नई दिल्ली: मोदी सरकार द्वारा कृषि क्षेत्र में सुधार के लिये लाये गए तीन कानूनों पर किसानों को मनाने और इसके फायदे गिनाने के लिये पूरी कैबिनेट कवायद में जुट गई है. रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह भी किसानों से सीधे संपर्क कर रहे हैं और कृषि मंत्री की मौजूदगी में किसानों के साथ बैठकों का दौर भी चल रहा है.
मंगलवार को रक्षा मंत्री के साथ हुई किसानों की बैठक में किसान नेता और किसान शक्ति संघ के अध्यक्ष चौधरी पुष्पेंद्र सिंह भी मौजूद थे. पुष्पेंद्र सिंह ने बैठक में कुछ महत्वपूर्ण सुझाव दिये और किसानों की तरफ से कुछ मांगें भी मंत्रियों के सामने रखी.
एमएसपी की गारंटी किसानों को मिले
ईटीवी भारत ने किसान नेता से विशेष बातचीत की, जिसमें उन्होंने बताया कि सरकार के द्वारा लाये गए कानून का सभी किसानों ने स्वागत किया, लेकिन यह मांग भी रखी कि एमएसपी की गारंटी किसानों को मिले. इसके लिये कानूनी प्रावधान लाये जाएं, जिसके बाद किसानों को यह सुरक्षा मिलेगी कि कोई उनकी फसल एमएसपी से कम कीमत पर नहीं खरीद सकेगा और यदि ऐसा करता है, तो उसके खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई होगी.
चर्चा के दौरान रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने किसानों को कोई ठोस आश्वासन नहीं दिया कि वह आने वाले समय में कानून में कोई फेर बदल करेंगे या एमएसपी के लिये अलग से कानून लाएंगे.
पुष्पेंद्र सिंह ने आंकड़ों के आधार पर सरकार के सामने अपनी बात रखी और कहा कि यदि सरकार एमएसपी को अनिवार्य भी करती है, तो इसमें उनकी जेब से कोई पैसा नहीं लगना है.
30 करोड़ टन खाद्यान का उत्पादन
बतौर देश में 30 करोड़ टन खाद्यान का उत्पादन होता है, जिसमें 15 करोड़ टन किसान अपने लिये रखता है और 15 करोड़ टन बाजार या मंडी में बेचता है. लगभग 9 करोड़ टन खाद्यान सरकार मंडियों के माध्यम से एमएसपी पर खरीदती है और बाकी बचा 6 टन बाजार में व्यापारी किसानों से कम कीमत पर खरीदते हैं. अगर यह मान लिया जाए कि व्यापारी निर्धारित एमएसपी से औसतन 500 रुपये प्रति क्विंटल कम पर किसानों से खरीद करता है, तो किसानों को 30 हजार करोड़ रुपये कम मिलते हैं.
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नये कानून में जब प्राइवेट कंपनियां, प्रोसेसर या व्यापारी किसान से खरीद करेंगे तो, उन्हें यदि एमएसपी अनिवार्य होगी, तो उसका भुगतान करना पड़ेगा और किसानों को यह सुरक्षा रहेगी कि उनकी फसल कोई सस्ते कीमत पर नहीं खरीदेगा. इस स्थिति में सरकार की तरफ से कोई पैसा नहीं देना पड़ रहा है और 30 हजार करोड़ प्राइवेट कंपनियों के लिये कोई बड़ी रकम नहीं है. वह भुगतान कर सकते हैं.
पीएम किसान निधि बढ़ाई जाए
इसके अलावा कुछ अन्य मांगें भी किसान नेता पुष्पेंद्र सिंह ने मंत्रियों के सामने रखी, जिनका बाकी प्रतिनिधियों और किसानों ने भी समर्थन किया. अमूल के तर्ज पर दूध के लिये सरकारी कीमत तय करने की मांग भी किसान नेता द्वारा रखी गई. साथ ही मनरेगा मजदूरों को कृषि क्षेत्र में उपलब्ध कराए जाने, पीएम किसान निधि के तहत दिये जा रहे 6000 रुपये प्रति वर्ष को बढ़ा कर पहले 12 और फिर 24 हजार तक ले जाने की मांग भी किसान नेता पुष्पेंद्र सिंह ने रखी.
पुष्पेंद्र सिंह ने आगे बताया कि एक और महत्वपूर्ण सुझाव उन्होंने दिया कि किसान क्रेडिट कार्ड की लिमिट को बढ़ा कर दुगना कर दिया जाए. किसानों के लाखों की जमीन के कागजात बैंक के पास उपलब्ध होते हैं. ऐसे में क्रेडिट कार्ड एक सिक्योर्ड लोन की तरह है. अगर इसकी लिमिट को बढ़ा दिया जाएगा, तो किसानों के हाथ में पैसा आएगा और उनकी स्थिति में सुधार होगा. ऐसा करने से सरकार पर कोई अतिरिक्त भार भी नहीं पड़ेगा.
जानकारी मिली है कि मंत्रीगण लगातार किसान संगठनों से मुलाकात और चर्चा कर कृषि सुधार कानून पर उनकी सहमती बनाएंगे. इसके साथ ही कृषि क्षेत्र से जुड़े अन्य उपक्रमों से भी इस तरह की बैठक की जाएगी और उनके सुझाव लिये जाएंगे. कृषि व्यापार से संबंधित संस्थाएं भी इसमें शामिल हैं. कुल मिलाकर सरकार किसान, उद्योग, व्यापार और अन्य संबंधित लोगों के साथ इन कानूनों पर एक आम सहमती बनाने का प्रयास कर रही है और इनसे होने वाले फायदों को समझा रही है.