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विशेष : सामूहिक प्रतिरक्षा से संभव कोरोना की रोक-थाम

कुछ शोधकर्ताओं द्वारा कोरोना से निपटने के लिए समूह प्रतिरक्षा (herd immunity) को संभावित इलाज के रूप में देखा जा रहा है. सामूहिक प्रतिरक्षा का मतलब जब एक समुदाय के कई लोग एक संक्रामक बीमारी के खिलाफ प्रतिरक्षित हो जाते हैं, जिससे रोग को फैलने से रोका जा सकता है. पढ़ें विस्तार से...

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Published : May 4, 2020, 7:59 PM IST

हैदराबाद : कुछ शोधकर्ताओं द्वारा कोरोना से निपटने के लिए समूह प्रतिरक्षा (herd immunity) को संभावित इलाज के रूप में देखा जा रहा है. सामूहिक प्रतिरक्षा का मतलब जब एक समुदाय के कई लोग एक संक्रामक बीमारी के खिलाफ प्रतिरक्षित हो जाते हैं, जिससे रोग को फैलने से रोका जा सकता है.

क्या है सामूहिक प्रतिरक्षा-

सामूहिक प्रतिरक्षा दो तरह से की जाती है. पहला कई वायरल और बैक्टीरियल संक्रमण एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में फैल जाते हैं, लेकिन जब ज्यादातर लोग संक्रमण से बचे रहते है या उसे नहीं फैलाते तो इससे संक्रमण की चेन टूट जाती है. दूसरा यह कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली वाले लोगों या टीकाकरण से वंचित लोगों की रक्षा करने में मदद करता है, जिसमें बूढ़े, शिशु, छोटे बच्चे, गर्भवती महिला और कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली वाले लोग आते हैं.

ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने सुझाव दिया कि यह कोरोना वायरस के प्रसार को रोकने या नियंत्रित करने का एक अच्छा तरीका हो सकता है.

स्वीडन का उदाहरण

स्वीडन की सार्वजनिक स्वास्थ्य एजेंसी महामारी विज्ञान के प्रमुख डॉ एंडेसटैगन ने अपने बयान में कहा कि स्टॉकहोम के आसपास स्वीडन के प्रमुख हिस्सों में, सामुहिक प्रतिरक्षा का प्रभाव कुछ हफ्तों में देखा जा सकता है. जब यूरोप के प्रमुख हिस्से कोरोनावायरस के कारण लॉकडाउन थे, तो स्वीडन ने सार्वजनिक प्राधीकरणों पर न्यूनतम प्रतिबंध लगाकर वैश्विक प्रवृत्ति को बदल दिया.

भारत में सामूहिक प्रतिरक्षा और युवा आबादी-

प्रिंसटन विश्वविद्यालय स्थित शोधकर्ताओं की एक टीम औऱ नई दिल्ली और वाशिंगटन में स्थित सेंटर ऑफ डीजीज डायनमिक्स इकोनॉमिक्स ऑफ पॉलिसी (सीडीडीईपी) ने भारत की पहचान एक ऐसी जगह के रूप में की है, जहां सामूहिक प्रतिरक्षा काफी प्रभावी साबित हो सकती है. क्योंकि यहां पर बड़ी युवा आबादी को वायरस के संक्रमण से अस्पताल में भर्ती होने का और मृत्यु का खतरा कम हो जाता है.

प्रमुख महामारी विशेषज्ञ जय प्रकाश मुलियाल ने काह कि कोई भी देश लंबे समय तक लॉकडाउन नहीं कर सकता. खास कर भारत जैसे देश में तो इसकी गुंजाइश काफी कम है.

आप वास्तव में बुजुर्गों के साथ संक्रमण के बिना सामूहिक प्रतिरक्षा के एक बिंदु तक पहुंचने में सक्षम हो सकते हैं.

जब सामूहिक प्रतिरक्षण पर्याप्त संख्या में पहुंच जाता है तो संक्रमण रुक जाएगा और बुजुर्ग भी सुरक्षित हो जाएंगे.

भारतीय संदर्भ में की गई इस परिकल्पना के बारे में आगे कहा गया कि यदि इस वायरस को नियंत्रित तरीके से भारत की आबादी पर फैलाया जाता है, तो यह नवंबर तक लगभग 60% प्रतिरक्षा बना सकता था.

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अन्य कारण जो उन पर प्रकाश डालते हैं, वह यह हैं कि भारत, इंडोनेशिया और उप सहारा अफ्रीका जैसे देशों में भीड़-भाड़ वाली जगहों पर सामाजिक दूरी का पालन करना कठिन है. साथ ही परीक्षण किटों की पहुंच में कमी और लॉकडाउन के सामाजिक आर्थिक प्रभाव से निपटने के लिए ऐसी गैरपारंपरिक रणनीति की आवश्यकता हो सकती है.

सामूहिक प्रतिरक्षा में आने वली समस्या

समाज के कमजोर सदस्य जैसे बुजुर्ग और कुछ पुरानी स्वास्थ्य स्थिति वाले लोग इस वायरस से संक्रमित होने के बाद बहुत बीमार पड़ सकते हैं.

स्वस्थ और युवा कोरोना से बहुत बीमार हो सकते हैं.

यदि बहुत से लोग कोरोना वायरस से संक्रमित हो जाते है, तो अस्पताल और स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली पर बोझ पड़ सकता है.

अभी तक कोरना के लिए टीका विकसित नहीं हुआ है. टीकाकरण सामूहिक प्रतिरक्षा का अभ्यास करने का सबसे सुरक्षित तरीका है.

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