गांधीजी दैनिक बैठक की शुरुआत सर्वधर्म प्रार्थना से किया करते थे. इस प्रार्थना को हर धर्म के प्रमुख ग्रंथ से लेकर बनाया गया था. गांधी सांप्रदायिक सौहार्द में अटूट आस्था रखते थे. वह बचपन से ही अपने पिता की सेवा करते आ रहे थे. उन्होंने अपने पिता के दोस्तों से अलग-अलग धर्मों के बारे में बहुत कुछ सुना था, खासकर इस्लाम और पारसी धर्म के बारे में. हां, ईसाई धर्म के बारे में उनकी राय थोड़ी अलग थी. क्योंकि उन्होंने यह सुन रखा था कि शराब पीना और मांस खाना इस धर्म का अभिन्न हिस्सा है. इस धर्म के लोग हिंदू देवी-देवताओं की आलोचना करते हैं.
हालांकि, बाद में जब वह इंगलैंड गए और वहां पर उन्हें एक ऐसे अंग्रेज से मुलाकात हुई, जो शाकाहारी भी था और शराब भी नहीं पीता था. उसने गांधी को बाइबिल पढ़ने के लिए प्रेरित किया. उसके बाद गांधी ने बाइबिल पढ़ा. न्यू टेस्टामेंट चैप्टर पढ़कर वह बहुत ही अभिभूत हुए. यहीं पर उन्होंने यह पढ़ा कि जब कोई तुम्हें एक गाल पर थप्पड़ जड़ता है, तो तुम्हें दूसरा गाल भी आगे कर देना चाहिए.
वैसे, उनके मन में ऐसा विचार बहुत पहले ही उत्पन्न हो गया था, जब उन्होंने अलग-अलग धर्मग्रन्थों का अध्ययन किया. वह यह मानते थे कि बुराई को अच्छाई से ही जीता जा सकता है. कभी-कभी उन्हें लगता था कि कहीं बचपन से ही उनके मन में तो यह ख्याल नहीं था.
वह मानते थे कि हर धर्म को सम भाव से देखा जाना चाहिए. इसलिए अल्पायु से ही उनके मन में सांप्रदायिक एकता की बात मजबूत हो गई थी. मनुस्मृति पढ़ने के बाद गांधी नास्तिकता की ओर अधिक बढ़ गए. क्योंकि इस ग्रंथ में मांसाहार को बढ़ावा दिया गया है. अलग-अलग धर्म ग्रन्थों के अध्ययन के बाद वह यह मानते थे कि दुनिया सिद्धान्तों (नियमों) पर आधारित है और यह सिद्धान्त सत्य में समा जाता है. यानि बचपन से ही सत्य (सच्चाई) उनके जीवन का अभिन्न हिस्सा बन चुका था. यह उनके आने वाले पूरे जीवन का आधार बना रहा. उनके हर कार्य में यह परिलक्षित होता रहा है.
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यह बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है कि गांधी को विभाजन का दोषी ठहराया जाता है. हकीकत ये है कि वीर सावरकर और इकबाल जैसे लोगों ने द्वि-राष्ट्र के सिद्धान्तों को हवा दी थी. लेकिन धर्मांध और कट्टरता में यकीन करने वाले ऐसे सवाल गांधी से पूछते हैं. तथ्य तो ये है कि विभाजन का निर्णय माउंटबेटन, नेहरू, पटेल और जिन्ना ने लिया था. उन्होंने गांधी को बिल्कुल अलग-थलग कर दिया था. एक बार जब निर्णय ले लिया गया, तब उन्हें सूचित किया गया. अगर वह विभाजन का समर्थन करते, तो जब सत्ता हस्तांतरण का समारोह आयोजित किया जा रहा था, वह गैर हाजिर क्यों रहते. जब देश आजाद हो रहा था, तो गांधी नोआखाली में सांप्रदायिक दंगों को रोकने के लिए अनशन पर बैठे थे.
गांधी ने यह महसूस किया था और उन्होंने सार्वजनिक तौर पर अपनी खिन्नता प्रकट की थी कि लोग संयम, अहिंसा और सांप्रदायिक सौहार्द पर उनकी राय पर ध्यान नहीं दे रहे हैं. ऐसे में उनके सामने नैतिक दबाव का रास्ता अपनाने के अलावा कोई विकल्प नहीं था. वह इसके जरिए लोगों को हिंसा के रास्ते से दूर करना चाहते थे.
दिल्ली में 1948 में उन्होंने अनशन किया. उसके बाद बंगाल चले गए. उन्होंने अल्पसंख्यकों के पक्ष में अनशन किया था. भारत में मुस्लिम और पाकिस्तान में सिख और हिंदुओं के समर्थन में. कट्टरवादी हिंदू उनसे खफा थे. उन्होंने गांधी को बदनाम करने की कोशिश की. अफवाहें फैलाईं. यह कहा कि गांधी चाहते हैं कि भारत सरकार पाकिस्तान को 5.5 करोड़ रुपया दे. हकीकत में यह राशि भारत को दी जानी थी. बंटवारा के समय यह तय हुआ था. संपत्तियों के बंटवारे की एक शर्त थी. भारत के मुलसमानों और पाकिस्तान के मुलसमानों ने इसका समर्थन किया था. वह एक मात्र व्यक्ति थे, जिन्होंने ऐसे हालात में हिंदू मुस्लिम एकता के लिए काम किया. उनके कदम का पाकिस्तान में भी स्वागत किया जा रहा था.