सवाल- 2020 राष्ट्रपति चुनावों से पहले यह ट्रंप का दफ्तर में आखिरी साल है. ऐसे में आप ट्रंप के भारत दौरे को कैसे देखते हैं?
किसी भी अमरीकी राष्ट्रपति के दौरे से काफ़ी रोमांच होता है. दौरे में अभी क़रीब दस दिन बचे हैं, लेकिन मीडिया और लोगों के बीच इसकी चर्चाएँ तेज़ हो गई हैं. यह इस बात की तरफ़ इशारा करता है कि, सामरिक और राजनीतिक दायरों से आगे दोनों देशों के रिश्तों में मज़बूती है. इसका कारण है लोगों से लोगों का जुड़ाव. अमेरिका में आज के समय में 4 मिलियन भारतीय मूल के लोग हैं, इसके अलावा 200,000 भारतीय छात्र हैं. बड़ी संख्या में भारतीय अमेरिका नौकरी की तलाश में जाते हैं, या ऐसी कई नौकरियाँ हैं जो दोनों देशों को जोड़ती हैं. इस रिश्ते में बड़े स्तर पर उम्मीदों का निवेश किया गया है. इन सभी पहलुओं को देखते हुए मेरे ख़्याल में यह दौरा महत्वपूर्ण है, क्योंकि इससे दोनों देशों के बीच दौरे कर, लगातार द्विपक्षीय रिश्तों को बरकरार रखने में मदद मिलती है. क्लिंटन के बाद से हर अमरीकी राष्ट्रपति ने भारत का दौरा किया है.
सवाल- बराक ओबामा दो बार भारत आये थे.
ओबामा दो बार आये थे और उनका पहला दौरा उनके पहले कार्यकाल में हुआ था. अगर आप क्लिंटन की बात करें तो उनका पहला दौरा उनके दूसरे कार्यकाल के ख़त्म होते समय हुआ था. इस लिहाज़ से यह महत्वपूर्ण है कि ट्रंप अपने पहले कार्यकाल के अंत में अपना पहला दौरा कर रहे हैं. यह इस बात का संकेत है कि, द्विपक्षीय रिश्तों को ट्रंप कितना निजी महत्व देते हैं. यह केवल भारत-अमेरिका रिश्तों के लिये ही नहीं, बल्कि ब्रैड ट्रंप और ट्रंप की राजनीति के लिये भी महत्वपूर्ण है.
भारत के पूर्व राजदूत अरुण सिंह से खास बातचीत सवाल- यह ध्यान में रखते हुए कि ट्रंप हाल ही में महाभियोग से बाहर आये हैं, क्या यह उनके लिये भी अपनी घरेलू जीत को अंतरराष्ट्रीय मंच पर ले जाने का मौका है?
बिलकुल. 5 फ़रवरी को अमेरिका की सैनेट ने उन्हें बरी कर दिया है. 4 फ़रवरी को उन्होंने अपना स्टेट ऑफ द यूनियन संबोधन किया, जो उनके समर्थकों में काफ़ी पसंद किया गया. उन्होंने इस भाषण के ज़रिये अफ्रीकी-अमरीकी और हिस्पैनिक समुदाय तक पहुँचने की भी कोशिश की. अब उनके लिये यह साबित करने का समय है कि घरेलू ही नहीं, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी उन्हें उतना ही सम्मान और समर्थन मिलता है. आज दुनिया में ऐसे कम ही देश हैं जहां उन्हें ऐसा स्वागत मिलेगा.
सवाल-यह कहना है कि उनका स्वागत करने के लिये लाखों की संख्या में भारतीय आयेंगे?
यह सही है. उनके स्वागत के लिये भारतीय सड़कों पर आयेंगे और बड़ी तादाद में अहमदाबाद के स्टेडियम में भी जमा होंगे, वहीं दिल्ली में भी उनका राजनीतिक स्वागत होगा. कई अन्य देशों में, ट्रंप द्वारा, सहयोगी देशों द्वारा ज़्यादा काम न करने के बयानों के बाद से चिंता व्याप्त है. इन देशों में अमेरिका की सीरिया और अफ़ग़ानिस्तान नीतियों को लेकर भी चिंता है. ट्रंप के लिये यह मौक़ा दिखाने का है कि द्विपक्षीय स्तर पर उन्होंने काफ़ी कुछ हासिल किया है. कुछ दिन पहले इकवेडोर के राष्ट्रपति का स्वागत करते समय, ट्रंप ने यह कहा था कि उनके द्वारा द्विपक्षीय संबंधों को मज़बूत करने के लिये काफ़ी कुछ किया गया है. इसलिये भारत आना और यहाँ ऐसा स्वागत मिलना, उनके लिये काफ़ी मददगार होगा.
सवाल- पीएम मोदी का काफी ध्यान तस्वीरों पर होता है. लेकिन क्या हम धरताल पर एक व्यापारिक समझौते की उम्मीद कर सकते हैं?
अंतरराष्ट्रीय संबंधों में तस्वीरें बहुत ज़रूरी होती हैं. इनसे इशारा किया जाता है. लेकिन ठोस काम भी उतने ही ज़रूरी होते हैं. तस्वीरें आपको एक सीमा तक ही ले जा सकती हैं. यह साफ़ है कि दोनों पक्ष रक्षा सहयोग को लेकर किसी तरह के समझौते के पक्ष में हैं, जिससे रिश्तों से जुड़ी गंभीरता की तरफ़ इशारा किया जा सके. एक ऐसा संदेश जिससे इस रिश्ते में दोनों की गंभीरता के बारे में बताया जा सके. क्योंकि हम दूसरे देश से तब तक ख़रीद नहीं करते जब तक हमें पूरा भरोसा न हो. रक्षा से आगे बढ़ें तो व्यापार और वाणिज्य रिश्ते आते हैं. हाल ही में अमेरिका में भारतीय राजदूत ने कहा है कि दोनों देशों के बीच 160 बिलियन अमरीकी डॉलर का व्यापार हो रहा है. इसका मतलब है कि यह हर साल लगातार बड़ रहा है और अमेरिका भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है. वैसे तो भारत पूरे तौर पर एक ट्रेड डेफिस्यिेट देश है, लेकिन, अमेरिका से भारत ट्रेड सर्पलस रहता है. यह हमारे लिये बहुत ज़रूरी है. लेकिन इसमें भी मसले हैं. सितंबर से हम सुन रहे है कि हम एक सीमित व्यापार समझौता होने जा रहा है. अब फ़रवरी आ गया है और इस बारे में स्थिति साफ़ नहीं है, जो दिखाता है कि दोनों पक्षों के हित इस से जुड़े हैं. कई बार समझौते तक पहुँचना आसान नहीं होता है. लेकिन प्रतिबद्ध कदम उठाये जा रहे हैं. ऐसी उम्मीद की जानी चाहिये कि इस दिशा में कुछ हो सकेगा, क्योंकि सीमित समझौते की सूरत में भी यह तस्वीरों के लिये अच्छा होगा.
भारत के पूर्व राजदूत अरुण सिंह से खास बातचीत सवाल- अगर व्यापारिक समझौता नही होता है तो क्या यह निराश करने वाली बात होगी? क्या इससे चिंता करने की जरूरत होगी?
मुझे नहीं लगता कि इससे कोई चिंता करने वाली बात होगी. दोनों ही पक्षों के फ़ायदे और चिंतायें हैं. अभी और काम करने की ज़रूरत है. सीमित समझौता तस्वीरों के लिये अच्छा होगा, लेकिन, इससे राष्ट्रपति ट्रंप को अपने समर्थकों को यह बताने का मौक़ा मिलेगा कि उन्होंने मैक्सिको, कनाडा, दक्षिण कोरिया, चीन और अब भारत के साथ व्यापारिक समझौते करने में कामयाबी हासिल की है. उन्हें अपने समर्थकों को यह दिखाने का मौक़ा मिलेगा कि उन्होने तमाम देशों के साथ अलग अलग तरह के व्यापारिक समझौते किये हैं और इनसे अमरीकी कर्मचारियों को ही फ़ायदा मिलेगा. भारत के लिहाज़ से अगर हम अमेरिका के साथ रिश्तों को मज़बूत करने की तरफ़ काम कर रहे हैं तो, हमें व्यापार और निवेश के अलावा और क्षेत्रों में संबंधों पर ध्यान देने की ज़रूरत है. मिसाल के तौर पर भारतीय पक्ष ऊर्जा के क्षेत्र में साझेदारी की बात कर रहा है. या, तेल और गैस के क्षेत्र में, जहां हम अब अमेरिका से ख़रीद कर रहे हैं, जो पहले नहीं होता था. नागरिक उड्डयन भी एक क्षेत्र हो सकता है क्योंकि भारत अब ज़्यादा से ज़्यादा हवाई जहाज़ ख़रीदेगा. इनमें से ज़्यादातर अमेरिका से ही आयेंगे. यह सब ही मौजूदा व्यापार के घाटो को कम करने में कारगर साबित हो सकते हैं. इसके अलावा तकनीक के क्षेत्र में भी आने वाले दिनों में तेज़ी से काम होगा. हमारे यहाँ 5जी, एआई, नये तरह की डिजिटल तकनीक, जीव शास्त्र और आईटी का समन्वय होगा. हम जिस तरह रहते हैं और काम करे हैं उसमें पूरी तरह से बदलाव आने वाला है. भारत और अमेरिका के लिये रिश्तों को मज़बूत करने के लिये नई साझेदारियाँ करना फ़ायदेमंद होगा.
सवाल-डाटा का स्थानीयकरण भी चिंता का एक मसला है ?
इस बारे में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बहस हो रही है. नई तकनीकों ने दुनियाभर में समाजों के लिये चुनौती खड़ी कर दी है. इनके कारण दुनिया भर के रेग्यूलेटरों के लिए चुनौती खड़ी हो गई है. यह केवल भारत और अमेरिका में ही नहीं है, यूरोप की तरफ़ देखें, वहाँ भी निजता को लेकर चितायें हैं. फ़्रांस ने डिजिटल कंपनियों पर टैक्स लगा दिया है जिससे अमेरिका खुश नहीं है. ताज़ा रिपोर्ट यह बताती हैं कि अमेरिका, चीन द्वारा एक कंपनी को हैक कर 150 मिलियन अमरीकियों की जानकारियों के चोरी होने की ख़बरों से नाखुश है. अमेरिका ने चार चीनी नागरिकों को पीएलए का सदस्य होने का आरोप लगाकर प्रतिबंधित कर दिया है. इसलिये डाटा, डाटा के स्थान, कंपनियों और लोगों से रिश्ते, सरकारों के बीच के रिश्ते, इन सभी पर विश्व स्तर पर बहस हो रही है. नई तकनीक समाज के लिये नई चुनौतियाँ लेकर आती हैं और हमें इससे निपटने के लिये काम करते रहना पड़ेगा.
सवाल- कश्मीर को लेकर ट्रंप ने विवादास्पद बयान दिये हैं. ट्रंप की करीबी लिंडसे ग्राहम समेत चार वरिष्ठ सेनेटर्स ने स्टेट सेक्रेटरी को पत्र लिखकर कश्मीर में इंटरनेट पर रोक को खत्म करने, राजनीतिक बंदियों को रिहा करने की मांग के साथ सीएए-एनआरसी पर हो रहे विरोधों की तरफ भी ध्यान दिलाया है. यह मुद्दा क्या भूमिका निभायेगा?
इसमें एक पक्ष है जो राष्ट्रपति ट्रंप से संबंध रखता है और दूसरा जो कांग्रेस से संबंधित है. अपने पिछले तीन साल के कार्यकाल में राष्ट्रपति ट्रंप को अनिश्चित, और अमरीकी विदेश और कूटनीति के तय मानकों से अलग जाते राष्ट्रपति को तौर पर देखा गया है. मैं स्तबद्ध था जब पिछले साल जुलाई में उन्होंने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री से मुलाक़ात की. उन्होंने तब कहा थी कि वह कश्मीर मामले पर मध्यस्थता को तैयार हैं और, भारतीय पीएम ने भी उनसे इस मामले में मध्यस्थता करने की बात कही है. मैं इसलिये अचंभित नहीं था कि मैं सरकार में था, बल्कि इसलिये, क्योंकि मैंने सालें तक अमेरिका और पाकिस्तान के मामलों को क़रीब से देखा है, और इसलिये मैं यह कह सकता हूँ कि कोई भी भारतीय प्रधानमंत्री कभी किसी अमरीकी राष्ट्रपति से मध्यस्थता के लिये कहने की बात नहीं सोचेगा. तो यह साफ़ था कि ट्रंप अपने आप ही यह बात कह रहे थे और भारतीय विदेश मंत्रालय ने इसका सख़्त खंडन भी किया. इसके बाद ट्रंप ने कभी यह नहीं कहा कि वो मध्यस्थता के लिये तैयार हैं, लेकिन यह कहा है कि अगर दोनों पक्ष तैयार हो तो वह मदद कर सकते हैं. अमेरिका के लिये अफ़ग़ानिस्तान में की जा रही उसकी तालिबान से शांति समझौते की कोशिशों के लिये पाकिस्तान का समर्थन ज़रूरी है. सितंबर में मोदी के साथ भव्य 'हाउडी मोदी’ के बाद ट्रंप ने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान के साथ मुलाकात की, और इस दौरान उन्होने पाकिस्तान द्वारा आतंकवाद पर एक्शन की बात को यह कहकर टाल दिया कि वो इरान पर ध्यान दे रहे हैं. वो यह बात साफ समझते हैं कि पाकिस्तान आतंकवादी संगठनों के साथ काम करता आ रहा है. वो यह भी जानते हैं कि कश्मीर मामले पर भारत किसी तीसरे पक्ष की मध्यस्थता की इजाजत नहीं देगा.इसलिये हम कहते हैं कि अगर आप पाकिस्तान को किसी तरह से व्यस्त रखना चाहते हैं तो ठीक है.
जहां तक कांग्रेस का सवाल है, वो प्रशासन से काफ़ी अलग तरह काम करती है. अमरीकी कांग्रेस, सरकार के ही एक अंग के तरह काम करती है. कांग्रेस में डेमोक्रेट दल की मदद से कश्मीर पर एक प्रस्ताव दाखिल किया जा रहा है. यह इसलिये नहीं कि कांग्रेस भारत विरोधी है, बल्कि, कश्मीर पर पाबंदियों, और सीएए और एनआरसी से संबंधित मसलों पर कांग्रेस की अपनी एक राय है. इन सेनेटरों द्वारा किया गया एक्शन उसी का हिस्सा है. उनकी राजनीति यह कहती है कि वो इन मुद्दों पर विरोधी रुख़ लें. भारत को वो करने की ज़रूरत है जो उसके लिये फ़ायदेमंद हो. भारत ने अमरीकी प्रशासन के साथ रिश्ते बनाये हैं. लेकिन इसके साथ ही उसे कांग्रेस तक अपनी पहुँच को भी मज़बूत करना है. साल 2000 से ही भारत को कांग्रेस से मिल रहे पूर्ण समर्थन (डेमोक्रेट और रिपब्लिकन) ने भारत की राह आसान की है. कांग्रेस से इस तरह का समर्थन पाने वाले देशों में इससे पहले इज़रायल की ही गिनती होती रही है. मौजूदा समय में कांग्रेस में रिपब्लिकन और डेमोक्रेट के बीच संबंध विरोधी हैं, और वह ट्रंप और मोदी के रिश्तों को भी उसी नज़र से देखते हैं, और इसलिये कांग्रेस भारत की कई नीतियों को लेकर विरोध के स्वर इख़्तियार कर रही है. भारत के लिये इसे लेकर सतर्क रहने की ज़रूरत है, कांग्रेस तक पहुँचने की कोशिशें जारी रखे और इस रिश्ते को और मज़बूत करे.
सवाल- हाउडी मोदी के दौरान रिपब्लिकन पार्टी ने इसे मोदी द्वारा ट्रंप के चुनाव प्रचार के तौर पर देखा था. अब अमेरिका में चुनावों से कुछ महीने पहले हो रहे केम छो ट्रंप के कारण क्या भारत अमरीकी कांग्रेस में अपने लिये सभी पार्टियों के समर्थन को खतरे में डाल रहा है?
अमेरिका में कोई भी राष्ट्रपति हो, भारत को उसमें निवेश करना होगा. भारत ने राष्ट्रपति क्लिंटन में भी निवेश किया था. राष्ट्रपति बुश के समय भी यही देखने को मिला. आपको याद होगा कि उस समय भारतीय प्रधानमंत्री ने अमरीकी राष्ट्रपति से सितंबर 2008 में, उनके कार्यकाल के आख़री दौर में मुलाकात की थी और कहा था कि भारत के लोग आपसे बुत प्यार करते हैं. यह एक ऐसे समय में हुआ था जब बुश की लोकप्रियता अमेरिका और विश्व में काफ़ी नीचे चल रही थी. भारत ने राष्ट्रपति ओबामा के साथ उस समय घनिष्ठता से काम किया था जब ज़्यादातर कांग्रेस उनके ख़िलाफ़ थी. आपको ऐसा करना होगा, लेकिन यह भी ध्यान रखने की ज़रूरत है कि अमेरिका में अन्य देशों के उलट, कांग्रेस कई मायनों में सरकार के बराबर है. अमरीकी राष्ट्रपति के भारत आने पर आपको यह दिखाना होगा कि उनका स्वागत है. आप किसी व्यक्ति का स्वागत नहीं कर रहे हैं, आप अमेरिका के राष्ट्रपति का स्वागत कर रहे हैं.