दमोह : एक इंसान, जिसने अछूतों के दर्द को महसूस किया और छुआछूत के खिलाफ सबसे पहले आवाज बुलंद की, इसी सोच ने इस इंसान को महात्मा बना दिया, तब ये महात्मा लाठी लेकर निकल पड़ा और देश के जर्रे-जर्रे की खाक छान डाली, उस दौरान इस महात्मा के पैर जहां भी पड़े, वहां आज भी उनके कदमों के निशान मौजूद हैं. पूरा देश इस साल दो अक्टूबर को इसी महात्मा की 150वीं जयंती मना रहा है.
अंग्रेजों को धूल चटाने के लिए महात्मा गांधी जब हिंदुस्तान के जर्रे-जर्रे की खाक छान रहे थे, उस दौरान उनके कदम जहां भी पड़े, वो जगह तारीख पर दर्ज होती गई. एक बार पदयात्रा करते हुए गांधीजी मध्यप्रदेश के दमोह पहुंचे. जहां उनकी स्मृतियों की अमिट छाप अब भी मौजूद है. दमोह में महात्मा गांधी ने हरिजन मोहल्ले में हरिजन सेवक संघ के गठन के साथ ही हरिजन गुरुद्वारे की नींव रखी थी. जहां लगी बापू की प्रतिमा आज भी उनकी प्रतिमा लगी है. इस गुरुद्वारे में सुबह-शाम अरदास होती है.
अंग्रेजों के खिलाफ असहयोग आंदोलन की शुरुआत राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने मध्यप्रदेश के जबलपुर से शुरु की थी. तब वे कई गांवों से होते हुए दमोह पहुंचे थे. इस दौरान उन्होंने कई संभाएं भी की थी. दमोह में शहर में आज भी कई स्मृतियां मौजूद है. जो बापू के विचारों का हमे एहसास कराती है. दमोह के रहने वाले स्वतंत्रता संग्राम सेनानी खेमचंद बजाज उनकी इन्ही स्मृतियों के साक्षी रहे हैं.