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जीएसटी : 21 राज्यों ने राजस्व में कमी को पूरा करने के लिए कर्ज का पहला विकल्प चुना

वित्त मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार, आंध्र प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, असम, बिहार, गोवा, गुजरात, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, जम्मू और कश्मीर, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, मणिपुर , मेघालय , मिजोरम, नागालैंड, ओडिशा, पुडुचेरी, सिक्किम, त्रिपुरा, उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश ने केंद्र की ओर से पेश किए गए कर्ज के दो विकल्पों में से पहला विकल्प चुना है. पढ़ें वरिष्ठ पत्रकार कृष्णानंद त्रिपाठी की यह रिपोर्ट...

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21 राज्यों ने राजस्व में कमी को पूरा करने के लिए कर्ज का पहला विकल्प चुना

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Published : Sep 21, 2020, 12:41 PM IST

वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण राज्यों के बकाया जीएसटी मुआवजे के भुगतान के मुद्दे से जूझ रही थीं. उनके लिए एक बड़ी राहत वाली खबर है. ऐसा इस वजह से कि ईटीवी भारत को मिली जानकारी के अनुसार, 21 राज्यों ने अपने राजस्व संग्रह में आई कमी को पूरा करने के लिए चालू वित्तीय वर्ष में कर्ज लेने का पहला विकल्प चुना है.

वित्त मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार, आंध्र प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, असम, बिहार, गोवा, गुजरात, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, जम्मू और कश्मीर, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, मणिपुर , मेघालय , मिजोरम, नागालैंड, ओडिशा, पुडुचेरी, सिक्किम, त्रिपुरा, उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश ने केंद्र की ओर से पेश किए गए कर्ज के दो विकल्पों में से पहला विकल्प चुना है .

इस पहले विकल्प के तहत केंद्र सरकार भारतीय रिजर्व बैंक से सलाह लेकर कर्ज के लिए एक विशेष विंडो खोलेगी, जिसके माध्यम से राज्य इस वित्तीय वर्ष में अपने राजस्व संग्रह में कमी पूरी करने के लिए सामूहिक रूप से कुल 97 हजार करोड़ रुपए उधार ले सकेंगे.

वित्त मंत्रालय की ओर से तैयार किए गए एक आकलन के अनुसार, इस साल राज्यों के राजस्व संग्रह में करीब 3 लाख करोड़ रुपए का अंतर होगा और इस कमी को पूरा करने के लिए लगाया गए जीएसटी उपकर (सेस ) से केवल 67 हजार करोड़ रुपए मिलेंगे. इस तरह 2.33 लाख करोड़ रुपए का बड़ा अंतर यूं ही रह जाएगा.

केंद्र के आकलन के अनुसार ये जो 2.33 लाख करोड़ रुपए की कमी है, इसमें से केवल 97 हजार करोड़ रुपए की कमी के लिए वर्ष 2017 की जुलाई में लागू हुए जीएसटी को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है. शेष कमी के लिए अन्य कारक जिम्मेदार हैं. उनमें वैश्विक महामारी कोविड -19 का प्रतिकूल आर्थिक प्रभाव भी शामिल है.

पहले विकल्प के तहत, केंद्र ने पांच वर्षों की संक्रमण अवधि के बाद भी दुर्गुणों वाले और लक्जरी सामान पर जीएसटी सेस संग्रह को जारी रखकर राज्यों की ओर से लिए गए कर्ज के मूलधन के साथ-साथ ब्याज का भुगतान करने की भी पेशकश की है. दूसरे विकल्प के तहत राज्य सामूहिक रूप से 2.33 लाख करोड़ रुपए तक उधार ले सकते हैं. इसमें केंद्र सरकार ने इसके मूलधन का भुगतान करने का वादा किया है, जबकि राज्यों को अपने संसाधनों से ब्याज का भुगतान करना होगा.

वित्त मंत्रालय के एक सूत्र ने ईटीवी भारत को बताया कि केवल मणिपुर ने ही दूसरा विकल्प चुना था लेकिन बाद में पूर्वोत्तर के उस राज्य ने भी पहला विकल्प ही चुन लिया. वित्त मंत्रालय के एक सूत्र ने ईटीवी भारत को बताया कि एक-दो दिन में कुछ और राज्य भी अपना उधार विकल्प देने वाले हैं.

हालांकि, उस सूत्र ने इसकी पुष्टि की कि विरोधी दलों के शासन वाले कुछ राज्यों जैसे झारखंड, केरल, महाराष्ट्र, दिल्ली, पंजाब, राजस्थान, तेलंगाना और पश्चिम बंगाल ने अभी तक जीएसटी परिषद के प्रस्ताव पर जवाब नहीं दिया है. तमिलनाडु को भी अभी अपने राजस्व संग्रह में कमी पूरी करने के लिए पैसे उधार लेने के बारे में केंद्र सरकार के प्रस्ताव का जवाब देना है.

2017 के जीएसटी (राज्यों के लिए मुआवजा ) अधिनियम के तहत, कानूनी रूप से पांच साल के संक्रमण काल के लिए राज्यों के राजस्व संग्रह में किसी भी कमी को पूरा करने के लिए केंद्र को बाध्य किया गया है. यह समय जून 2022 में समाप्त होगा. राज्यों ने पांच साल की अवधि के लिए अपने राजस्व संग्रह में किसी भी तरह के नुकसान की भरपाई करने के केंद्र सरकार के संवैधानिक गारंटी वाले वादे के बाद वे अपने स्तर से आम तौर पर लगाए जाने वाले 17 करों को राष्ट्रव्यापी वस्तु एवं सेवाकर (जीएसटी ) के तहत करने पर सहमति व्यक्त की थी. वित्तीय वर्ष 2015-16 को आधार वर्ष के रूप में मानकर राज्यों के राजस्व संग्रह में प्रति वर्ष 14 फीसद की वृद्धि मानकर मुआवजे की राशि की गणना की गई है.

हालांकि, इस साल कोविड -19 की वजह से लॉकडाउन के उपायों के प्रतिकूल आर्थिक प्रभाव समेत कई कारणों के एक साथ मिल जाने की वजह से केंद्र सरकार राज्यों को दिए जाने वाले जीएसटी का बकाया मुआवजा 1.51 लाख करोड़ रुपए से अधिक का भुगतान नहीं कर पाया है. यह बकाया राशि इस वित्तीय वर्ष के शुरुआती चार महीने की है.

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