हैदराबाद : छह अगस्त 1945 को अमेरिकी वायु सेना ने जापान के हिरोशिमा पर परमाणु बम गिराए थे. आज हिरोशिमा और नागासाकी पर हुई परमाणु बमबारी की 75वीं वर्षगांठ है. इस हमले में लाखों लोगों की मौत हो गई थी और लाखों लोग प्रभावित हुए थे. हमले के बाद लोगों के स्वास्थ्य पर भी असर हुआ था.
बच्चों पर परमाणु बम का असर
परमाणु बम गिरने के बाद जो भी सर्वाइवर्स थे उनके बच्चों की जांच की गई. हिरोशिमा और नागासाकी में लगभग 70 हजार नवजातों की जांच की गई, नागासाकी में 500 से 800 शिशुओं की उनके घरों में जांच की गई.
उस समय आनुवंशिक चोटों या बिमारी (जेनेटिक इंजरी) होने के कोई लक्षण नहीं पाए गए थे, लेकिन 2008 में परमाणु बम से प्रभावित लोगों और उनके बच्चों पर किए गए नए अध्ययन से उनके डीएनए में आनुवंशिक परिवर्तन और विकृतियों का पता चल रहा है. ये अध्ययन डीएनए में होने वाले बदलावों और डीएनए से प्रषित होने वाली बीमारियों का पता लगाने में मददगार साबित हो रहा है.
शारिरिक चोटों और विकिरण के अलावा परमाणु बम का सबसे ज्यादा प्रभाव हिरोशिमा और नागासाकी के लोगों के मन पर पड़ था. परमाणु हमले से लोगों में डर था. इस डर ने लोगों के मन में और दिमाग में घर कर लिया था.
हिरोशिमा और नागासाकी की त्रासदी केवल जापान की नहीं है, बल्कि पूरे विश्व की है, इसलिए, यह सभी देशों की जिम्मेदारी है कि आने वाली पढ़ियों की सुरक्षा और उनकी भलाई के लिए किसी भी देश में परमाणु हमला न हो और हमले को रोका जाए.
दीर्घकालिक प्रभाव
परमाणु बम का दीर्घकालिक प्रभाव ल्यूकेमिया में रुप में सामने आया था. ल्यूकेमिया (ब्लड कैंसर) का असर हमले के लगभग दो साल बाद देखा गया और लगभग चार से छह साल बाद यह असर चरम पर पहुंच गया.
बच्चे इस परमाणु हमले से गंभीर रूप से प्रभावित हुए थे. परमाणु बम के संपर्क में आई आबादी और इससे बचे हुए कुछ लोगों के बीच के प्रतिशत अंतर से इस बात का पता लगाया जा सकता है कि परमाणु हमले का कितना असर ल्यूकेमिया के रुप में हुआ था.
रेडिएशन इफेक्ट्स रिसर्च फाउंडेशन के अनुसार परमाणु हमले से प्रभावित 46 प्रतिशत लोग ल्यूकेमिया के शिकार थे.
हमले के लगभग दस साल बाद कैंसर के मामलों और कैंसर के मरीजों में वृद्धि नहीं देखी गई थी. यह वृद्धि पहली बार 1956 में देखी गई थी. इसके बाद हिरोशिमा और नागासाकी में परमाणु बम से फैले रेडिएशन के कारण होने वाले कैंसर के जोखिमों पर डेटा एकत्र करने के लिए शुरू किया गया था.
हीरोसॉफ्ट इंटरनेशनल कॉरपोरेशन के डेल एल प्रेस्टन के नेतृत्व में एक टीम द्वारा सोलिड कैंसर (ल्यूकेमिया नहीं) के बारे में अध्ययन किया गया. साल 2003 में इस अध्ययन को प्रकाशित किया गया था.