मणिकांदन का इलाज 21 दिनों तक तमिलनाडु के थंजावुर मेडिकल कॉलेज में चला. उन्होंने कहा कि क्योंकि मैं दिल्ली में नया था, इसलिए कोरोना महामारी के फैलते ही हमने गृह जिला जाने का निर्णय ले लिया. 24 मार्च को वे दिल्ली एयरपोर्ट पर पहुंचे. वे वहां से चेन्नई पहुंच गए. ओला कैब से चेन्नई से 300 किसी दूर थंजावुर के उर्नीपुरम पहुंचे. वहां उन्होंने अपने शरीर में दर्द का अनुभव किया. उन्होंने अपने आप को क्वारेन्टीन करने का निर्णय ले लिया. उसके लिए वे पास के प्राइमरी हेल्थ केयर सेंटर में गए. तभी उन्हें एक खबर मिली. इसके अनुसार जिस फ्लाइट से वे वापस आए थे, उनमें से कई लोगों को कोरोना संक्रमण हो चुका था. यह खबर देखकर उन्हें भी लगा कि उन्हें टेस्ट करवाना चाहिए. दो अप्रैल को स्थानीय अधिकारी ने उन्हें थंजावुर मेडिकल कॉलेज भेज दिया.
इधर उनके घर के चारों ओर चर्चाएं तेज हो गईं. लोग कहने लगे, देखो उसे कोरोना हो गया है. वह गंभीर है. आसपास के लोगों को अलर्ट रहने को कहा गया. व्हाट्सएप में इस तरह के मैसेज भी साझा किए जाने लगे. यह एक तरह का सामाजिक धब्बा वाली स्थिति थी.
दो अप्रैल को उनके थ्रोट स्वाब और नासिका की टेस्टिंग की गई. थिरुवायुर लैब को सैंपल भेज दिया गया. हालांकि, उन्हें ना तो बुखार था, ना ही कफ, ना ही छींक हो रही थी. थकावट भी महसूस नहीं कर रहे थे. पांच दिनों के बाद डॉक्टर ने उन्हें कोरोना संक्रमित होने की बात बताई. लेकिन इस वक्त तक भी कोई लक्षण नहीं दिख रहे थे. आगे उन्होंने कुछ इस तरह से अपनी दास्तां लिखी.
एक दिन बाद मेरे परिवार के सदस्यों का भी सैंपल लिया गया. बेटे बेटे का भी. हालांकि, मुझे उस वक्त बड़ी राहत मिली, जब परिवार के सभी सदस्यों की रिपोर्ट निगेटिव निकली. संभवतः सोशल डिस्टेंसिंग की वजह से यह परिणाम आया. इसके बावजूद उन सबको 14 दिनों के लिए क्वारेन्टीन कर दिया गया. मेरे बच्चे चाहते थे कि वे खेलें, लेकिन उन्हें इसकी इजाजत नहीं दी जाती थी.
मेरे साथ इलाज करवा रहे शेख अलाउद्दीन हमेशा सकारात्मक बने रहने की प्रेरणा देते रहते थे. उन्होंने तमिल और मलयाली सिनेमा देखने की सलाह दी, खासकर पुलिस से संबंधित फिल्में. ऐसा इसलिए क्योंकि तनाव हम लोगों पर हावी ना हो जाए. खाने में हमें हर चीजें दी जाती थीं. इडली, डोसा, चपाती, बिरयानी, फल वगैरह. अंडा, दूध, काजू भी दिया जाता था. दिन में दो बार मनोवैज्ञानिक काउसंलिंग दी जाती थी.