कटिहार: बिहार में केलांचल के नाम से प्रसिद्ध कटिहार जिले में केले की फसल में पनामा विल्ट रोग के कारण किसानों को लगातार नुकसान हो रहा था. साथ ही कभी सुखाड़ तो कभी बाढ़ के कारण परंपरागत खेती किसानों के लिए नुकसान का सौदा साबित हो रहा थी. ऐसे में किसान अब परंपरागत खेती को छोड़ आधुनिक फलों की खेती का रूख कर रहे हैं. अब केले के बदले ड्रैगन फ्रूट की खेती का चलन बढ़ रहा है और किसान समृद्धि हो रहे हैं.
धान का कटोरा के नाम से पूरे राज्य में है मशहूर
सीमांचल का यह इलाका धान के कटोरा के नाम से पूरे राज्य में प्रसिद्ध है. यहां धान की खेती भी काफी मात्रा में होती है, लेकिन हर साल बाढ़ किसानों की कमर तोड़ देती है और हजारों एकड़ धान की खेत बाढ़ के पानी से बर्बाद हो जाते हैं. ऐसे में किसानों ने धान के बदले ऐसी खेती करना शुरू कर दिया है, जिससे उन्हें कोई समस्या नहीं है.
क्या कहते हैं किसान
बरारी प्रखंड के बलवा गांव के किसान धनंजय कुमार सिंह बताते हैं कि धान और केले की खेती में लगातार नुकसान हो रहा था, जिससे परिवार चलाना बड़ा मुश्किल हो रहा था. ऐसे में उन्होंने परंपरागत खेती को छोड़ ड्रैगन फ्रूट की खेती करना शुरू कर दिया.
लागत कम, वर्षों तक लाभ
धनंजय जिले के पहले किसान हैं, जो ड्रैगन फ्रूट की खेती कर रहे हैं. अब इनको देख दूसरे अन्य किसान भी ड्रैगन फ्रूट की खेती की ओर अग्रसर होने लगे हैं. धनंजय बताते हैं कि ड्रैगन फ्रूट की खेती में बहुत ही कम लागत लगती है और इसका लाभ वर्षों तक मिलता रहता है.
कैक्टस बेल की तरह ड्रैगन फ्रूट
किसान धनंजय सिंह बताते हैं कि ड्रैगन फ्रूट एक प्रकार की कैक्टस बेल है. एक पौधे से 8-10 फल प्राप्त होते हैं. तीन सौ से पांच सौ ग्राम वजनी इन फलों की सीजन में दो सौ से चार सौ रूपये प्रति किलो की कीमत मिल जाती है. ये फल मंडी में आसानी से बिक भी जाता है.
एक एकड़ में तीन से चार लाख की आती है लागत
धनंजय सिंह बताते हैं कि एक एकड़ में ड्रैगन फ्रूट की खेती के लिए अमूमन तीन से चार लाख का खर्च आता है. ड्रैगन फ्रूट के लिए पौधा लगाने का समय फरवरी-मार्च के बीच होता है, जबकि एक पौधे की कीमत लगभग ₹80 तक होती है. पौधे के रखरखाव और इसकी उचित वृद्धि के लिए पौधे के साथ पिलर खड़ा कर दिया जाता है. पौधे में फल लगना जून महीने से शुरू हो जाता है और नवंबर-दिसंबर तक लगाया जाता रहता है.