नई दिल्ली :कृषि कानूनों के विरोध में 26 दिनों से किसान आंदोलन जारी है, जिसके कारण सरकार पर भी दबाव बढ़ता जा रहा है. सरकार और किसान नेताओं के बीच अब तक हुई वार्ता में कोई सहमति नहीं बन सकी है. सूत्रों की मानें सरकार वर्ष 2021 की शुरुआत में हर हाल में इसका समाधान चाहती है. इसके लिए सरकार ने कुछ केंद्रीय मंत्रियों को किसान नेताओं से बात करने की जिम्मेदारी दी गई है. साथ ही कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के पत्र को भी नौ भाषाओं में अनुवाद कर किसानों तक पहुंचाने की तैयारी है.
2021 में कई राज्यों में चुनाव हैं, जिनमें मुख्य रूप से पश्चिम बंगाल और असम हैं. इसके बाद पुदुचेरी, केरल और अन्य राज्यों में भी चुनाव हैं. राज्य के चुनावों में कृषि कानून कहीं ज्वलंत मुद्दा न बन जाए, इसके लिए भी सरकार हर संभव प्रयास कर रही है. पश्चिम बंगाल के चुनाव में विपक्षी दल इस मामले को भाजपा के खिलाफ मुख्य मुद्दा ने बना लें इसलिए भी सरकार 2021 की शुरुआत में ही यह मसला हल करना चाहती है.
दरअसल, बंगाल और ऐसे राज्य जहां भाजपा की सरकार नहीं है, वहां पार्टी केंद्र सरकार की उपलब्धियों, योजनाओं और पीएम मोदी के चेहरे पर चुनाव मैदान में उतर रही है. यदि किसानों का मुद्दा हल नहीं होता है तो यह सरकार की छवि पर सवाल उठाएगा. किसानों के मुद्दे पर गृह मंत्रालय और प्रधानमंत्री कार्यालय एक-दूसरे के संपर्क में हैं. साथ ही कुछ ऐसे केंद्रीय मंत्री जिनके रिश्ते किसान नेताओं के साथ अच्छे रहे हैं और जिनकी कृषि क्षेत्र में पैठ रही है उन्हें भी किसान नेताओं से बातचीत की जिम्मेदारी दी गई.
ईटीवी भारत से बात करते हुए भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता गोपाल कृष्ण अग्रवाल का कहना है कि किसानों आंदोलन और कृषि सुधारों को लेकर सरकार बैकफुट पर नहीं है. उन्होंने यह भी दावा किया कि कृषि क्षेत्र के उत्थान और विकास के लिए यह तीनों ही कानून बहुत जरूरी हैं. उनका कहना है कि कुछ दुविधायें किसानों की एपीएमसी और एमएसपी को लेकर हैं, जिन्हें दूर करने को लेकर चर्चा की जा रही है. सरकार स्पष्ट कर चुकी है कि एपीएमसी को डिस्मेंटल नहीं कर रही है बल्कि वैकल्पिक प्रयास किए जा रहे हैं और इसमें कोई छेड़छाड़ नहीं होगी.