लखनऊ :देश के सबसे बड़े सूबे की सत्ता का सफर इस बार रोजगार के सहारे तय किए जाने की कवायद चल रही है. 22 करोड़ की आबादी वाले बीमारू प्रदेश में युवाओं की बड़ी फौज है, जिनकी सबसे बड़ी समस्या बेरोजगारी है. इस वक्त सबसे बड़ा वोट बैंक भी यही वर्ग है, जिसे साधने की कोशिश योगी बखूबी कर रहे हैं. अपने 4 साल से कम के कार्यकाल में साढ़े 3 लाख सरकारी नौकरियों का तोहफा दे भी चुके हैं. सरकारी नौकरी देने में अखिलेश यादव की सरकार ने भी कंजूसी नहीं की थी. मगर 20 करोड़ की आबादी में महज 2 लाख सरकारी नौकरी जरूरत के सामने कम पड़ गई. यह आंकड़ा 2017 में काफी बड़ा दिखा था, क्योंकि बहन मायावती के शासनकाल में महज 91 हजार लोगों को सरकारी नौकरी नसीब हुई थी.
पुलिस और बेसिक शिक्षा विभाग में मिली सबसे ज्यादा नौकरी
केसरिया बाना पहनने वाले मुख्यमंत्री के शासन में सबसे अधिक भरती खाकी वाले डिपार्टमेंट यानी पुलिस विभाग में हुई. इसमें 1लाख 37 हजार 253 लोगों को सेवा का मौका मिला. बेसिक शिक्षा विभाग 1 लाख 21 हजार लोगों को रोजी-रोटी देकर दूसरे पायदान पर रहा. राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन में 28 हजार 622 को नौकरी मिली. यूपी लोक सेवा आयोग ने 26 हजार 103 और उत्तर प्रदेश अधीनस्थ सेवा चयन बोर्ड के जरिये 16 हजार 708 प्रदेशवासियों को भी सरकारी सेवा का मौका मिला. योगी सरकार का आखिरी बजट चुनावी बजट होगा. इसमें भी नौकरियों की घोषणाओं की उम्मीद है. जल्द ही बेसिक शिक्षा विभाग में 54 हजार सहायक अध्यापकों के रिक्त पदों पर भर्ती प्रक्रिया शुरू की जाएगी.
सपा ने दो लाख तो बसपा ने एक लाख से भी कम दी नौकरी
सरकार से मिली जानकारी के मुताबिक, योगी सरकार ने जितनी नौकरियां अपने साढ़े तीन साल में दी हैं, उतनी नौकरियां पिछली सपा-बसपा सरकारों के दोनों कार्यकाल में मिलाकर भी नहीं मिल सकी हैं. साल 2007 से 2012 के बीच बसपा सरकार में केवल 91 हजार सरकारी नौकरियां दी गई थीं. वहीं 2012 से लेकर 2017 के बीच समाजवादी पार्टी की अखिलेश सरकार ने करीब दो लाख सरकारी नौकरियां ही युवाओं को मिल सकीं.