लाइन के पास निर्माण कर रहे थे.
भारत और चीन के बीच 2017 में डोकलाम सैन्य गतिरोध ने जन्म लिया. जून के महीने में भारत और चीन के बीच डोकलाम के विवादित क्षेत्र डोका ला पास को लेकर विवाद उठा. 16 जून 2017 को चीन ने डोकलाम क्षेत्र में भारी सड़क निर्माण उपकरण घुसा दिए और विवादित क्षेत्र में सड़क का निर्माण शुरू किया. इसके बाद चीन ने डोका ला के नीचे एक सड़क का निर्माण शुरू किया, जिस पर भारत और भूटान दोनों ने विवादित क्षेत्र होने का दावा किया. इसके परिणामस्वरूप दो दिन बाद 18 जून को चीन के सड़क निर्माण कार्य पर भारत ने हस्तक्षेप किया.
2020 भारत-चीन के बीच झड़पें दोनों देशों के बीच जारी सैन्य गतिरोध बन गई है. पांच मई 2020 के बाद से चीनी और भारतीय सैनिकों के बीच गैर-घातक आक्रामक कार्रवाई करने की खबरें आ रही हैं.
इस बार भारतीय और चीनी सीमाओं का आमना-सामना होता है तो प्रमुख संभावनाएं क्या होंगी :
चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे को जल्द से जल्द पूरा करना चाहते हैं. इस गलियारे के निर्माण के साथ ही चीन अपने माल को ग्वादर पोर्ट के लिए भूमि के माध्यम से सीधा निर्देशित कर सकेगा. यहां से चीन अपना सामान अफ्रीका और दुनिया के अन्य हिस्सों में आसानी से भेजेगा. इससे चीन को दक्षिण पूर्व एशिया के देशों में माल नहीं भेजना पड़ेगा.
चीन और पाकिस्तान के बीच यह आर्थिक गलियारा पाकिस्तान के कब्जे वाले गिलगित-बाल्टिस्तान क्षेत्र से होकर गुजरता है. भारत इस गलियारे के निर्माण पर लगातार चीन पर आपत्ति जताता रहा है. वहीं चीन भी लगातार भारत को अश्वस्त करता रहा है. इस बीच दो जून 2020, मंगलवार को भारत ने चीन और पाकिस्तान को स्पष्ट रूप से जाहिर कर दिया है कि गिलगित-बाल्टिस्तान हमारा अभिन्न अंग है.
भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) ने अब जम्मू-कश्मीर को उप-मंडल 'जम्मू-कश्मीर, लद्दाख, गिलगित-बाल्टिस्तान और मुजफ्फराबाद' कहना शुरू कर दिया है. गिलगित-बाल्टिस्तान और मुजफ्फराबाद दोनों को पाकिस्तान द्वारा अवैध रूप से कब्जा कर लिया गया है. दो जून 2020, मंगलवार को आईएमडी ने गिलगित-बाल्टिस्तान और मुजफ्फराबाद सहित उत्तर-पश्चिम भारत के मौसम अनुमान जारी किए.
चीन माल का उत्पादन कर रहा है लेकिन दुनिया में कोई भी उसका खरीदार नहीं है. यह आने वाले समय में चीनी अर्थव्यवस्था को आधे से भी कम कर देगा. ऐसे में चीन अपने देश में राष्ट्रवाद को बढ़ावा दे रहा है और इस तरह सीमा पर तनाव बढ़ रहा है और लोगों पर हमले का डर दिखा रहा है, जिससे लोग नौकरी, गरीबी संकट के मुद्दे पर ध्यान केंद्रित नहीं कर सकें.
एमआईटी के प्रोफेसर टेलर फ्रावेल (Taylor Fravel) ने कहा कि चीन लद्दाख में भारत के बुनियादी ढांचे दरबूक-श्योक-डीबीओ रोड के विकास का जवाब दे रहा है. उन्होंने कहा कि यह कोविड-19 महामारी के बीच चीन की ताकत का प्रदर्शन करता है, जिसने चीनी अर्थव्यवस्था और उसके राजनयिक संबंधों दोनों को नुकसान पहुंचाया है.
चीन में भारत के पूर्व राजदूत अशोक कांथा (Ashok Kantha) ने कहा कि ये झड़पें भारत-चीन सीमा और दक्षिण चीन सागर दोनों में बढ़ती चीनी मुखरता का हिस्सा है.
भारतय के पूर्व राजदूत फुंचोक स्टोबदान (Phunchok Stobdan) लिखते हैं कि चीनी पैंगोंग त्सो झील को लेने की कोशिश कर रहे हैं, जो अनिवार्य रूप से भारत को अपनी सीमाओं को फिर से परिभाषित करने के लिए मजबूर कर देगा. संभवत: इसका असर सियाचिन ग्लेशियर पर भी पड़ सकता है.
मोदी युग में भारत और चीन ने कैसे तीन बड़े मुद्दों को हल किया :
- चुमार, 2014 (Chumar) : पीपुल्स लिबरेशन आर्मी द्वारा चेपजी (Chepzi) से चुमार की ओर सड़क का विस्तार करने की कोशिश के बाद दोनों देशों के बीच बातचीत हुई. इसके बाद दोनों देशों के सैनिक वापस लौट आए.
- बर्टस, 2015 (Burtse) : मामले को बातचीत से स्थानीय स्तर पर सेना के प्रतिनिधिमंडल द्वारा एक सप्ताह के भीतर हल कर दिया गया, जिससे सरकार को किसी भी तरह से हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं पड़ी.
- डोकलाम, 2017 (Doklam) : चीनी विदेश मंत्रालय ने मांग की कि भारत को एकतरफा अपने सैनिकों को वापस लेना चाहिए. इसके बाद दोनों पक्ष सहमत हो गए और 28 अगस्त को दोनों ही देशों के सैनिक वापस लौट आए.
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