नई दिल्ली :नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG ) की नवीनतम रिपोर्ट को लेकर रक्षा कार्यालयों के प्रबंधन पर राफेल विमान निर्माता डिसाल्ट एविएशन की विफलता को लेकर विवाद बढ़ा गया है. बुधवार को संसद में पेश 'कैग' की रिपोर्ट से पता चला है कि एनडीए सरकार ने मई 2014 में सत्ता में आने के एक साल बाद बाद ऑफसेट नीति में एक महत्वपूर्ण बदलाव किया था.
कैग रिपोर्ट में साफतौर से कहा गया है कि वर्ष 2015 में हुए 36 राफेल एयरक्राफ्ट के सौदे के दौरान डिसाल्ट और एमबीडीए ने इंडियन ऑफसेट पार्टनर के बदले डीआरडीओ (डिफेंस रिसर्च एंड डेवलपमेंट ऑर्गेनाइजेशन) को कावेरी इंजन के लिए तकनीक में मदद का वादा किया था, वह अभी तक पूरा नहीं किया गया है. गौरतलब है कि पांच राफेल एयरक्राफ्ट नौसैना के बेड़े में पहले ही शामिल हो गए हैं.
बता दें कि इंडियन ऑफसेट पार्टनर विदेशी साजो-सामानों की बड़ी खरीद या प्रौद्योगिकी हस्तांतरण में खरीदार देश के संसाधनों के एक महत्वपूर्ण बहिर्वाह के लिए घरेलू उद्योग की क्षमताओं को बेहतर बनाने में मदद करता है.
हालांकि अगस्त 2015 में एनडीए सरकार ने नियम में बदलाव कर दिया है, जो विदेशी सैन्य उपकरण बनाने वाली कंपनी (OEM) को यह विकल्प देता है कि वह इंडियन ऑफसेट पार्टनर (IOP) नीति या उत्पादों के विवरणों का खुलासा बाद में करे. इसलिए अब एक विदेशी विक्रेता ऑफसेट अनुबंध पर हस्ताक्षर करने के दौरान संबंधित विवरण पर IOP का नाम बताने के लिए बाध्य नहीं है.
बदलाव से पहले ऑफसेट अनुबंध पर हस्ताक्षर करने के बाद विक्रेता को 60 दिन के भीतर IOP और उसके विवरण के साथ हस्ताक्षरित ऑफसेट अनुबंध प्रस्तुत करना आवश्यक था.