गांधी की तुलना में दुनिया में ऐसे कई नेता आए, जिन्होंने उनसे अधिक कार्य किए और वे चले गए. लेकिन उनका प्रभाव कितना रहा, यह बहस का विषय जरूर है. पर, इतना जरूर है कि गांधी इन सब नेताओं से अलग थे. उनका प्रभाव इन सारे नेताओं से कहीं अधिक था. शायद यही वजह है कि गांधी आज भी पहले की तरह ही प्रासंगिक हैं.
गांधी ने तब सबसे मजबूत ब्रिटिश हुकूमत की जड़ें हिला दी थीं, वह भी बिना हिंसा का सहारा लिए हुए. उन्होंने सत्याग्रह के जरिए आम भारतीयों को लड़ने का एक प्रमुख औजार दिया. पूरी दुनिया ने इसे स्वीकार किया. गांधी की रणनीति में सुकरात का ज्ञान, सेंट फ्रांसिस की विनम्रता, बुद्ध की मानवता, प्राचीन ऋषियों का साधुवाद और लेनिन की सामूहिक अपील थी. यह अपने आप में अनूठा था. वह एक मास्टर रणनीतिकार थे. उन्होंने भारत के लिए एक साझा दृष्टिकोण विकसित किया. और बिना रक्तपात के इसे हासिल किया. उनमें संवाद स्थापित करने की अद्भुत क्षमता थी. जब भी वह लोगों का आह्वान करते थे, लाखों लोग उसका जवाब देते थे. उन्होंने लोगों का सम्मान जीता था. उनकी निष्ठा और आत्मविश्वास पर विजय प्राप्त कर लिया था.
गांधी की खासियत थी कि वह आम आदमी को एकत्रित कर लिया करते थे. किसी भी कार्य के लिए आम आदमी को सहमत करवाने की उनमें विशेष क्षमता थी. वह लोगों को प्रेरित करते थे. गांधी की शिक्षाएं न केवल भारत बल्कि विश्व भर में प्रासंगिक हैं. वे सार्वभौमिक उपदेश के रूप में सभी समय के लिए प्रासंगिक हैं. वह विचारों, शब्दों और कर्मों में परिपूर्ण था. उन्होंने कई बार दोहराया कि उनका जीवन ही उनका संदेश है.
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आज की स्थिति देखिए. माइक्रो और मैक्रो स्तर पर संघर्ष एक खतरा बन गया है. संघर्ष और कुछ नहीं, बल्कि हितों का टकराव है. इसका आधार भिन्न-भिन्न हो सकता है-व्यक्तिगत, नस्लीय, वर्गीय, जातिगत, राजनीतिक, क्षेत्रीय, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय. संघर्ष असहमति का एक विस्तार है. यह इसकी सामान्य शर्त है. संघर्ष व्यवहार के अस्तित्व की विशेषता है. इसमें हरेक पक्ष सक्रिय रूप से एक दूसरे को नुकसान पहुंचाने की कोशिश कर रहे हैं.
श्रेष्ठता, अन्याय, वल्नरेबिलिटी, डिस्ट्रस्ट और हेल्पलेसनेस प्रमुख मान्यताएं हैं, जो किसी भी समूह को संघर्षों की ओर ले जाती हैं. पहले के मुकाबले संघर्षों की संख्या बहुत अधिक बढ़ रही है, क्योंकि हम शांतिपूर्ण तरीकों से संघर्षों को हल करने के गांधीवादी तरीके को भूल गए हैं, जो किसी भी हिंसा से बचते हैं. हम कितने बौद्धिक और मूर्ख हैं, यह सवाल उतना महत्वपूर्ण नहीं है. आज ज्ञान और मूर्खता एक साथ चल रहे हैं.
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बीसवीं सदी की शुरुआत से ही दुनिया में हिंसा ने एक पंथ सा रूप ले लिया है. अगस्त 1945 में द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान हिरोशिमा और नागासाकी के परमाणु बम विस्फोटों के बाद से, परमाणु सशस्त्र शक्तियों के बीच संभावित तीसरे विश्व युद्ध का व्यापक प्रसार और लंबे समय तक भय बना रहा है.
1947 के शुरुआत में अल्बर्ट आइंस्टीन ने टिप्पणी की थी, 'मुझे नहीं पता कि विश्व युद्ध तीन को किन हथियारों से लड़ा जाएग, लेकिन विश्व युद्ध चार को लाठी और पत्थरों से लड़ा जाएगा.' आपको बता दें कि पहले और दूसरे विश्वयुद्ध के अलावा 250 छोटे युद्धों में 5 करोड़ से अधिक लोग मारे गए हैं. वर्तमान में दुनिया भर में 40 से अधिक छोटे-बड़े स्तर पर लड़ाई जारी है. यहां तक कि घरेलू हिंसा में भी जबरदस्त वृद्धि हुई है.
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