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कहां गयी वो विरासत, जहां से बापू ने बदला था हवाओं का रुख?

इस साल महात्मा गांधी की 150वीं जयन्ती मनाई जा रही है. इस अवसर पर ईटीवी भारत दो अक्टूबर तक हर दिन उनके जीवन से जुड़े अलग-अलग पहलुओं पर चर्चा कर रहा है. हम हर दिन एक विशेषज्ञ से उनकी राय शामिल कर रहे हैं. साथ ही प्रतिदिन उनके जीवन से जुड़े रोचक तथ्यों की प्रस्तुति दे रहे हैं. प्रस्तुत है आज 11वीं कड़ी.

जनसभा के दौरान महात्मा गांधी

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Published : Aug 26, 2019, 7:03 AM IST

Updated : Sep 28, 2019, 7:05 AM IST

भोपाल: पूरी दुनिया को अहिंसा का पाठ पढ़ाने और इसी अहिंसा के अस्त्र से गुलामी की बेड़ियां काटने वाले बापू के कदम जहां-जहां पड़े, वो जगह तारीख पर सुनहरे अक्षरों में दर्ज हो गयी. जिसे आज भी बतौर बापू की याद सहेजा जा रहा है.

1929 में जिस बेनजीर मैदान से महात्मा गांधी ने अपने ओजस्वी भाषण से आजादी की अलख जगाई थी. वो जगह आधुनिकता और विकास की आंधी में गुम हो गई है.

बेनजीर मैदान से गांधी के रिश्ते पर ईटीवी भारत की रिपोर्ट

ये बात उन दिनों की है, जब गांधीजी अपनी अहिंसावादी नीतियों से अंग्रेजों की नाक में दम किये हुए थे, इसी दौरान भोपाल के नवाब ने गांधीजी को भोपाल आने का निमंत्रण दिया था, जिसने आंदोलन की आबोहवा को बदल कर रख दिया था.

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नवाब के बुलावे पर 8 सितंबर से 10 सितंबर, 1929 तक भोपाल दौरे पर रहे गांधीजी ने कई लोगों से मुलाकात भी की थी. तब नवाब ने गांधीजी के स्वागत में पूरे शहर को खादी के कपड़ों से पाट दिया था, जबकि नवाब ने उनके ठहरने की लग्जरी व्यवस्था की थी.

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तब गांधीजी जिस इमारत में रुके थे, वह सरकारी अनदेखी के चलते जर्जर हो चुका है. इसके एक हिस्से में होटल बन गया है तो दूसरे हिस्से में चंद ईट-पत्थर ही बचे हैं. यूं तो गांधीजी की हर याद को बतौर विरासत संजोया जा रहा है, लेकिन सरकार की अनदेखी के चलते गांधी की ये विरासत गुमनामी की दुनिया में खोती जा रही है.

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भले ही उनकी विरासत गुम होती जा रही है, लेकिन सदियों तक आने वाली पीढ़ियों के दिलों में गांधीजी जिंदा रहेंगे. अब जब पूरा देश राष्ट्रपिता की 150वीं जयंती मना रहा है, तब जरूरी है कि उनकी स्मृतियों को सहेजा जाये, ताकि आने वाली पीढ़ियां भी इस महात्मा के बारे में जान सकें.

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Last Updated : Sep 28, 2019, 7:05 AM IST

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