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1962 के युद्ध के सैनिक रामचंद्र का चीन को संदेश, रेजांगला पोस्ट को याद कर ले चीनी सेना

गलवान घाटी को लेकर भारत चीन के बीच तनाव की स्थिति है. घटिया मंसूबों को लेकर चीन सीमा पर पीछे हटने को तैयार नहीं है. इस स्थिति में ईटीवी भारत की टीम ने 1962 का युद्ध लड़ चुके पूर्व कैप्टन रामचंद्र से खास बातचीत की है. पढ़ें पूरी खबर...

1962 war soldier story rewari
रेवाड़ी में स्थित रेजांगला के वीर शहीदों के नाम स्मारक

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Published : Jun 17, 2020, 11:08 PM IST

चंडीगढ़ : आज चीन भारत को आंखे दिखा रहा है. भारत की गलवान घाटी पर चीन अपना हक जता रहा है, ऐसा लगता है कि चीन साल 1962 में हुए रेजांगला पोस्ट के युद्ध को भूल गया है. जब भारतीय सैनिकों ने भौगोलिक परिस्थितियों और बर्फीले मौसम के बावजूद चीनी सेना को धूल चटाई थी. इस युद्ध 13 कुमाऊं बटालियन के 114 जवान शहीद हो गए थे, लेकिन उन जवानों 1300 चीनी सैनिकों को मार गिराया था.

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इसी रेजांगला पोस्ट की लड़ाई में अपनी बहादुरी का परिचय देने वाले कैप्टन रामचंद्र से ईटीवी भारत हरियाणा की टीम ने खास बातचीत की. कैप्टन रामचंद्र का कहना है कि कोरोना महामारी में चीनी आज लद्दाख से घुसपैठ कर भारत पर हमला करने की फिराक में है, लेकिन भारतीय फौज इतनी शक्तिशाली है कि हर मोर्चे पर युद्ध कर दुश्मन को पराजित कर सकती है. भारतीय जवान जोश और होश की बात करता है. आज का जवान चीनी हथियारों से डरने वाला नहीं है. चीन की घटिया मंसूबों को भारत कभी कामयाब नहीं होने देगा.

रेवाड़ी में स्थित रेजांगला के वीर शहीदों के नाम स्मारक

'आज भी युद्ध में जाने से पीछे नहीं हटेंगे'
कैप्टन रामचंद्र ने कहा कि आज भी हम चीन को मार गिराने का दम रखते है, इसलिए चीन को लद्दाख में एंट्री करने से पहले रेजांगला पोस्ट की लड़ाई को याद कर लेना चाहिए. उनका कहना है कि आज उनका शरीर बेशक बूढ़ा हो गया है, लेकिन सरकार आज भी उन्हें युद्ध में जाने की इजाजत दे, तो वो पीछे नहीं हटेंगें. उन्होंने कहा कि जैसे रेजांगला पोस्ट की लड़ाई में चीनी फौज को पछाड़ा था उसी तरह आज भी पूरी बहादुरी से लड़ाई जीतने का दम रखते है.

क्या हुआ था रेजांगला पोस्ट पर?
साल 1962, 18 नवंबर के दिन सुबह करीब 03.30 बजे लद्दाख घाटी का शांत माहौल गोलीबारी से गूंज उठी थी. भारी मात्रा में गोला-बारूद और तोप के साथ चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के करीब पांच से छह हजार जवानों ने लद्दाख पर हमला कर दिया था. मेजर शैतान सिंह के नेतृत्व वाली 13 कुमाऊं की एक टुकड़ी चुशुल घाटी की हिफाजत पर तैनात थी. भारतीय सैन्य टुकड़ी में मात्र 120 जवान थे जबकि दूसरी तरफ दुश्मन की विशाल फौज थी.

चीन की विशाल सेना के बावजूद कुमाऊं बटालियन की टुकड़ी ने दुशमनों का सामना किया. कई घंटों तक ये युद्ध चला. चीन की विशाल सेना के सामने भारतीय टुकड़ी की संख्या ना के बराबर थी, फिर भी भारत के 120 जवानों ने चीन के 1300 सैनिकों को मार गिराया. इस युद्ध में 114 भारतीय जवान शहीद हो गए.

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दक्षिण हरियाणा के थे 120 जवान
इस युद्ध में 6 भारतीय सैनिक जिंदा बचे थे जिसे चीनी सैनिक युद्ध बंदी बनाकर ले गए, लेकिन सभी चमत्कारिक ढ़ंग से बचकर निकल गए. बाद में इस सैन्य टुकड़ी को पांच वीर चक्र और चार सेना पदक से सम्मानित किया गया था. 13 कुमाऊं के 120 जवान हरियाणा के थे. रेवाड़ी में रेजांगला के वीरों की याद में स्मारक बनाया गया है. यहां हर साल रेजांगला शौर्य दिवस धूमधाम से मनाया जाता है और वीर सैनिकों को श्रद्धांजलि दी जाती है.

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