हैदराबाद/श्रीनगर : पाकिस्तान समर्थित हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के आजीवन अध्यक्ष सैयद अली शाह गिलानी ने सोमवार को अचानक 16 धड़ों के गठबंधन से खुद को पूरी तरह अलग करने का ऐलान किया. गिलानी ने ऐसा करते हुए संगठन में जवाबदेही के अभाव और विद्रोह का आरोप लगाया. गिलानी का यह फैसला जम्मू-कश्मीर में होने वाली अलगाववादी गतिविधियों को प्रभावित करेगा.
कश्मीर घाटी में पाकिस्तान समर्थित अलगाववादियों में सबसे प्रमुख गिलानी (90) 2003 में इस धड़े के गठन के बाद से ही इसके अध्यक्ष थे. वह काफी समय से और विशेषकर पिछले साल जम्मू-कश्मीर से संविधान के अनुच्छेद 370 के प्रावधान खत्म किए जाने के बाद से राजनीतिक रूप से सक्रिय नहीं हैं. हुर्रियत कॉन्फ्रेंस से नाता तोड़ने का उनका फैसला इस ओर इशारा करता है कि वह राजनीति से सन्यास ले सकते हैं.
वर्ष 1993 में स्थापित अविभाजित हुर्रियत कांफ्रेंस के संस्थापक सदस्य रहे गिलानी ने उदार रुख अपनाने को लेकर अन्य धड़ों के साथ मतभेद के बाद 2003 में अपना अलग धड़ा बनाया था.
मीडिया के लिए जारी चार पंक्ति के पत्र और एक ऑडियो संदेश में, 90 वर्षीय नेता के प्रवक्ता ने कहा, 'गिलानी ने हुर्रियत कॉन्फ्रेंस फोरम से पूरी तरह से अलग होने की घोषणा की है.'
गिलानी के इस फैसले से जम्मू-कश्मीर की कानून प्रवर्तन एजेंसियों ने राहत की सांस ली है. यह इस इसलिए, यदि वह हुर्रियत प्रमुख के रूप में मर जाते तो उससे दंगे भड़क सकते थे. उन्होंने केंद्र में बैठे लोगों का काम आसान कर दिया, शायद इसी लिए भाजपा के वरिष्ठ नेता राम माधव ने उनके एलान को लेकर एक के बाद एक तीन ट्वीट किए.
माधव ने अपने एक ट्वीट में कहा कि 'यह व्यक्ति हजारों कश्मीरी युवाओं और परिवारों की जिंदगियां तबाह करने, घाटी को हिंसा और आतंक की आग में झोंकने के लिए अकेले जिम्मेदार है. और अब बिना कोई कारण बताए हुर्रियत से इस्तीफा दे दिया. क्या ऐसा करने से इस व्यक्ति के पूर्व के सारे पाप धुल जाते हैं?'
गिलानी के हुर्रियत ने जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा हटाए जाने पर भी ज्यादा प्रतिक्रिया नहीं दी थी, न ही उसने प्रदर्शन का कोई कैलेंडर निकाला था. गिलानी ने ऑडियो के माध्यम से हुर्रियत से अलग होने का ऐलान किया, जो कुछ क्षणों में वायरल हो गया. गिलानी के संदेश से साफ जाहिर होता है कि संगठन ने अलगाववाद को छोड़ दिया है और यह मान लिया है कि वह अब प्रासंगिक नहीं है.