नई दिल्ली : शिया वक्फ बोर्ड ने उच्चतम न्यायालय से कहा कि वह अयोध्या में 2.77 एकड़ विवादित जमीन का तिहाई हिस्सा मंदिर निर्माण के लिए हिंदुओं को देने को तैयार है जो इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने मुस्लिम संगठनों को आवंटित किया था.
शुक्रवार को प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने हिंदू पक्ष की दलीलों पर सुनवाई पूरी की. पीठ में न्यायमूर्ति एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एस ए नजीर भी शामिल हैं.
कोर्ट में हुई सुनवाई के बाद हिंदू महासभा के अधिवक्ता हरिशंकर जैन ने बताया कि शुक्रवार को उन्होंने कोर्ट के सामने कोई गवाह पेश नहीं बल्कि सिर्फ कानूनों पहलू पर बहस की.
कोर्ट में सुनवाई के दौरान शिया बोर्ड ने पीठ के समक्ष कहा कि बाबर का कमांडर मीर बकी शिया मुस्लिम था और बाबरी मस्जिद का पहला मुतवल्ली (देखभाल करने वाला) था.
शिया वक्फ बोर्ड की ओर से वकील एम सी धींगरा ने राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद मामले में 16वें दिन की सुनवाई पर पीठ से कहा कि मैं हिंदू पक्ष का समर्थन कर रहा हूं.
उन्होंने कहा कि उच्च न्यायालय ने विवादित भूमि को तीन बराबर हिस्सों में बांटते हुए एक तिहाई हिस्सा मुसलमानों को दिया था, ना कि सुन्नी वक्फ बोर्ड को और इसलिए वह इस आधार पर अपना हिस्सा हिंदुओं को देना चाहता है, जिसका एक आधार यह भी है कि बाबरी मस्जिद शिया वक्फ की संपत्ति है.
धींगरा ने कहा कि हिंदुओं ने जो दलीलें दी हैं, उनसे पूर्वाग्रह रखे बिना, शिया उस संपत्ति पर अधिकार का दावा नहीं करते.
1936 तक इस पर शियाओं का कब्जा था और इसके पहले तथा अंतिम मुतवल्ली शिया थे और किसी सुन्नी को कभी मुतवल्ली नियुक्त नहीं किया गया.
हालांकि, उन्होंने कहा कि विवादित संपत्ति शियाओं को बिना नोटिस दिये सुन्नी वक्फ के तौर पर पंजीकृत कर दी गयी और बाद में शिया बोर्ड 1946 में अदालत में इस आधार पर मामले को हार गया कि उसने एक सुन्नी इमाम नियुक्त कर लिया था.
पीठ ने तब पूछा, इससे क्या निकलेगा. क्या हमें यह सब देखना होगा.