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ईटीवी भारत से बोले सुभाष कश्यप, 'सीएए पर विवाद से बच सकती थी सरकार'

भारत का संविधान दुनिया का सबसे लंबा लिखित संविधान है. हमने 26 जनवरी 1950 को इसे लागू किया था. इस साल संविधान को लागू हुए 70 साल हो गए. हमारे संविधान की क्या विशेषताएं हैं, इस पर ईटीवी भारत ने संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप से विशेष बातचीत की है

ईटीवी भारत से बात करते सुभाष कश्यप
ईटीवी भारत से बात करते सुभाष कश्यप

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Published : Jan 25, 2020, 12:09 AM IST

Updated : Feb 18, 2020, 7:58 AM IST

नई दिल्ली : भारत का संविधान दुनिया का सबसे लंबा लिखित संविधान है. हमने 26 जनवरी 1950 को इसे लागू किया था. इस साल संविधान को लागू हुए 70 साल हो गए. हमारे संविधान की क्या विशेषताएं हैं, इस पर ईटीवी भारत ने संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप से विशेष बातचीत की है. एक नजर...

सवाल : हमारा संविधान 70 साल का लंबा सफर पूरा कर चुका है. आप इतने सारे अनुभवों से गुजरे हैं. भारत की अब तक की यात्रा के बारे में आप क्या महसूस करते हैं?

हमारा संविधान एक उत्कृष्ट और अद्वितीय चार्टर है. देश की महान विभूतियों ने इसे एक साथ मिलकर बनाया था. उन्होंने तीन साल के अंदर इसे बना लिया, यह बहुत बड़ी उपलब्धि थी. द्वितीय विश्व युद्ध के बाद जितने भी संविधान बने, उनमें से अधिकांश बिखर गए. कइयों को निरस्त कर दिया गया. कुछ को प्रतिस्थापित किया गया. लेकिन हमारा संविधान समय की कसौटी पर खरा उतरा. संवैधानिक अज्ञानता की वजह से हम इन तथ्यों की अनदेखी कर जाते हैं. हम सभी संविधान के तहत अधिकारों का दावा करते हैं, लेकिन हम अपने कर्तव्यों को पूरा करने में विफल रहते हैं.

सुभाष कश्यप से खास बातचीत

सवाल : समय के साथ-साथ संविधान में जो संशोधन हुए हैं, उनको आप कितना जरूरी मानते हैं ?

किसी भी संविधान की प्रकृति बहुत कठोर नहीं होनी चाहिए. इसमें समय की मांग के अनुरूप बदलाव होने आवश्यक हैं. संशोधन की पर्याप्त गुंजाइश होनी चाहिए. हमारे संविधान में 103 संशोधन हो चुके हैं. हमने अनुच्छेद 368 के अंतर्गत संविधान संशोधन की प्रक्रिया को उद्धृत किया है. अनुच्छेद 370 की बात करें, जो कुछ महीने पहले काफी चर्चा में था. इसमें संवैधानिक संशोधन की कोई जरूरत नहीं थी, क्योंकि इस आर्टिकल में 'स्व-क्षरण' के प्रावधान थे. आर्टिकल को निरस्त नहीं किया गया है, बल्कि संशोधित किया गया है.

सवाल : विपक्ष सरकार की आलोचना कर रही है कि वह संसद में ठीक से बहस किए बिना जल्दबाजी में संविधान में संशोधन कर रही है. हाल ही में नागरिकता संशोधन को लेकर जो प्रदर्शन हो रहे हैं, इनमें दावा किया जा रहा है कि संविधान खतरे में है. इस बारे में आप क्या कहा चाहेंगे?

मेरा मानना ​​है कि अभी हमारे देश में जो कुछ भी हो रहा है, उसे हमारे संविधान से ज्यादा राजनीति से वास्ता है. यदि राजनीतिक लाभ अलग से निर्धारित किए जाते हैं और संविधान को ईमानदारी से लागू किया जाता है, तो ऐसी असहमति पैदा नहीं होगी, क्योंकि हमारे संविधान ने सब कुछ स्पष्ट रूप से कहा है. राज्यों और केंद्र की विधायी शक्ति को संविधान में परिभाषित किया गया है और इन शक्तियों को तीन सूचियों- संघ, राज्य और समवर्ती में विभाजित किया गया है. राजनीतिक कारणों के कारण, केंद्र सरकार की लगातार आलोचना की जाती है और प्रत्येक राजनीतिक दल को इस 'विपक्ष' संस्कृति के लिए दोषी ठहराया जाता है.

सवाल : सीएए को लेकर लोग सड़कों पर प्रदर्शन कर रहे हैं, क्या ये लोग राजनीति से प्रेरित हैं या फिर उनमें जागरूकता का अभाव है?

यह जागरूकता और अज्ञानता की कमी के कारण है. लोग अपने आंदोलन को हिंसक तरीके से दिखा रहे हैं, इस प्रक्रिया में सार्वजनिक संपत्तियों को नुकसान पहुंचा रहे हैं. यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि लोग असंतोष दिखाते हुए गुंडागर्दी में लिप्त हैं.

सवाल : कई राज्यों ने सीएए को लागू करने से मना करते हुए उसकी संवैधानिक वैधता को चुनौती दी है, क्या उनका विरोध जायज है?

हमारे प्रधानमंत्री और गृह मंत्री पहले ही स्पष्ट कर चुके हैं कि अधिनियम में नागरिकता देने का प्रावधान है, नागरिकता छीनने का नहीं. हमारे संविधान ने स्पष्ट रूप से कहा है कि नागरिकता से संबंधित प्रावधान संघ सूची या सूची- I के अंतर्गत आते हैं और राज्यों के पास इसके लिए कानून बनाने की विशेष शक्ति नहीं है. भारत में एकल नागरिकता की अवधारणा है, जो संसद द्वारा तय की जाती है. अब कानून पारित होने के बाद, अधिनियम को चुनौती देने के दो तरीके हैं. पहला तरीका संसद में एक और चर्चा करना और आवश्यक संशोधन करना है और दूसरा तरीका यह है कि सुप्रीम कोर्ट के सामने कानून को चुनौती दी जाए. हालांकि विरोध करना एक व्यक्ति का अधिकार है, लेकिन सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाना आंदोलन को दिखाने के लिए उचित नहीं है.

सवाल : सीएए को लेकर आपके अपने विचार किया है?

जैसा कि मैंने पहले बताया, संशोधित कानून उन लोगों को नागरिकता प्रदान करेगा, जो धार्मिक उत्पीड़न का सामना कर रहे पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आए थे. यह विवादास्पद हो गया है क्योंकि इसमें कुछ समुदायों को निर्दिष्ट किया गया है, जिन्हें छोड़ दिया जा सकता था. हालांकि, प्रत्येक देश को यह तय करने का अधिकार है कि नागरिकता के लिए कौन पात्र है और कौन नहीं, चाहे वह अपने धर्म के अनुसार हो.

Last Updated : Feb 18, 2020, 7:58 AM IST

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