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23 सालों से बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर कार्रवाई नहीं, HC का सख्त आदेश - 23 साल से बंदी प्रत्यक्षीकरण

23 वर्षों के बाद भी बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका को सूचीबद्ध न करने पर कलकत्ता हाईकोर्ट ने कड़ी नाराजगी जाहिर की है. मामला 22 दिसंबर, 1997 का है, जहां एक बच्चे को उसकी मां को सौंपने के मामले में अस्पताल की कथित विफलता की शिकायत की गई थी.

Habeas Corpus Petition
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Published : Dec 6, 2020, 12:28 PM IST

कोलकाता: कलकत्ता हाईकोर्ट ने वर्ष 1997 में दायर एक बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका को सूचीबद्ध करने में विफलता के लिए अपनी रजिस्ट्री पर कड़ी नाराजगी व्यक्त की.

23 साल से लंबित मामले को तीन महीने पहले सूचीबद्ध करने के लिए स्पष्ट निर्देश दिया गया था. इसके बावजूद इस तरह की लापरवाही के लिए चीफ जस्टिस थोट्टाथिल बी. राधाकृष्णन और जस्टिस अरिजीत बनर्जी की बेंच ने कहा कि ऐसे मामलों में गलत अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई शुरू की जानी चाहिए.

अदालत ने कहा कि हम एक न्यायिक प्रणाली में हैं. जब न्यायिक आदेशों के बावजूद मामलों को उच्च न्यायालय के कार्यालय द्वारा सूचीबद्ध नहीं किया जाता है, तो न्याय के पाठ्यक्रम की अवहेलना करने के लिए संबंधित अधिकारियों के खिलाफ कदाचार के लिए कार्रवाई शुरू करने पर विचार करना चाहिए.

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मामला एक बच्चे को उसकी मां को सौंपने में अस्पताल की कथित विफलता से संबंधित था. यह पहली बार 22 दिसंबर, 1997 को सूचीबद्ध किया गया था, जिसके तहत पुलिस महानिदेशक को एक प्राथमिकी दर्ज करने और एक जांच शुरू करने के लिए एक निर्देश दिया गया था.

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