रायपुर : अदम गोंडवी कह गए हैं...तुम्हारी फाइलों में गांव का मौसम गुलाबी है, मगर ये आंकड़े झूठे हैं ये दावा किताबी है. हमारे देश में किसानों की दुर्दशा किसी से छिपी नहीं उस पर कोरोना वायरस के संक्रमण और लॉकडाउन ने उन्हें खून के आंसू रोने के लिए मजबूर कर दिया. राजधानी के एक फल किसान ने अपने सैकड़ों टन पपीतों और केलों को अपने हाथों से रौंद दिया और ईटीवी भारत से बस इतना कहा कि जिसे बच्चे की तरह पाला, उसे खत्म करना मजबूरी बन गया है. सरकार के लिए तो बस फाइल दुरुस्त करना जरूरी है.
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के चक्रवाय गांव की है. किसान अनुज अग्रवाल ने हर साल की तरह इस बार भी बड़े पैमाने पर पपीता और केले की खेती की थी. लेकिन जब फसल तैयार हुई, उसी दौरान कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने के लिए लॉकडाउन कर दिया गया. फसल बिकी नहीं लिहाजा अनुज ने 50 एकड़ में खड़ी फसल को ट्रैक्टर से रौंद दिया.
दूसरे राज्यों में नहीं हो पाई आपूर्ति
किसान ने बताया कि लॉकडाउन के चलते दूसरे राज्यों को होने वाली आपूर्ति नहीं हो पाई, क्योंकि दूसरे राज्यों से व्यापारी इन्हें खरीदने नहीं आ पाए. स्थानीय बाजार में जो कीमत मिल रही है, उससे तो इसे तोड़ने भर का खर्च नहीं निकल रहा है. ऐसे में बेबस किसान खरीफ की खेती के लिए अपने खेतों को खाली करने के लिए पपीते और केलों को रौंद देना ही बेहतर समझ रहे हैं.
खेतों तक पहुंचा ईटीवी भारत
ईटीवी भारत को जब किसानों की इस बेबसी के बारे में जानकारी मिली तो हमारी टीम 50 किलोमीटर दूर चक्रवाय गांव पहुंची, जहां किसान अपने खेत को ट्रैक्टर से रौंद रहा था. किसान ने लगभग 25 एकड़ में पपीता की खेती और लगभग इतने ही रकबे पर केले की खेती की थी. उनकी कड़ी मेहनत की बदौलत फसल भी अच्छी हुई. इसे देखकर उन्हें इस बार अच्छे मुनाफे की उम्मीद थी, लेकिन इस बीच कोरोना ने भारत में भी दस्तक दे दी और इसके बाद पूरे देश में लॉकडाउन करना पड़ गया. इसकी मार इन किसानों पर बुरी तरह पड़ी है.
पहले ही फेंक चुके हैं 150 टन पपीता
किसान बताते हैं कि बाहरी व्यापारी इस बार सौदे के लिए नहीं पहुंच पाए. इसके चलते स्थानीय व्यापारियों और बिचौलियों पर उन्हें निर्भर होना पड़ गया. उन्होंने यह भी बताया कि करीब 150 टन पपीता वह पहले ही फेंक चुके हैं. अभी लगभग 100 टन पपीता खेत में लगा है, जिसे वह ट्रैक्टर चला कर खत्म कर रहे हैं. यही हाल केले के साथ फसल के साथ भी है.