हैदराबाद : हम एक ऐसी दुनिया में रहते हैं, जहां सब्जियों से लेकर मां के दूध तक सब कुछ विषाक्त हो चुका है. ऐसे समय में हम जो भोजन खाते हैं, जिस हवा में हम सांस लेते हैं, सब प्रदूषित होता है. आज पर्यावरण संरक्षण एक प्राथमिकता बन गई है. हरित क्रांति के दौरान खाद्य उत्पादन बढ़ाने के लिए शुरू किए गए रसायनों का उपयोग ने अब सभी सीमाओं को पार कर दिया है. मुनासिब सीमा से परे उनके अंधाधुंध उपयोग से कारण भोजन दूषित हो चुका है और रासायनिक अवशेष मां के दूध तक में प्रवेश कर रहे हैं और सार्वजनिक स्वास्थ्य सुरक्षा के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं. ज्यादा पैदावार के लिए अंधाधुंध उथली भूमि में रसायनों के छिड़काव करने की प्रवृत्ति को रोका जाना चाहिए. सुरक्षित भोजन प्राप्त करने के लिए लोगों को घर पर फसल उगाने और जैविक खेती करने की दिशा में कदम उठाने की जरूरत है.
रसायनों के कारण बढ़ती आपदाएं
रसायनों के अंधाधुंध उपयोग पर भारी जागरुकता अभियान चलाने के बावजूद, उनका उपयोग उम्मीद के मुताबिक नहीं घट रहा है. रसायनों के अवैज्ञानिक उपयोग के कारण पर्यावरण प्रदूषित हो रहा है और मिट्टी की उर्वरता धीरे-धीरे घटती जा रही है. हालांकि केंद्र सरकार ने 2015 में मृदा संरक्षण के लिए मृदा परीक्षण कार्ड की एक प्रणाली शुरू की, लेकिन उससे भी स्थिति में कोई बदलाव नजर नहीं आया. इस गलत धारणा के कारण कि यूरिया के अधिक उपयोग से अधिक पैदावार होगी, किसान इसका अनावश्यक रूप से उपयोग कर रहे हैं और मिट्टी को बंजर बना रहे हैं. किसानों के हित में तो यह होता कि वह अपनी मिट्टी का परीक्षण करवाते और मिट्टी में पोषक तत्वों की जरूरत के आधार पर उपयुक्त उर्वरकों का इस्तेमाल करते. लेकिन या तो वह कोई परीक्षण नहीं करवा रहे हैं... या किए गए परीक्षण पूर्ण और वास्तव में उपयोगी नहीं हैं. उदाहरण के लिए, जब मिट्टी में नाइट्रोजन और फास्फोरस अधिक होती है, तो उनका उपयोग अलग से नहीं किया जाना चाहिए. लेकिन अगर वह एक नियमित तौर पर मिट्टी में शामिल किए जा रहे हैं, तो मिट्टी में उनकी जमा मात्रा बिना किसी लाभ के बढ़ती जाएगी. पैदावार नहीं बढ़ेगी और खर्च बेकार बढ़ता जाएगा.
किसानों में जागरुकता की कमी
एक अध्ययन के अनुसार, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में लगभग 50 प्रतिशत मिट्टी में जिंक की कमी होती है, 30 प्रतिशत फॉस्फोरस की, 17 प्रतिशत आयरन की, 12 प्रतिशत बोरान की और 5 प्रतिशत मैंगनीज में कमी होती है. किसानों में इस बात की जागरुकता की कमी है कि यदि वह रसायनों और कीटनाशकों का सावधानीपूर्वक और केवल आवश्यकतानुसार उपयोग करें तो खेती करने में आने वाली लागत को कम कर सकते हैं. हालांकि कई कीटनाशकों को दुनियाभर में प्रतिबंधित किया गया है, इसके बावजूद आज भी हमारे देश में इनका उपयोग खुलेआम किया जा रहा है. हम अभी भी केरल में एंडोसल्फान के अंधाधुंध उपयोग के दुष्प्रभावों का अनुभव कर रहे हैं. केंद्र द्वारा कुछ कीटनाशकों पर प्रतिबंध लगाने के लिए मसौदा प्रस्तावों के साथ तैयार हो गया है, लेकिन आपत्तियों के कारण, इनपर रोक लगाने की कोई कार्यवाही नहीं की गई है. अब तक कोई सख्त कानून नहीं बनाया गया है.
तेलुगु राज्यों में रसायनों का उपयोग कहीं अधिक है
हाल ही में केंद्र सरकार ने 27 प्रमुख कीटनाशकों पर प्रतिबंध लगाने का एक मसौदा प्रस्ताव जारी किया है. दस्तावेज में यह बताया गया है कि वह मनुष्य के स्वास्थ्य को कैसे नष्ट कर रहे हैं. फिर भी, आश्चर्यजनक रूप से यह दशकों से उनके उपयोग पर प्रतिबंध लगाने में देरी होती आई है. यह परेशान करने वाली बात है कि खाद्य गुणवत्ता के बढ़ते महत्व को देखते हुए, रसायनों के उपयोग को कम करने के बजाय बढ़ाया जा रहा है. हालिया समाचारों से स्पष्ट है कि तेलुगु राज्यों (आंध्र प्रदेश व तेलंगाना) में रसायनों का उपयोग राष्ट्रीय औसत से कहीं अधिक है. इस समय लोग फल, सब्जियां और साग खरीदने से डरने लगे हैं. यह चिंता का विषय है कि किसान द्वारा उपज को व्यापारी तक पहुंचाने के बाद भी, व्यापारी अंधाधुंध तरीके से प्रतिबंधित रसायनों का उपयोग करके फल, सब्जी इत्यादि को समय से पहले तैयार कर बाजार में बेच रहे हैं.